ETV Bharat / state

उद्धव के इस्तीफे के बाद फडणवीस की राह में कई अड़चनें, महाराष्ट्र के बाद झारखंड पर बीजेपी की नजर

उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद देवेंद्र फडणवीस के लिए रास्ता साफ हो गया है, लेकिन यह रास्ता उनके लिए कितना आसान होगा, रास्ते में कितनी कानूनी अड़चनें हैं और किन-किन राजनीतिक चुनौतियां का उन्हें सामना करना पड़ेगा? इसे भी जानना जरूरी है. इसके साथ ही महाराष्ट्र के बाद अब बीजेपी की नजर झारखंड पर है, जहां हेमंत सोरेन की सरकार है.

Etv Bharat
Jharkhand politics
author img

By

Published : Jun 30, 2022, 4:37 PM IST

Updated : Jun 30, 2022, 5:01 PM IST

रांची: बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार बाद के बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. महाराष्ट्र में अब बीजेपी की सरकार बनती दिख रही है. माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में बीजेपी के सफल होने के बाद अब उसकी नजर झारखंड पर है, जहां हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी की सरकार चल रही है.

झारखंड में बीजेपी के लिए कितनी संभावनाएं है, ये भी बताएंगे लेकिन उससे पहले महाराष्ट्र की बात करते हैं जहां नई सरकार के गठन की कवायद शुरू होने वाली है. माना जा रहा है कि बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बन सकते हैं. लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने के रास्ते में कितनी अड़चने हैं, जानते हैं इस रिपोर्ट में...

सुप्रीम कोर्ट में अभी भी है मामला: विधायकों की सदस्यता रद्द करने की डिप्टी स्पीकर के नोटिस को शिंदे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया है. जिस पर सुनवाई चल रही है. 11 जुलाई को इस मामले में सुनवाई होनी है, क्या उससे पहले यहां सरकार बन सकती है. ऐसे में कानूनी पहलुओं को समझना जरूरी है.

सदन में किसका व्हिप चलेगा: अब सवाल ये उठता है कि जब शिवसेना दो धड़े में बंट गई है तो व्हिप किसका चलेगा, क्योंकि उद्धव ठाकरे ने अजय चौधरी को विधायक दल का नेता बनाया है, जिसे डिप्टी स्पीकर ने मंजूरी भी दे दी है. वहीं, बागी गुट भी शिंदे को अपना नेता मानता है. ऐसे में सदन के अंदर किसके व्हिप को माना जाएगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है. यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट के पास है.

स्पीकर की भूमिका: दूसरा सवाल यह है कि सदन का संचालन कौन करेगा. क्योंकि वर्तमान में महाराष्ट्र विधानसभा में स्पीकर नहीं हैं. डिप्टी स्पीकर हैं लेकिन उन्हें लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है, क्योंकि एकनाथ शिंदे के गुट ने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लेकर आवेदन दिया था, जिसे डिप्टी स्पीकर ने खारिज कर दिया था, यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट के पास है, जिस पर 11 जुलाई को सुनवाई होनी है. ऐसे में क्या राज्यपाल किसी विधायक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करेंगे या विश्वासमत परीक्षण से पहले स्पीकर का चुनाव होगा या फिर वर्तमान में जो डिप्टी स्पीकर हैं वही सदन का संचालन करेंगे यह भी अभी तय नहीं है.

असली शिवसेना कौन: महाराष्ट्र की राजनीति में असली शिवसेना कौन है, अब इसकी लड़ाई चल रही है. शिंदे के पास 55 में से 39 विधायकों का समर्थन है. लेकिन उनके पास पर्याप्त संख्या में सांसद और पार्टी पदाधिकारियों का समर्थन है कि नहीं यह साफ नहीं है. ऐसे में अगर शिंदे गुट को असली शिवसेना का दर्जा नहीं मिलता है तो पेंच फंस सकता है, शिंदे को किसी पार्टी में अपने गुट का विलय करना होगा. शिंदे बीजेपी में मर्ज करेंगे या एमएनएस में या फिर किसी और दल में यह भी देखना होगा. इस बारे में चुनाव आयोग और स्पीकर का फैसला महत्वपूर्ण होगा.

