रांची: छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 यानी सीएनटी और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 यानी एसपीटी जैसे कानून के बावजूद झारखंड के आदिवासी और मूलवासी रैयतों की जमीन उनके हाथों से खिसक रही है. पूरा खेल सिंडिकेट बनाकर किया जा रहा है. चंद सफेदपोश यहां के आदिवासी और मूलवासी नौजवानों को पैसे खिलाकर गरीबों की रैयती और गैर-मजरूआ जमीन का नेचर बदलकर धड़ल्ले से खरीद बिक्री कर रहे हैं.
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इस मामले में चल रही ईडी की कार्रवाई से बहुत कुछ साफ भी हो चुका है. राजधानी में कई बड़े जमीन के प्लॉट के कागजात बदलकर खरीदे और बेचे जा चुके हैं. इस सिंडिकेट में अंचल कार्यालयों के भी चंद लोग शामिल है. इसके तार कोलकाता के रजिस्ट्रार ऑफिस तक से जुड़े हैं. तभी तो रांची के पूर्व डीसी छवि रंजन समेत कई जालसाज सलाखों के पीछे जा चुके हैं. कई सफेदपोश से पूछताछ चल रही है.
इन मामलों के सामने आने के बाद झारखंड की फजीहत हो रही है. ऐसी स्थिति बन गई है पाई-पाई जोड़कर अपने घर का सपना देखने वाले जमीन खरीदने से घबरा रहे हैं. ईडी की कार्रवाई के बाद जमीन की हेराफेरी से जुड़े मामले लेकर लोग ईडी के दफ्तर पहुंच रहे हैं. ऐसे मामले सिर्फ राजधानी में सेना जमीन, चेशायर होम जमीन, नामकुम जमीन और हेहल के बड़े प्लॉट तक ही सीमित नहीं हैं. वैसे ईडी के दावे के मुताबिक इन जमीन के प्लॉट से जुड़े सरकारी रजिस्टर में छेड़छाड़ और हेराफेरी की फॉरेंसिक जांच में डीएफएस, गांधीनगर, गुजरात ने भी मुहर लगा दी है.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सूबे का राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग बहुत कुछ जानते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहा है. जमीन की हेराफेरी का जाल पूरे राज्य में फैला हुआ है. राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग खुद स्वीकार कर रहा है कि गिरिडीह के पीरटांड अंचल स्थित मधुबन और पारसनाथ में अवैध जमाबंदी के कई मामले सामने आए हैं. जैन धर्मावलंबियों से सबसे पवित्र और बड़े तीर्थ स्थल के आसपास की जमीन लूटी जा रही है. यहां वनभूमि और सरकारी जमीन तक पर अतिक्रमण हुआ है.
जमीन की हेराफेरी का जाल जमशेदपुर तक फैला हुआ है. खुद सरकारी दस्तावेज बता रहे हैं कि जमशेदपुर अंचल में सरकारी जमीन को असामाजिक तत्वों ने अतिक्रमण कर बेच दिया है. सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक विभाग का दावा है कि सरकारी जमीन बेचने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई की जा रही है. खाली पड़े सरकारी जमीन पर बोर्ड लगाए जा रहे हैं.
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विभागीय आंकड़ों के मुताबिक साल 2021-22 में टाटा लीज क्षेत्र में 37 तो गैर टाटा लीज क्षेत्र में 89 मामले दर्ज हैं. जबकि 2022-23 में टाटा लीज क्षेत्र में 164 और गैर टाटा लीज क्षेत्र में 106 मामले दर्ज हुए हैं. आंकड़े बता रहे हैं कि साल दर साल कितनी तेजी से सरकारी जमीनों का नेचर बदलकर खरीद-बिक्री की जा चुकी है. विभाग के मुताबिक पिछले दो वर्षों में जमशेदपुर अंचल में 3.93 एकड़ जमीन को अतिक्रमण मुक्त कराया गया है. सूत्र बताते हैं कि बोकारो में भी वन विभाग की जमीन का नेचर बदलकर व्यापक स्तर पर जमीन की खरीद-बिक्री हुई है.
झारखंड आदिवासी मूलवासी रैयत तेजी से अपनी जमीन गंवा रहे हैं. एक तो कागजों की हेराफेरी से और दूसरे औद्योगिक इकाइयों के स्थापित किए जाने के नाम पर. पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम में व्यापक स्तर पर उद्योग के नाम पर जमीन हस्तांतरित की गई है. लेकिन ज्यादातर जमीन पर कोई उद्योग स्थापित नहीं हुआ. सीएनटी एक्ट 1908 की धारा 49(5) के तहत ससमय उद्योग नहीं लगने पर भूमि हस्तांतरण की अनुमति रद्द करने का प्रावधान है. लेकिन रैयतों की कोई सुनने वाला नहीं. वह जनप्रतिनिधियों और अंचल कार्यालयों के चक्कर काटते-काटते मायूस हो जाते हैं.
आलम यह है कि जिस निबंधन ऑफिस से सरकार को मोटा राजस्व मिलता है, उनमें से ज्यादातर निबंधन कार्यालय भूतिया खंडहर की तरह दिखते हैं. सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि कोडरमा, गोड्डा, सिमडेगा, लोहरदगा, लातेहार, खूंटी, रामगढ़ जैसे कुछ निबंधन कार्यालयों को छोड़ दें तो ज्यादातर के जीर्णोद्धार की जरूरत है. जब यह बात उठी तो 9 मार्च 2023 को पत्र जारी कर जर्जर निबंधन कार्यालयों के भवन से संबंधित प्रतिवेदन की मांग की गई है ताकि उनका जीर्णोद्धार कर आम लोगों को मूल सुविधाएं मुहैया कराई जा सके.
इस विभाग की अहमियत इस बात से समझी जा सकती है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में भू-राजस्व मद में 1,435 करोड़ रु का कलेक्शन हुआ था. वहीं स्टांप और रजिस्ट्रेशन फीस मद में 926.79 करोड़ रु. सरकार के खाते में गये थे. लेकिन जमीन दलालों के सिंडिकेट की वजह से सरकारी खजाने में भी सेंध लगायी जा रही है.