रांची: एक ओर राज्य सरकार के द्वारा नियोजन नीति में संशोधन कर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की तैयारी की जा रही है. वहीं दूसरी ओर छात्र सरकार के द्वारा किए गए संशोधन से संतुष्ट नहीं दिख रहे हैं. नियोजन नीति में झारखंड के मूलवासियों की अनदेखी का आरोप लगाते हुए शुक्रवार को छात्रों ने ट्विटर पर अभियान चलाया. जिसमें लाखों छात्र जुड़े. छात्र खतियान आधारित नियोजन नीति की मांग कर रहे.
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नियोजन नीति में 60: 40 पर असहमति: नेता देवेंद्र नाथ महतो का मानन है कि सरकार ने नियोजन नीति में संशोधन कर झारखंड के युवाओं के साथ अन्याय किया है. जब तक स्थानीय नीति तय नहीं होती है तब तक इस नियोजन नीति को बनाने का कोई मतलब नहीं है. उन्होंने हेमंत सरकार के नियोजन नीति में 60:40 के अनुपात पर असहमति जताई. इस नीति से बाहरी लोगों का प्रवेश नौकरियों होगा. ट्विटर अभियान में बड़ी संख्या में राज्यभर से जुड़े युवाओं ने अपनी अपनी बात रखी. सरकार के फैसले का विरोध किया. छात्रों का मानना है कि सरकार सिर्फ नौकरी के नाम पर युवाओं को छलने का काम करती रही है. इस वजह से आज भी युवा सड़कों पर हैं. लंबे समय से नियुक्ति प्रक्रिया लटकी हुई है. सरकार की नीयत साफ नहीं है.
नीति स्पष्ट नहीं होने से युवा परेशानः झारखंड में नियोजन नीति के झमेल में यहां के युवा फंसते रहे हैं. राज्य गठन के बाद से अब तक तीन बार नियोजन नीति बन चुकी है. जब जिसकी सरकारें रही नियोजन नीति अपने हिसाब से बनती रही. सबसे पहले राज्य गठन के बाद बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में बनी. सरकार ने राज्य में स्थानीय और नियोजन नीति बनाकर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करने की कोशिश की. मगर झारखंड हाईकोर्ट से इसे खारिज कर दिया गया. इसके बाद 2016 में रघुवर दास के नेतृत्व में बनी. सरकार ने नियोजन नीति तो बनाया लेकिन इसमें राज्य के 13 जिलों को अनुसूचित क्षेत्र और 11 जिलों को सामान्य श्रेणी का प्रावधान कर विवादित बना दिया. जिसका खामियाजा यहां के छात्र भी उठाते रहे हैं. कानूनी लड़ाई के बाद यह नियोजन नीति भी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो गई. अंत में सरकार को इसे भी रद्द करना पड़ा.
नियोजन नीति पर हेमंत भी नहीं उतरे खरे: 2019 में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी यूपीए की सरकार ने अपने घोषणा पत्र के अनुरूप नियोजन नीति बनाने की प्रक्रिया शुरू की. जो 2021 में तैयार होने के बाद इसे लागू किया गया. हेमंत सरकार का यह नियोजन नीति भाषाई विवाद और झारखंड से मैट्रिक- इंटर पास होने की अनिवार्यता के मुद्दे पर काफी विवादों में आ गया. और अंततः हाईकोर्ट ने इसे रद्द कर दिया. इस वजह से एक दर्जन से अधिक नियुक्ति प्रक्रिया सरकार की लटक गई. छात्र एक बार फिर सड़कों पर आ गए. सरकार ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की है. जिसके तहत एक बार फिर हाल ही में कैबिनेट के द्वारा नियोजन नीति में मैट्रिक इंटर पास की अनिवार्यता को खत्म कर दिया गया है. इसके अलावे हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी को क्षेत्रीय भाषाओं के साथ साथ जोड़ा गया है. मगर स्थानीय नीति का मुद्दा आज भी स्पष्ट नहीं हो पाया है. ऐसे में छात्र आक्रोशित हैं.