रांची: हेमंत कैबिनेट से पास मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट एक बार फिर अटक गया है. आज विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सरकार ने जब विधेयक को सदन के पटल पर रखा तो एक के बाद एक कुल 30 संशोधन इस प्रस्तावित विधेयक के खिलाफ आए. सदन में माले विधायक विनोद कुमार सिंह ने प्रस्तावित मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट में 12 संशोधन के प्रस्ताव दिए. माले विधायक ने कहा कि सरकार जिस रूप में डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए कानून बनाना चाहती है वह भेदभाव पूर्ण है.
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उन्होंने कहा कि एक ओर जहां मरीजों के हितों की प्रोटेक्शन के लिए जो प्रावधान किए गए हैं वह नीति निदेशात्मक था, जबकि डॉक्टरों और हॉस्पिटल की रक्षा के लिए दंडात्मक प्रावधान किए गए थे. इसके अलावा आयुष्मान कार्ड और गंभीर बीमारी योजना के तहत इलाज में भी पैसे वसूलने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कोई दंड का प्रावधान नहीं था. वहीं, कांग्रेस की विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह ने भी कहा कि विधानसभा के सदस्यों की चिंता डॉक्टरों की सुरक्षा के साथ साथ आम जनता के हितों की सुरक्षा की भी है. इसलिए एक बैलेंस्ड और सर्वमान्य मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट सरकार लाएगी इसकी उम्मीद है.
प्रवर समिति में चर्चा के बाद फिर लायेंगे मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट: प्रस्तावित मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट के एक बार फिर प्रवर समिति को सौपें जाने के बाद अपनी प्रतिक्रिया देते हुए स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने कहा कि सरकार ने डॉक्टर्स और जनता दोनों के हितों का ख्याल रखते हुए विधेयक लाया था लेकिन उसपर बहुत सारे संशोधन आने की वजह से मुख्यमंत्री ने उसे प्रवर समिति में भेजने की घोषणा की है. सरकार प्रवर समिति से मिले सलाह के बाद फिर डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए मेडिकल प्रोटेक्शन विधेयक लाएगी.
रघुवर सरकार में प्रवर समिति के पास गया था बिल: इससे पहले रघुवर दास के शासनकाल में भी डॉक्टरों के सुरक्षा के लिए चिर प्रतिक्षित मेडिकल प्रोटेक्शन विधेयक को विधानसभा के समक्ष लाया गया था और उस समय भी लगभग सभी दलों के विधायकों ने मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट के प्रस्ताव को एकतरफा बताते हुए उसमें कई संशोधन दिए थे और तब भी मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट प्रवर समिति में चला गया था, जिसके बाद प्रवर समिति ने उसमें कई सुधार की सलाह देते हुए अपनी बात कही थी.
इसके बाद सरकार की ओर से राज्य में मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने के लिए फिर से प्रयास शुरू हुए थे और एक प्रस्ताव तैयार किया गया था. जिसे डॉक्टरों ने यह कहते हुए नकार दिया था कि इसमें डॉक्टरों की सुरक्षा कम और उन पर दंडात्मक कार्रवाई के प्रावधान अधिक हैं. ऐसा तीसरी बार हुआ है कि सरकार की ओर से मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लाने की कोशिश की गई है और वह एक बार फिर विधानसभा से प्रवर समिति को भेज दिया गया है. अब देखना होगा कि प्रस्तावित मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट में प्रवर समिति कौन-कौन से बदलाव की सलाह देते हुए से सरकार को भेजती है.