फडणवीस के सामने राजनीतिक चुनौतियां: उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद अब यह लगभग साफ हो गया है कि बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन उनके सामने कानूनी अड़चनों के साथ-साथ राजनीतिक चुनौतियां भी कम नहीं हैं. शिंदे के साथ 52 विधायक महाविकास अघाड़ी से अलग होकर बीजेपी के खेमे में आ रहे हैं. इसमें ऐसी चर्चा है कि 13 विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है, लेकिन बाकी बचे विधायकों को कुछ न कुछ देकर खुश रखना होगा, चाहे वो बोर्ड निगम हो या फिर कुछ और. इतनी बड़ी संख्या में विधायकों को संतुष्ट रख पाना आसान नहीं है. ऐसे में फडणवीस को इस बात का ख्याल रखना होगा कि शिंदे गुट के लोगों को संतुष्ट करने में कहीं अपने लोग ना नाराज हो जाएं, जिसका खामियाजा उद्धव ठाकरे को भुगतना पड़ा है.

क्या कहता है महाराष्ट्र विधानसभा का अंक गणित: महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सदस्य हैं, एक विधायक के निधन के बाद यह संख्या 287 है. ऐसे में बहुमत के लिए 244 विधायकों का समर्थन चाहिए. बीजेपी के पास 106 विधायक, शिवसेना- 55 (शिंदे गुट मिलाकर), एनसीपी- 53, कांग्रेस के 44 विधायक हैं, 14 निर्दलीय हैं बाकी सीट छोटी छोटी पार्टियों के पास है. शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस और कुछ छोटी पार्टियों को मिलाकर 169 विधायकों के समर्थन से उद्धव ठाकरे ने सरकार बनाई थी. लेकिन एकनाथ शिंदे ने इस 169 विधायकों में सेंधमारी करते हुए शिवसेना के 39 विधायकों के साथ 52 विधायकों को अपने खेमे में मिला लिया. 2019 चुनाव के बाद बीजेपी गठबंधन के पास 113 सीटें रह गई. अब जब नए समीकरण बन रहे हैं तो बेजीप और शिंदे गुट मिलाकर बहुमत के आंकड़े 144 आसानी से पार हो जाते है.

झारखंड पर बीजेपी की नजर: माना जा रहा है कि कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बाद बीजेपी का पूरा फोकस अब झारखंड पर होने वाला है. यहां भी बीजेपी विपक्ष में है और महागठबंधन की सरकार का नेतृत्व हेमंत सोरेन कर रहे हैं. पिछले कुछ दिनों से सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला चल रहा है. इस मामले में चुनाव आयोग में सुनवाई चल रही है. अगर चुनाव आयोग हेमंत सोरेन को अयोग्य घोषित करता है तो उन्हें भी सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ेगा. ऐसे में वहां भी भगदड़ मचने की संभावना है.

कांग्रेस सॉफ्ट टारगेट: यहां पर बीजेपी कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों को साधने की कोशिश कर सकती है. क्योंकि कांग्रेस के कई विधायक सार्वजिनक तौर पर हेमंत सोरेन और सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर करते रहे हैं. कांग्रेस विधायकों को अपने पाले में करने के लिए बीजेपी पुराने कांग्रेसी और अब बीजेपी में शामिल नेता आरपीएन सिंह का सहारा ले सकती है.

झारखंड विधानसभा का अंक गणित: झारखंड विधानसभा में 81 विधायक हैं, ऐसे में बहुतम के लिए 42 विधायकों का समर्थन जरूरी है. झामुमो के सदस्यों की संख्या सर्वाधिक 30, कांग्रेस के 18 और आरजेडी के 1 सदस्य सरकार में शामिल है. हेमंत सरकार को इनके अलावा माले और एनसीपी के भी एक-एक विधायकों का समर्थन है. फिलहाल हेमंत से पास 51 विधायकों का समर्थन है, वहीं बीजेपी के 26, आजसू के 2, निर्दलीय दो विधायक विपक्ष में हैं.

