रांचीः प्रदेश में महागठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रहे झारखंड मुक्ति मोर्चा का दावा है कि कोरोना महामारी की चुनौतियों के बावजूद पिछले 8 महीने में सरकार ने अपने कई वायदों को पूरा करने के लिए कदम बढ़ा दिया है. पार्टी का कहना है कि दो साल में इसके नतीजे दिखने लगेंगे. हालांकि पार्टी का कहना है कि कुछ चुनौतियां अभी बाकी हैं, जिन्हें हम पार कर लेंगे.
पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडे ने मीडिया को बताया कि राज्य के लोगों ने झारखंड मुक्ति मोर्चा को 5 साल के लिए जनादेश दिया है पर राज्य सरकार 2 साल में ही अपने सभी वादों को पूरा कर देगी. उन्होंने कहा कि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जिन मुद्दों को समाहित किया है, उन सब पर एक-एक कर अमल कराया जा रहा है.
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इन पर सरकार एक्शन में
झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडे ने बताया कि हमारे पॉलिटिकल मेनिफेस्टो के अनुसार स्टेट कैबिनेट ने पत्थलगड़ी आंदोलन के समर्थक आदिवासियों के खिलाफ दर्ज केस वापस लेने के निर्देश दे दिए हैं. इतना ही नहीं पिछले दिनों निर्माण कार्य के टेंडर में 25 करोड़ तक के टेंडर के लिए स्थानीय लोगों को प्राथमिकता देने का भी सरकार ने फैसला ले लिया है.
रोजगार के फ्रंट पर ये कदम उठाए
पांडे ने बताया कि रोजगार के फ्रंट पर एक तरफ राज्य सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे कर्मचारियों के नियमितीकरण, सेवा शर्त नियमावली बनाने और अन्य मामलों को लेकर एक हाई लेवल कमिटी बना दी है, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर कॉन्ट्रैक्ट कर्मियों की नौकरियों पर सरकार निर्णय लेगी. वहीं निजी क्षेत्र में मुख्यमंत्री ने स्थानीय लोगों के लिए 75% आरक्षण की बात भी कही है. इस पर भी नियम बनाने के लिए अधिकारियों को निर्देश दिया गया है और जल्द ही एक पॉलिसी बनकर तैयार हो जाएगी.
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100 यूनिट मुफ्त बिजली पर हुआ फैसला
पांडे के मुताबिक आम लोगों के लिए 100 यूनिट तक बिजली मुफ्त करने की घोषणा भी की गई थी. इस पर काम शुरू हो गया है. इसको लेकर अभी सरकार एक फार्मूला तय कर रही है. वहीं शहरी इलाकों में मुख्यमंत्री श्रमिक योजना शुरू की गई है. यह योजना मनरेगा की तर्ज पर शहरी इलाकों में 100 दिन रोजगार की गारंटी देगी. इसके तहत लगभग 5 लाख परिवार लाभान्वित होंगे. वहीं किसानों के ऋण माफी के लिए भी राज्य सरकार आगे बढ़ रही है.
इन मसलों से पार पाना नहीं आसान
पांडे के मुताबिक राज्य की स्थानीयता नीति को लेकर एक सर्व स्वीकार्य पॉलिसी बनाना राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती है. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जहां एक तरफ 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय नीति परिभाषित करने की बात कही है. वहीं दूसरी तरफ पूर्ववर्ती सरकार की बनाई स्थानीय नीति का कट ऑफ ईयर 1985 है, झारखंड मुक्ति मोर्चा के 1932 के फार्मूले पर सहयोगी कांग्रेस और राजद में मतभेद होने की आशंका है.
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बेरोजगारी भत्ते पर भी राह नहीं आसान
ऐसे में सरकारी नौकरियों में खाली पड़े पद पर नियुक्ति प्रभावित हो सकती है. वहीं बेरोजगारी भत्ते को लेकर भी समस्याएं खड़ी हो सकती हैं, झारखंड मुक्ति मोर्चा के मेनिफेस्टो में वर्णित भूमि अधिकार कानून और रोजगार अधिकार कानून बनाना भी एक बड़ी चुनौती होगी, जबकि पारा शिक्षक और पारा मेडिकलकर्मियों के आंदोलन को डील करने में राज्य सरकार को काफी मशक्कत करनी होगी.