रांची: रामगढ़ उपचुनाव को लेकर सभी पार्टियों ने अपने-अपने स्तर से तैयारी करनी शुरू कर दी है. एनडीए और यूपीए जहां जीत के दावे कर रहे हैं तो वही छोटी पार्टियां भी अपना दम भरती नजर आ रही हैं. झारखंड में छोटी पार्टियों की बात करें तो इसमें सबसे अहम पार्टियों में शुमार है वह वाम दल. वाम दल की सीपीआईएम (एल), सीपीआई (एम), सीपीआई और मासस झारखंड में ज्यादा सक्रिय हैं.
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रामगढ़ क्षेत्र की बात करें तो यहां पर वाम दल की सीपीआई पार्टी का शुरू से दबदबा रहा है. साल 2000 से पहले रामगढ़ के विधायक भी सीपीआई के हुआ करते थे. ऐसे में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लिए रामगढ़ का चुनाव अपने आप में काफी अहम है. सीपीआई के वरिष्ठ नेता महेंद्र पाठक बताते हैं कि रामगढ़ विधानसभा सीपीआई का गढ़ रहा है, इस क्षेत्र में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने तीन बार विधानसभा के चुनाव में फतह हासिल की है. 1972 में मंजुरूल हसन खान ने जीत पाई थी. उसके बाद उनकी पत्नी सहीदू निशा ने सीपीआई का परचम रामगढ़ में लहराया था. वहीं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के ही बेड़ा सिंह ने भी रामगढ़ का नेतृत्व किया है. बेड़ा सिंह कई बार रामगढ़ से चुनाव लड़े और जनता का उन्हें समर्थन भी मिला. जिसके बाद वह रामगढ़ से विधायक के रूप में भी चुने गए.
भाजपा पर सरकारी तंत्रों का दुरुपयोग करने का आरोप: भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव महेंद्र पाठक बताते हैं कि झारखंड राज्य बनने के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के द्वारा सरकारी तंत्रों का दुरुपयोग कर रामगढ़ सीट को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से छीना गया, लेकिन आज भी रामगढ़ क्षेत्र की जनता भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी पर भरोसा करती है, जिसका प्रमाण 27 फरवरी को रामगढ़ उपचुनाव में देखने को मिलेगा.
2019 के चुनाव में मिली हार पर सफाई: मालूम हो कि साल 2019 के आम चुनाव में वाम दल ने अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन वाम दल की सभी पार्टियों के प्रत्याशियों की हालत सबसे खराब देखने को मिली. पिछले चुनाव का परिणाम देखते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव व वरिष्ठ नेता महेंद्र पाठक बताते हैं कि वर्ष 2019 के चुनाव में आनन-फानन में पार्टी ने अपना कैंडिडेट खड़ा किया था, जिसका नुकसान हमें भुगतना पड़ा, लेकिन इस बार के चुनाव में उनकी पार्टी मजबूती के साथ आएगी और आम लोगों का पार्टी पर विश्वास भी बढ़ेगा. उन्होंने बताया कि रामगढ़ क्षेत्र में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने कई आंदोलन किए जिसका नतीजा है कि आज भी पार्टी के प्रति लोगों का प्यार और विश्वास बना हुआ है.
क्या कहते हैं वाम दल के नेता: वहीं जब ईटीवी भारत के संवाददाता ने उनसे सवाल किया कि क्या रामगढ़ उपचुनाव में सभी वाम दल एकजुट होकर चुनाव लड़ने को तैयार हैं तो इस पर वह कुछ भी कहने से बचते नजर आए. भाकपा माले के राज्य सचिव मनोज भक्त से बात की गई तो उन्होंने भी कहा कि वर्तमान में वहां पर चुनाव वाम दल किस प्रकार से लड़ेगी. इसका समीकरण अभी तक तय नहीं हुआ है, लेकिन हमने यह जरूर तय कर लिया है कि भारतीय जनता पार्टी को हराने के लिए हमें जो भी समीकरण बनाना होगा हम उस में बैठने के लिए तैयार हैं.
एकजुट होकर चुनाव में उतरने की तैयारी में वाम दल: वही सीपीआई (एम) की तरफ से प्रकाश विप्लव ने बताया कि जिस प्रकार से वाम दल की सीपीआई पार्टी रामगढ़ में मजबूत स्थिति में देखी गई है, ऐसे में वाम दल की तरफ से यही प्रयास किया जा रहा है कि सभी वाम दल एकजुट होकर चुनाव में उतरें. ताकि भारतीय जनता पार्टी और एनडीए को पराजित किया जा सके. पिछली बार के आम चुनाव में भाकपा माले और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की तरफ से अपने प्रत्याशी उतारे गए थे, जिसका लाभ कहीं ना कहीं बड़ी पार्टियों को मिला था.
राजनीतिक समीकरण बदल सकता है वाम दल: रामगढ़ क्षेत्र में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा रहा है. राज्य गठन से पहले रामगढ़ विधानसभा सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के विधायक तो रहे ही हैं, साथ ही हजारीबाग लोकसभा में भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता भुवनेश्वर मेहता भी सांसद के रूप में रामगढ़ के जनता की सेवा कर चुके हैं. इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि यदि रामगढ़ के चुनाव में वाम दल मजबूती के साथ आती है तो यह राजनीतिक समीकरण को पूरी तरह से बदलने का काम करेगी.
लिटमस टेस्ट की तरह है रामगढ़ उपचुनाव: रामगढ़ में होने वाले उपचुनाव सभी पार्टियों के लिए लिटमस टेस्ट की तरह देखा जा रहा है, जो भी राजनीतिक पार्टी यहां से जीत प्राप्त करेगी यह माना जा रहा है कि आने वाले समय में वही पार्टी राज्य की सरकार की दशा और दिशा तय करेगी. अब देखने वाली बात होगी रामगढ़ में वाम दल क्या राजनीतिक समीकरण बनाता है और बनने वाले इस समीकरण से क्या परिणाम आता है.