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झारखंड में बच्चों तक ऐसे पहुंच रही है मिड-डे-मील, शिक्षकों को मिली बच्चों को राशन बांटने की जिम्मेवारी

मध्याह्न भोजन योजना यानी मिड डे मील, सरकार की एक योजना है. जिसके तहत पूरे देश के प्राथमिक विद्यालयों में स्कूली बच्चों को फ्री में दोपहर का खाना खिलाया जाता है, लेकिन वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन में बच्चों को मिड डे मील नहीं मिल रहा है. ऐसे में झारखंड सरकार शिक्षकों के माध्यम से स्कूली बच्चों के घरों तक सूखा राशन पहुंचा रही है.

Mid-day meal is being delivered to school children homes in jharkhand
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Published : Jun 12, 2020, 9:35 PM IST

Updated : Jun 12, 2020, 10:41 PM IST

रांची: कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण इन दिनों सभी शिक्षण संस्थान बंद है. सरकारी स्कूलों में भी ताले लगे हैं. पठन-पाठन बाधित है. मिड डे मील का संचालन स्कूलों में नहीं हो पा रहा है. ऐसे में जरूरतमंद बच्चों तक मिड डे मील पहुंचाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के निर्देश पर झारखंड सरकार भी घर-घर तक संबंधित बच्चों को मिड डे मील पहुंचाने में जुटी है.

देखें स्पेशल स्टोरी

कोरोना महामारी को लेकर लगाए गए लॉकडाउन से पहले राज्य के स्कूलों में मध्याह्न भोजन की व्यवस्था नियमित रूप से संचालित थी. अब स्कूल बंद रहने के कारण बच्चों तक राशन पहुंचाने की जिम्मेवारी स्कूल के शिक्षकों पर है. शैक्षणिक कार्यों से हटकर मिली जिम्मेवारी से शिक्षक भी परेशान हैं, लेकिन इस विपरित परिस्थिति में वे इस जिम्मेवारी को समझते हुए बच्चों के अभिभावकों को स्कूल बुलाकर मिड डे मील मुहैया दे रहे हैं.

केंद्र सरकार ने जारी किया है गाइडलाइन

केंद्र सरकार की ओर से राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि वह वैकल्पिक व्यवस्था कर स्कूल जाने वाले बच्चों को मिड डे मील के माध्यम से मिलने वाले मूल पोषण से वंचित ना रखे. ऐसे समय में जब स्कूल कोविड-19 महामारी के कारण बंद हैं, तब राज्य सरकार को लाभार्थियों के घरों में खाद्यान्न या सूखा भोजन पहुंचाने या उनके माता-पिता के खातों में पैसे भेजने का भी निर्देश दिया है. सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 1 से 8 तक के 6 से 14 साल की आयु के छात्र योजना के लाभार्थी है. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 31 दिसंबर 2019 तक देशभर के 11.60 करोड़ से अधिक बच्चे योजना के लाभार्थी हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार झारखंड में लगभग 30 लाख बच्चे इस योजना से लाभान्वित हो रहे हैं. पूरे देश के लिए साल 2020-21 तक इस योजना का बजट 9,266.67 करोड़ रुपये है.

झारखंड में अब तक इस योजना से लाभ

लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद होने की वजह से झारखंड के सरकारी स्कूलों के बच्चों को शुरुआती दौर में मिड डे मील नहीं मिल पा रहा था. केंद्र सरकार के निर्देश और राज्य सरकार के योजना के तहत विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य और प्रभारी शिक्षक निर्धारित खाद्यान्न कुकिंग कॉस्ट के अलावा अंडा की राशि संबंधित जगहों में जाकर बच्चों के बीच वितरित कर रहे हैं. यह सरकार की ओर से भी सुनिश्चित किया गया है. स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के आदेश के अनुसार कक्षा 1 से 5 के बच्चों को प्रतिदिन 100 ग्राम चावल और 4.48 रुपये की दर से कुकिंग कॉस्ट की राशि दी जाएगी.

इसी तरह कक्षा 6 से 8 के बच्चों को प्रतिदिन 150 ग्राम चावल और 6.71 रुपये की दर से कुकिंग कॉस्ट की राशि दिए जाने का निर्देश जारी है. अंडा के लिए प्रति पीस 6 रुपये बच्चों को 4 दिनों के लिए दिए जाएंगे. बता दें कि बच्चों को मिड डे मील के साथ सप्ताह में एक दिन अंडा भी दिया जाता है. पारा शिक्षकों के अलावा सरकारी स्कूलों के शिक्षक घर घर जाकर और स्कूल क्षेत्र के इर्द-गिर्द अभिभावकों को बुलाकर सूखा राशन बांटने का काम इन दिनों किया जा रहा है. हालांकि यह व्यवस्था नाकाफी साबित हो रहा है .सभी बच्चों तक इस योजना का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है .

