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रांची: लालगंज पहुंचे प्रवासी मजदूरों को झेलनी पड़ रही परेशानी, ईटीवी भारत से बताई अपनी दास्तान

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Published : May 22, 2020, 6:53 PM IST

झारखंड में प्रवासी श्रमिकों का पहुंचने का सिलसिला जारी है. राज्य में कई जगहों पर प्रवासी श्रमिकों को उनके गांव आने से पहले ग्रामीण उनपर क्वॉरेंटाइन सेंटर की अवधि पूरा करने का दबाव डाल रहे हैं. इस बात की पड़ताल करने के लिए ईटीवी भारत की टीम रांची से सटे लालगंज पहुंची तो जहां इस पड़ताल को सही पाया गया.

लालगंज के मजदूरों का दर्द
लालगंज के मजदूरों का दर्द

रांची: कोरोना संक्रमण के दौर में प्रवासी श्रमिकों के घर लौटने का सिलसिला लगातार जारी है. अब तक सवा लाख से ज्यादा प्रवासी श्रमिक अलग-अलग राज्यों से झारखंड लौट चुके हैं, लेकिन समय के साथ प्रवासी श्रमिकों में बढ़ते कोरोना पॉजिटिव के मामलों से ग्रामीण खौफ में हैं. कई दिनों से ऐसी खबरें आ रही हैं जहां ग्रामीणों ने प्रवासी श्रमिकों को गांव में आने के पहले क्वॉरेंटाइन अवधि पूरी करने का दबाव डाला है. इसी की पड़ताल करने ईटीवी भारत की टीम राजधानी रांची से सटे लालगंज गांव पहुंची.

जानें लालगंज के मजदूरों का दर्द

जानकारी मिली थी कि गुजरात से आए बंधन कच्छप नामक प्रवासी श्रमिक को परेशानी झेलनी पड़ रही हैं. हमारी पड़ताल में यह बात सच भी निकली. बंधन कच्छप ने बताया कि वह गुजरात से 19 मई को अपने गांव लौटा था. इसकी जानकारी मिलते ही डिस्ट्रिक्ट सर्विलांस यूनिट की एक टीम लालगंज पहुंची और बंधन कच्छप से 20 मई को रांची के गुरु नानक स्कूल स्थित सेंटर में जाकर स्वैब जांच कराने की पर्ची दी, लेकिन जांच सेंटर भेजने की कोई व्यवस्था नहीं हुई.

ईटीवी भारत से बातचीत में बंधन कच्छप ने बताया कि वह एक छोटे से घर में अपनी पत्नी और अपने भाई के परिवार के साथ रहता है. उसे इस बात का डर है कि अगर जांच रिपोर्ट में वह कोरोना पॉजिटिव निकला तो उसके परिवार को भी खतरा हो सकता है. बंधन कच्छप के परिवार के अन्य सदस्यों ने भी बताया कि गांव के लोग इसे छुआछूत की बीमारी के रूप में देखते हैं और कोई भी उनकी मदद के लिए नहीं आ रहा है.

इसे भी पढे़ं:- रांची: कोरोना पर भारी पड़ी आस्था, महिलाओं ने की वट सावित्री पूजा

प्रशासन से ग्रामीणों की क्या है मांग
लालगंज में रहने वाले खटंगा पंचायत के पूर्व मुखिया अनिल तिग्गा से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी है कि गांव में बंधन कच्छप आया हुआ है, लेकिन बिना कोरोना जांच के उसे गांव भेजने से ग्रामीण खौफ में हैं. उन्होंने कहा कि ग्रामीण चाहते हैं कि प्रशासन सबसे पहले प्रवासी श्रमिकों की क्वॉरेंटाइन अवधि पूरी कराए और कोरोना जांच नेगेटिव आने के बाद ही गांव भेजे. ऐसा होने पर सभी ग्रामीण अपने प्रवासी श्रमिक भाईयों को सम्मान के साथ गांव लेकर आएंगे और परिवार की देखरेख भी करेंगे. उन्होंने कहा कि होम क्वॉरेंटाइन का मतलब बेमानी है, क्योंकि गांव में बहुत कम जगह में लोगों को रहना पड़ता है. इससे परिवार के अन्य सदस्यों के साथ-साथ गांव के लोगों को भी संक्रमित होने का डर है.

