रांची: कुष्ठ रोगियों को समाज में अच्छा स्थान दिलाने के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के प्रयास जगजाहिर हैं पर उनकी इस मशाल को आगे बढ़ाने में हमारी भूमिका पर तमाम सवाल हैं. अब जब हम उनकी पुण्यतिथि 30 जनवरी से 13 फरवरी तक कुष्ठ उन्मूलन पखवाड़ा मना रहे हैं तो एक बार अपने आसपास नजर दौड़ाने की जरूरत है. रांची में ही 336 कुष्ठ रोगी हैं हम इन्हें जरूरी सुविधाएं और ठीक से इलाज मुहैया नहीं करा पा रहे हैं.
कुष्ठ का इलाज संभव
जिला कुष्ठ निवारण पदाधिकारी आरएन शर्मा का कहना है कि कुष्ठ एक बैक्टीरिया जनित बीमारी है. झारखंड में इसको लेकर कई भ्रांतियां हैं, कई लोगों का मानना है कि कुष्ठ छुआछूत की बीमारी पर यह सही नहीं है. कुष्ठ का इलाज संभव है. बस समय से कुष्ठ रोगियों के पहचान की जरूरत है. उन्होंने बताया कि विभाग कुष्ठ से निजात के लिए तमाम जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है. इसके बाद उनकी पहचान कर निकुष्ठ पोर्टल पर एंट्री कर उनका उपचार कराया जाता है और दवाई मुहैया कराई जाती है.
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दवा के लिए काटना पड़ता है अस्पताल का चक्कर
ईटीवी की टीम ने जब रांची में बने निर्मला कुष्ठनगर का जायजा लिया तो यहां सरकार की योजनाओं से लाभान्वित कई मरीज मिले तो कई मरीज ऐसे भी मिले, जिन तक सुविधाएं नहीं पहुंच सकी हैं. सबसे अहम है इस कॉलोनी में पानी, शौचालय जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है. यहां के बसंत कुमार बिरला बताते हैं कि पहले लोग ठीक व्यवहार नहीं करते थे पर अब कई लोग उनको सुनते हैं. हमें दवा देकर ठीक करने की कोशिश भी कर रहे हैं. वहीं सोमारी लोहरा बताती हैं कि आज भी हमें अपना जीवन यापन चलाने के लिए मूलभूत सुविधाओं से भी जूझना पड़ता है. आर्थिक तंगी उनकी बड़ी समस्या है. कुष्ठ रोगियों को परिवार चलाने के लिए भीख तक मांगने के लिए मजबूर होना पड़ता है. वहीं दवा के लिए भी अस्पतालों में चक्कर काटने पड़ते हैं.
ऐसे फैलता है कुष्ठ
डॉक्टर आरएन शर्मा बताते हैं कि कुष्ठ छुआछूत की बीमारी नहीं है लेकिन यह रेस्पिरेटरी सिस्टम के माध्यम से फैलती है. इसीलिए कुष्ठ रोगियों से मुलाकात करते समय मास्क का उपयोग अवश्य करें, क्योंकि यह तभी फैलती है जब किसी कुष्ठ से ग्रसित मरीज से जीवाणु श्वांस के माध्यम से किसी आम आदमी के शरीर में प्रवेश करे. हालांकि कुष्ठ से पीड़ित मरीज के प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत है, ताकि लोग उनके साथ अच्छा व्यवहार करें.