रांची: झारखंड में सरना धर्म कोड के मुद्दे को लेकर सत्ताधारी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के एक प्रतिनिधिमंडल ने इस मुद्दे को लेकर मुख्यमंत्री से मुलाकात की है. प्रतिनिधिमंडल ने मांग की है कि 2021 के जनगणना प्रपत्र में सरना धर्म कोड का प्रावधान हो और इसके लिए राज्य सरकार बिल पारित कर केंद्र सरकार को भेजे. मुख्यमंत्री से कहा गया कि झारखंड आदिवासी बहुल राज्य है और यहां की एक बड़ी आबादी सरना धर्म मानती है, लेकिन इसे अलग धर्म कोड का दर्जा नहीं मिल सका है. इसका असर आदिवासी समाज के धार्मिक और सामाजिक गतिविधियों पर पड़ रहा है. आदिवासी समाज के लोग सालों से सरना धर्म कोड की मांग को लेकर आंदोलन करते आ रहे हैं. सरकार को इस दिशा में ठोस पहल करनी चाहिए.
1951 तक था अलग धर्म कोड
झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री को बताया कि 1871 से लेकर 1951 तक जनगणना प्रपत्र में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड था. लेकिन 1961-62 के जनगणना प्रपत्र से आदिवासी धर्म कोड को हटा दिया गया. इतना ही नहीं 2011 के जनगणना में देश के 21 राज्यों के लगभग पचास लाख आदिवासियों ने सरना धर्म कोड लिखा था. ऐसे में 2021 के जनगणना में भी सरना धर्म कोड दर्ज करने का प्रावधान किया जाए.
मुख्यमंत्री से मुलाकात करने वाले प्रतिनिधिमंडल में चाईबासा विधायक दीपक बिरुवा, तमाड़ विधायक विकास सिंह मुंडा, गुमला विधायक भूषण तिर्की, पोटका विधायक संजीव सरदार, जुगसलाई विधायक मंगल कालिंदी, पूर्व विधायक अमित महतो, पूर्व विधायक जोगेंद्र प्रसाद, रामगढ़ के पार्टी जिलाध्यक्ष विनोद किस्कू और बोकारो के जिलाध्यक्ष हीरालाल हांसदा शामिल थे.
वहीं सीएम ने ट्विट कर कहा कि 'आज झामुमो केंद्रीय समिति के माननीय सदस्यों ने सरना धर्म कोड बिल पारित कर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजने हेतु पत्र सौंपा. पार्टी की तरफ से जन आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए शीघ्र विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर बिल पारित करने की मांग की गयी है. जल्द ही इस पर निर्णय लिया जाएगा।'