बातचीत के दौरान गांव की कुछ महिलाएं भी मौजूद थी, लेकिन सभी के चेहरे ढके हुए थे जो यह बताने के लिए काफी था कि इस वायरस को लेकर ग्रामीणों के मन में क्या चल रहा है. एक ग्रामीण महिला ने बताया कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए गांव में क्वॉरेंटाइन अवधि पूरा करना बेहद मुश्किल है. उन्होंने कहा कि बंधन कच्छप 19 मई से ही आया हुआ है, लेकिन अभी तक उसका कोरोना जांच नहीं कराया गया, डायल 108 पर जब फोन किया गया तो वहां से बताया गया कि सिर्फ इमरजेंसी केस के लिए ही एंबुलेंस भेजा जाता है. जाहिर सी बात है कि व्यवस्था में कहीं ना कहीं कमी है, जिसका खामियाजा भोले भाले प्रवासी श्रमिकों को भुगतना पड़ रहा है.

रांची: कोरोना संक्रमण के दौर में प्रवासी श्रमिकों के घर लौटने का सिलसिला लगातार जारी है. अब तक सवा लाख से ज्यादा प्रवासी श्रमिक अलग-अलग राज्यों से झारखंड लौट चुके हैं, लेकिन समय के साथ प्रवासी श्रमिकों में बढ़ते कोरोना पॉजिटिव के मामलों से ग्रामीण खौफ में हैं. कई दिनों से ऐसी खबरें आ रही हैं जहां ग्रामीणों ने प्रवासी श्रमिकों को गांव में आने के पहले क्वॉरेंटाइन अवधि पूरी करने का दबाव डाला है. इसी की पड़ताल करने ईटीवी भारत की टीम राजधानी रांची से सटे लालगंज गांव पहुंची.

जानें लालगंज के मजदूरों का दर्द

जानकारी मिली थी कि गुजरात से आए बंधन कच्छप नामक प्रवासी श्रमिक को परेशानी झेलनी पड़ रही हैं. हमारी पड़ताल में यह बात सच भी निकली. बंधन कच्छप ने बताया कि वह गुजरात से 19 मई को अपने गांव लौटा था. इसकी जानकारी मिलते ही डिस्ट्रिक्ट सर्विलांस यूनिट की एक टीम लालगंज पहुंची और बंधन कच्छप से 20 मई को रांची के गुरु नानक स्कूल स्थित सेंटर में जाकर स्वैब जांच कराने की पर्ची दी, लेकिन जांच सेंटर भेजने की कोई व्यवस्था नहीं हुई.

ईटीवी भारत से बातचीत में बंधन कच्छप ने बताया कि वह एक छोटे से घर में अपनी पत्नी और अपने भाई के परिवार के साथ रहता है. उसे इस बात का डर है कि अगर जांच रिपोर्ट में वह कोरोना पॉजिटिव निकला तो उसके परिवार को भी खतरा हो सकता है. बंधन कच्छप के परिवार के अन्य सदस्यों ने भी बताया कि गांव के लोग इसे छुआछूत की बीमारी के रूप में देखते हैं और कोई भी उनकी मदद के लिए नहीं आ रहा है.

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प्रशासन से ग्रामीणों की क्या है मांग
लालगंज में रहने वाले खटंगा पंचायत के पूर्व मुखिया अनिल तिग्गा से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी है कि गांव में बंधन कच्छप आया हुआ है, लेकिन बिना कोरोना जांच के उसे गांव भेजने से ग्रामीण खौफ में हैं. उन्होंने कहा कि ग्रामीण चाहते हैं कि प्रशासन सबसे पहले प्रवासी श्रमिकों की क्वॉरेंटाइन अवधि पूरी कराए और कोरोना जांच नेगेटिव आने के बाद ही गांव भेजे. ऐसा होने पर सभी ग्रामीण अपने प्रवासी श्रमिक भाईयों को सम्मान के साथ गांव लेकर आएंगे और परिवार की देखरेख भी करेंगे. उन्होंने कहा कि होम क्वॉरेंटाइन का मतलब बेमानी है, क्योंकि गांव में बहुत कम जगह में लोगों को रहना पड़ता है. इससे परिवार के अन्य सदस्यों के साथ-साथ गांव के लोगों को भी संक्रमित होने का डर है.

बातचीत के दौरान गांव की कुछ महिलाएं भी मौजूद थी, लेकिन सभी के चेहरे ढके हुए थे जो यह बताने के लिए काफी था कि इस वायरस को लेकर ग्रामीणों के मन में क्या चल रहा है. एक ग्रामीण महिला ने बताया कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए गांव में क्वॉरेंटाइन अवधि पूरा करना बेहद मुश्किल है. उन्होंने कहा कि बंधन कच्छप 19 मई से ही आया हुआ है, लेकिन अभी तक उसका कोरोना जांच नहीं कराया गया, डायल 108 पर जब फोन किया गया तो वहां से बताया गया कि सिर्फ इमरजेंसी केस के लिए ही एंबुलेंस भेजा जाता है. जाहिर सी बात है कि व्यवस्था में कहीं ना कहीं कमी है, जिसका खामियाजा भोले भाले प्रवासी श्रमिकों को भुगतना पड़ रहा है.

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