रांची: सीएम हेमंत सोरेन से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में फैसला आने वाला है. यह फैसला झारखंड की आगे की राजनीति तय करेगा. 12 अगस्त को निर्वाचन आयोग में दोनों पक्षों की बहस पूरी हो चुकी है. 18 अगस्त को दोनों पक्षों की ओर से लिखित दलील सौंपी जा चुकी है. अब आयोग को अपने फैसले से राजभवन को अवगत कराना है. 29 अगस्त को दुमका से झामुमो विधायक बसंत सोरेन की सदस्यता मामले में भी चुनाव आयोग में सुनवाई होनी है.
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सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सितंबर माह का पहला सप्ताह बेहद क्रूशियल होने वाला है. हालांकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के वकीलों ने अपनी दलील में दावा किया है कि यह मामला लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 9ए के अधीन आता ही नहीं है. यह भी दलील दी गई है कि रांची के अनगड़ा में स्टोन माइनिंग के लिए आवंटित 88 डिसमिल जमीन पर किसी तरह का व्यवसायिक काम नहीं हुआ है. दूसरी तरफ भाजपा की दलील है कि खान मंत्री रहते हुए उन्होंने अपने नाम पर खनन पट्टा आवंटित किया था.
तमाम बिंदुओं पर हो चुका है मंथन: सीएम से जुड़े मामले की चुनाव आयोग में सुनवाई के बाद सत्तापक्ष ने भी अपनी तैयारी कर ली है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक तमाम विकल्पों पर रायशुमारी हो चुकी है. अगर सीएम की सदस्यता समाप्त करने की सिफारिश की जाती है तो सरकार की सेहत पर कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा. हेमंत सोरेन दोबारा बरहेट से उपचुनाव लड़कर विधायक बन सकते हैं. अगर उन्हें कुछ वर्षों के लिए अयोग्य करार दिया जाता है, तब सत्ताधारी दलों को किसी दूसरे को अपना नेता चुनना होगा. अब सवाल है कि ऐसी नौबत आई तो हेमंत सोरेन किसको जिम्मेदारी सौंपेंगे. विकल्प के रूप में कई नामों की चर्चा है लेकिन इसका जवाब फिलहाल सीएम के पास है. जानकारों का मानना है कि ऐसी परिस्थिति में गुरूजी के परिवार के ही किसी सदस्य को जिम्मेदारी दी जा सकती है.
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पूर्व सीएम रघुवर दास ने उठाया था मामला: इस मामले को 10 फरवरी को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उठाया था. उन्होंने 11 फरवरी को राज्यपाल से मिलकर हेमंत सोरेन को विधायक पद से अयोग्य ठहराने की मांग की थी. बाद में इस मामले को राजभवन ने चुनाव आयोग को रेफर कर दिया था. उसी आधार पर सबसे पहले चुनाव आयोग ने मुख्य सचिव से वेरिफाइड डॉक्टूमेंट्स की मांग की थी. इसके बाद आयोग में दोनों पक्षों की ओर से दलीलें पेश की गई थी.
पूर्व में मधु कोड़ा पर हो चुका है एक्शन: ऐसा नहीं है कि झारखंड में पहली बार किसी को अयोग्य करार देने का मामला चुनाव आयोग में गया है. इससे पहले साल 2017 में चुनाव आयोग ने पूर्व सीएम मधु कोड़ा को चुनाव लड़ने पर रोक लगा दिया था. उनपर 2009 के लोकसभा चुनाव में खर्च का गलत ब्यौरा देने का आरोप लगा था. उन्हें लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 10ए के तहत तीन साल के लिए अयोग्य करार दिया गया था. इसी वजह से मधु कोड़ा साल 2019 का चुनाव नहीं लड़ पाए थे. उनकी पत्नी गीता कोड़ा कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ी थी और जीत भी दर्ज की थी.
मनोज कुमार भुईंया को भी गंवानी पड़ी थी सदस्यता: पलामू से राजद सांसद मनोज कुमार भुईंया को भी अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी. साल 2005 में पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले के 11 सांसदों पर कार्रवाई हुई थी. इनमें भाजपा के छह, बीएसपी के तीन और राजद-कांग्रेस के एक-एक सांसद का नाम सामने आया था. सांसदों के इस आचरण को बेहद गंभीर बताते हुए निष्कासन को लेकर सदन में वोटिंग भी हुई थी. बाद में दिल्ली की विशेष अदालत में इन सभी सांसदों के खिलाफ आपराधिक साजिश के तहत मुकदमा भी चला था.