रांची: बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार बाद के बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. महाराष्ट्र में अब बीजेपी की सरकार बनती दिख रही है. माना जा रहा है कि महाराष्ट्र में बीजेपी के सफल होने के बाद अब उसकी नजर झारखंड पर है, जहां हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जेएमएम, कांग्रेस और आरजेडी की सरकार चल रही है.

झारखंड में बीजेपी के लिए कितनी संभावनाएं है, ये भी बताएंगे लेकिन उससे पहले महाराष्ट्र की बात करते हैं जहां नई सरकार के गठन की कवायद शुरू होने वाली है. माना जा रहा है कि बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बन सकते हैं. लेकिन उनके मुख्यमंत्री बनने के रास्ते में कितनी अड़चने हैं, जानते हैं इस रिपोर्ट में...

सुप्रीम कोर्ट में अभी भी है मामला: विधायकों की सदस्यता रद्द करने की डिप्टी स्पीकर के नोटिस को शिंदे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया है. जिस पर सुनवाई चल रही है. 11 जुलाई को इस मामले में सुनवाई होनी है, क्या उससे पहले यहां सरकार बन सकती है. ऐसे में कानूनी पहलुओं को समझना जरूरी है.

सदन में किसका व्हिप चलेगा: अब सवाल ये उठता है कि जब शिवसेना दो धड़े में बंट गई है तो व्हिप किसका चलेगा, क्योंकि उद्धव ठाकरे ने अजय चौधरी को विधायक दल का नेता बनाया है, जिसे डिप्टी स्पीकर ने मंजूरी भी दे दी है. वहीं, बागी गुट भी शिंदे को अपना नेता मानता है. ऐसे में सदन के अंदर किसके व्हिप को माना जाएगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है. यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट के पास है.

स्पीकर की भूमिका: दूसरा सवाल यह है कि सदन का संचालन कौन करेगा. क्योंकि वर्तमान में महाराष्ट्र विधानसभा में स्पीकर नहीं हैं. डिप्टी स्पीकर हैं लेकिन उन्हें लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है, क्योंकि एकनाथ शिंदे के गुट ने डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को लेकर आवेदन दिया था, जिसे डिप्टी स्पीकर ने खारिज कर दिया था, यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट के पास है, जिस पर 11 जुलाई को सुनवाई होनी है. ऐसे में क्या राज्यपाल किसी विधायक को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करेंगे या विश्वासमत परीक्षण से पहले स्पीकर का चुनाव होगा या फिर वर्तमान में जो डिप्टी स्पीकर हैं वही सदन का संचालन करेंगे यह भी अभी तय नहीं है.

असली शिवसेना कौन: महाराष्ट्र की राजनीति में असली शिवसेना कौन है, अब इसकी लड़ाई चल रही है. शिंदे के पास 55 में से 39 विधायकों का समर्थन है. लेकिन उनके पास पर्याप्त संख्या में सांसद और पार्टी पदाधिकारियों का समर्थन है कि नहीं यह साफ नहीं है. ऐसे में अगर शिंदे गुट को असली शिवसेना का दर्जा नहीं मिलता है तो पेंच फंस सकता है, शिंदे को किसी पार्टी में अपने गुट का विलय करना होगा. शिंदे बीजेपी में मर्ज करेंगे या एमएनएस में या फिर किसी और दल में यह भी देखना होगा. इस बारे में चुनाव आयोग और स्पीकर का फैसला महत्वपूर्ण होगा.

