रांचीः आइए कुष्ठ रोग से लड़ें और कुष्ठ को इतिहास बनाएं, इसी थीम के साथ वर्ष 2023 में झारखंड में कुष्ठ के विरुद्ध अभियान चलाया जाएगा. इसकी शुरुआत राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि एवं राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन दिवस 30 जनवरी से होगी. इस दिन से राज्य में कुष्ठ उन्मूलन पखवाड़ा की शुरुआत होगी और जनजागरुकता के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे.
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कुष्ठमुक्त समाज की स्थापना के संकल्प के साथ पहले दिन सभी जिलों में उपायुक्त कर्मियों एवं जनप्रतिनिधियों के साथ संदेश वाचन करेंगे. फिर गांवों में ग्रामसभा के माध्यम से आमजनों तक कुष्ठ मुक्त झारखंड का संदेश पहुंचाया जाएगा. कुष्ठ मुक्त झारखंड बनाने के लिए 30 जनवरी से शुरू होने वाले पखवाड़े की तैयारियों के लिए सोमवार को स्वास्थ्य निदेशक प्रमुख, झारखंड ने नामकुम में बैठक की और कई अहम निर्देश दिए. इसके साथ ही साथ स्वास्थ्य विभाग के निदेशक प्रमुख सह राज्य कुष्ठ कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ कृष्ण कुमार ने नामकुम स्थित आरसीएच सभागार में मीडिया कॉर्डिनेशन कमेटी की बैठक भी की.
शीघ्र इलाज ही अपंगता से बचा सकता हैः निदेशक प्रमुख (स्वास्थ्य सेवाएं) डॉ कृष्ण कुमार ने कहा कि कुष्ठ रोग का इलाज संभव है. इसकी दवा सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में निःशुल्क उपलब्ध है. यदि किसी की त्वचा में हल्के रंग का दाग है तो तुरंत स्वास्थ्यकर्मियों से मिलकर जांच कराएं. उन्होंने कहा कि कुष्ठ न तो भगवान का अभिशाप है और न ही फैलने वाली बीमारी है. यह न तो छूआछूत बीमारी है और न ही पूर्वजन्मों का पाप है. यह पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है. शीघ्र इलाज से ही अपंगता से बचा सकता है. कुष्ठमुक्त हुए मरीज सामान्य जीवन जी रहे हैं, जरूरी है कि इसके मिथक और पूर्वाग्रहों से बचा जाए.
कुष्ठ निवारण दिवस से होगी पखवाड़े की शुरुआतः 30 जनवरी को सभी जिलों में उपायुक्त की अध्यक्षता में कार्यक्रम की शुरुआत होगी. जिले भर के सभी जनप्रतिनिधियों और कर्मचारी संदेश पढ़कर कुष्ठ मुक्त समाज के निर्माण एवं कुष्ठ मरीजों के साथ किसी तरह के भेदभाव नहीं करने का संकल्प लेंगे. इसके बाद यह कार्यक्रम प्रखंड स्तर पर होगा एवं ग्राम सभा के माध्यम से गांव-गांव तक यह संदेश पहुंचाया जाएगा. ग्राम सभा में कुष्ठमुक्त हुए मरीज आमजनों को कुष्ठ मुक्त होने में उनके प्रयासों की जानकारी देंगे.
झारखंड के एनएलईपी आंकड़ों के मुताबिक राष्ट्रीय औसत 0.45 प्रतिशत के मुताबिक राज्य में कुष्ठ दर 1.8 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है. ऐसे में झारखंड जैसे राज्यों में कुष्ठ उन्मूलन के लिए विशेष कार्य करने की जरूरत है. एनएलईपी के अनुसार राज्य में वर्ष 2021-22 में कुष्ठ के 4025 नए मामले आए जबकि 2020-21 में यह संख्या 3450 थी.