नियमित नहीं मिल रहा अनाज

झारखंड में 35 हजार सरकारी स्कूल संचालित है, जो शहरी क्षेत्र के अलावा सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में भी स्थित है. जहां करीब 30 लाख बच्चों को सामान्य दिनों में मध्याह्न भोजन पोरोसा जाता है. ऐसे में शिक्षकों के माध्यम से सभी बच्चों तक राशन पहुंचाना कठिन है. इसको लेकर विभागीय अधिकारी बताते हैं कि शिक्षक कठिन कामों को ही सरल करने के लिए जाने जाते है. शिक्षकों की माने तो इस व्यवस्था को सफल बनाने में लगातार परेशानियां आ रही है, लेकिन फिर भी कोशिश है कि सभी बच्चे तक इसका लाभ पहुंचाया जाए. वहीं, बच्चों और अभिभावकों का कहना है कि पिछले ढाई महीने में एक बार राशन दिया गया है, वह भी 3 बच्चों में सिर्फ 6 किलोग्राम और इसके साथ ना ही दाल मिला और ना ही कुकिंग कॉस्ट.

ये भी पढ़ें- अपने गांव के हंसते-खेलते बच्चों को भुला नहीं पा रहे ग्रामीण, तीन की मौत के बाद रो रहा पूरा गांव

मिड डे मील योजना की शुरूआत 15 अगस्त 1995 को भारत सरकार की ओर से की गई थी. राज्य परियोजना परिषद की ओर से मिली जानकारी के अनुसार आगे जब भी स्कूल खुलेगी, उसके कुछ दिन बाद तक भी मिड डे मील स्कूल परिसर पर नहीं बनाया जाएगा. सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने के लिए विभाग यह फैसला ले सकती है. उसके बदले में बच्चों को अनाज देने की तैयारी की जा रही है. ऐसे में दोबारा सरकारी स्कूलों के बच्चों को स्कूलों के साथ जोड़ने में विभाग को परेशानियां आ सकती है. ऐसे में कोरोना काल के दौरान बच्चों तक अनाज तो पहुंच रहा है, लेकिन राज्य के लाखों बच्चों तक समय पर राशन पहुंचाना सरकार के लिए चुनौती जरूर है.

रांची: कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण इन दिनों सभी शिक्षण संस्थान बंद है. सरकारी स्कूलों में भी ताले लगे हैं. पठन-पाठन बाधित है. मिड डे मील का संचालन स्कूलों में नहीं हो पा रहा है. ऐसे में जरूरतमंद बच्चों तक मिड डे मील पहुंचाने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के निर्देश पर झारखंड सरकार भी घर-घर तक संबंधित बच्चों को मिड डे मील पहुंचाने में जुटी है.

देखें स्पेशल स्टोरी

कोरोना महामारी को लेकर लगाए गए लॉकडाउन से पहले राज्य के स्कूलों में मध्याह्न भोजन की व्यवस्था नियमित रूप से संचालित थी. अब स्कूल बंद रहने के कारण बच्चों तक राशन पहुंचाने की जिम्मेवारी स्कूल के शिक्षकों पर है. शैक्षणिक कार्यों से हटकर मिली जिम्मेवारी से शिक्षक भी परेशान हैं, लेकिन इस विपरित परिस्थिति में वे इस जिम्मेवारी को समझते हुए बच्चों के अभिभावकों को स्कूल बुलाकर मिड डे मील मुहैया दे रहे हैं.

केंद्र सरकार ने जारी किया है गाइडलाइन

केंद्र सरकार की ओर से राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि वह वैकल्पिक व्यवस्था कर स्कूल जाने वाले बच्चों को मिड डे मील के माध्यम से मिलने वाले मूल पोषण से वंचित ना रखे. ऐसे समय में जब स्कूल कोविड-19 महामारी के कारण बंद हैं, तब राज्य सरकार को लाभार्थियों के घरों में खाद्यान्न या सूखा भोजन पहुंचाने या उनके माता-पिता के खातों में पैसे भेजने का भी निर्देश दिया है. सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा 1 से 8 तक के 6 से 14 साल की आयु के छात्र योजना के लाभार्थी है. केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 31 दिसंबर 2019 तक देशभर के 11.60 करोड़ से अधिक बच्चे योजना के लाभार्थी हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार झारखंड में लगभग 30 लाख बच्चे इस योजना से लाभान्वित हो रहे हैं. पूरे देश के लिए साल 2020-21 तक इस योजना का बजट 9,266.67 करोड़ रुपये है.