फडणवीस के सामने राजनीतिक चुनौतियां: उद्धव ठाकरे के इस्तीफे के बाद अब यह लगभग साफ हो गया है कि बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन उनके सामने कानूनी अड़चनों के साथ-साथ राजनीतिक चुनौतियां भी कम नहीं हैं. शिंदे के साथ 52 विधायक महाविकास अघाड़ी से अलग होकर बीजेपी के खेमे में आ रहे हैं. इसमें ऐसी चर्चा है कि 13 विधायकों को मंत्री बनाया जा सकता है, लेकिन बाकी बचे विधायकों को कुछ न कुछ देकर खुश रखना होगा, चाहे वो बोर्ड निगम हो या फिर कुछ और. इतनी बड़ी संख्या में विधायकों को संतुष्ट रख पाना आसान नहीं है. ऐसे में फडणवीस को इस बात का ख्याल रखना होगा कि शिंदे गुट के लोगों को संतुष्ट करने में कहीं अपने लोग ना नाराज हो जाएं, जिसका खामियाजा उद्धव ठाकरे को भुगतना पड़ा है.

क्या कहता है महाराष्ट्र विधानसभा का अंक गणित: महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सदस्य हैं, एक विधायक के निधन के बाद यह संख्या 287 है. ऐसे में बहुमत के लिए 244 विधायकों का समर्थन चाहिए. बीजेपी के पास 106 विधायक, शिवसेना- 55 (शिंदे गुट मिलाकर), एनसीपी- 53, कांग्रेस के 44 विधायक हैं, 14 निर्दलीय हैं बाकी सीट छोटी छोटी पार्टियों के पास है. शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस और कुछ छोटी पार्टियों को मिलाकर 169 विधायकों के समर्थन से उद्धव ठाकरे ने सरकार बनाई थी. लेकिन एकनाथ शिंदे ने इस 169 विधायकों में सेंधमारी करते हुए शिवसेना के 39 विधायकों के साथ 52 विधायकों को अपने खेमे में मिला लिया. 2019 चुनाव के बाद बीजेपी गठबंधन के पास 113 सीटें रह गई. अब जब नए समीकरण बन रहे हैं तो बेजीप और शिंदे गुट मिलाकर बहुमत के आंकड़े 144 आसानी से पार हो जाते है.

झारखंड पर बीजेपी की नजर: माना जा रहा है कि कर्नाटक, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के बाद बीजेपी का पूरा फोकस अब झारखंड पर होने वाला है. यहां भी बीजेपी विपक्ष में है और महागठबंधन की सरकार का नेतृत्व हेमंत सोरेन कर रहे हैं. पिछले कुछ दिनों से सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला चल रहा है. इस मामले में चुनाव आयोग में सुनवाई चल रही है. अगर चुनाव आयोग हेमंत सोरेन को अयोग्य घोषित करता है तो उन्हें भी सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ेगा. ऐसे में वहां भी भगदड़ मचने की संभावना है.

कांग्रेस सॉफ्ट टारगेट: यहां पर बीजेपी कांग्रेस के असंतुष्ट विधायकों को साधने की कोशिश कर सकती है. क्योंकि कांग्रेस के कई विधायक सार्वजिनक तौर पर हेमंत सोरेन और सरकार के प्रति नाराजगी जाहिर करते रहे हैं. कांग्रेस विधायकों को अपने पाले में करने के लिए बीजेपी पुराने कांग्रेसी और अब बीजेपी में शामिल नेता आरपीएन सिंह का सहारा ले सकती है.

झारखंड विधानसभा का अंक गणित: झारखंड विधानसभा में 81 विधायक हैं, ऐसे में बहुतम के लिए 42 विधायकों का समर्थन जरूरी है. झामुमो के सदस्यों की संख्या सर्वाधिक 30, कांग्रेस के 18 और आरजेडी के 1 सदस्य सरकार में शामिल है. हेमंत सरकार को इनके अलावा माले और एनसीपी के भी एक-एक विधायकों का समर्थन है. फिलहाल हेमंत से पास 51 विधायकों का समर्थन है, वहीं बीजेपी के 26, आजसू के 2, निर्दलीय दो विधायक विपक्ष में हैं.

Last Updated : Jun 30, 2022, 5:01 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.