झारखंड में अब तक इस योजना से लाभ

लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद होने की वजह से झारखंड के सरकारी स्कूलों के बच्चों को शुरुआती दौर में मिड डे मील नहीं मिल पा रहा था. केंद्र सरकार के निर्देश और राज्य सरकार के योजना के तहत विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्य और प्रभारी शिक्षक निर्धारित खाद्यान्न कुकिंग कॉस्ट के अलावा अंडा की राशि संबंधित जगहों में जाकर बच्चों के बीच वितरित कर रहे हैं. यह सरकार की ओर से भी सुनिश्चित किया गया है. स्कूली शिक्षा और साक्षरता विभाग के आदेश के अनुसार कक्षा 1 से 5 के बच्चों को प्रतिदिन 100 ग्राम चावल और 4.48 रुपये की दर से कुकिंग कॉस्ट की राशि दी जाएगी.

इसी तरह कक्षा 6 से 8 के बच्चों को प्रतिदिन 150 ग्राम चावल और 6.71 रुपये की दर से कुकिंग कॉस्ट की राशि दिए जाने का निर्देश जारी है. अंडा के लिए प्रति पीस 6 रुपये बच्चों को 4 दिनों के लिए दिए जाएंगे. बता दें कि बच्चों को मिड डे मील के साथ सप्ताह में एक दिन अंडा भी दिया जाता है. पारा शिक्षकों के अलावा सरकारी स्कूलों के शिक्षक घर घर जाकर और स्कूल क्षेत्र के इर्द-गिर्द अभिभावकों को बुलाकर सूखा राशन बांटने का काम इन दिनों किया जा रहा है. हालांकि यह व्यवस्था नाकाफी साबित हो रहा है .सभी बच्चों तक इस योजना का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है .

नियमित नहीं मिल रहा अनाज

झारखंड में 35 हजार सरकारी स्कूल संचालित है, जो शहरी क्षेत्र के अलावा सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में भी स्थित है. जहां करीब 30 लाख बच्चों को सामान्य दिनों में मध्याह्न भोजन पोरोसा जाता है. ऐसे में शिक्षकों के माध्यम से सभी बच्चों तक राशन पहुंचाना कठिन है. इसको लेकर विभागीय अधिकारी बताते हैं कि शिक्षक कठिन कामों को ही सरल करने के लिए जाने जाते है. शिक्षकों की माने तो इस व्यवस्था को सफल बनाने में लगातार परेशानियां आ रही है, लेकिन फिर भी कोशिश है कि सभी बच्चे तक इसका लाभ पहुंचाया जाए. वहीं, बच्चों और अभिभावकों का कहना है कि पिछले ढाई महीने में एक बार राशन दिया गया है, वह भी 3 बच्चों में सिर्फ 6 किलोग्राम और इसके साथ ना ही दाल मिला और ना ही कुकिंग कॉस्ट.

ये भी पढ़ें- अपने गांव के हंसते-खेलते बच्चों को भुला नहीं पा रहे ग्रामीण, तीन की मौत के बाद रो रहा पूरा गांव

मिड डे मील योजना की शुरूआत 15 अगस्त 1995 को भारत सरकार की ओर से की गई थी. राज्य परियोजना परिषद की ओर से मिली जानकारी के अनुसार आगे जब भी स्कूल खुलेगी, उसके कुछ दिन बाद तक भी मिड डे मील स्कूल परिसर पर नहीं बनाया जाएगा. सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने के लिए विभाग यह फैसला ले सकती है. उसके बदले में बच्चों को अनाज देने की तैयारी की जा रही है. ऐसे में दोबारा सरकारी स्कूलों के बच्चों को स्कूलों के साथ जोड़ने में विभाग को परेशानियां आ सकती है. ऐसे में कोरोना काल के दौरान बच्चों तक अनाज तो पहुंच रहा है, लेकिन राज्य के लाखों बच्चों तक समय पर राशन पहुंचाना सरकार के लिए चुनौती जरूर है.

Last Updated : Jun 12, 2020, 10:41 PM IST

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