रांची: झारखंड जैप 10 महिला बटालियन की सिपाहियों की प्रोन्नति के लिए महिला-पुरुष सिपाहियों के लिए अलग-अलग बनाई गई सीनियरिटी लिस्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई. मामले की सुनवाई के दौरान झारखंड हाईकोर्ट ने सरकार पर तल्ख टिप्पणी की. झारखंड उच्च न्यायालय ने कहा कि महिला और पुरुष कर्मचारियों में भेदभाव करना संविधान का उल्लंघन करना है. झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य के पुलिस प्रमुख डीजीपी को महिला और पुरुष सिपाहियों की वरीयता सूची एक साथ बनाने का निर्देश दिया है. हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग 6 सप्ताह में प्रोन्नति की वरीयता सूची बनाए और इससे कोर्ट को अवगत कराए. मामले की अगली सुनवाई 6 सप्ताह बाद होगी.
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झारखंड हाई कोर्ट के अधिवक्ता शुभाशीष सोरेन ने बताया कि झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश डॉ. एसएन पाठक की अदालत में महिला-पुरुष सिपाहियों की वरिष्ठता सूची अलग-अलग बनाए जाने के मामले पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने अदालत से गुहार लगाई कि प्रोन्नति के लिए जो सूची बनाई गई है, उसमें नियम की अनदेखी की गई है. इसलिए प्रोन्नति के लिए बनाई गई वरीयता सूची को निरस्त कर नए सिरे से सूची बनाने के आदेश दिया जाए.
अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि पुरुष सिपाहियों के लिए वरीयता सूची अलग और महिला सिपाहियों की वरीयता सूची अलग बना दी गई है. जिससे महिला सिपाहियों को पुरुष सिपाहियों की अपेक्षा प्रोन्नति में उतनी जगह नहीं मिल सकती है. जितनी कि उन्हें मिलनी चाहिए. इसलिए दोनों की सूची एक साथ होनी चाहिए. ताकि दोनों में विभेद ना हो. अदालत ने उनकी दलील पर अपनी सहमति जताई. इसके बाद झारखंड हाई कोर्ट ने पुलिस विभाग को महिला और पुरुष सिपाहियों की प्रोन्नति के लिए वरीयता सूची एक साथ बनाने का निर्देश दिया.
यह था मामला
बता दें कि जैप 10 महिला बटालियन की उर्मिला कच्छप एवं अन्य ने प्रोन्नति के लिए बनाई गई वरीयता सूची को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस विभाग द्वारा महिला सिपाही और पुरुष सिपाहियों के लिए अलग-अलग वरीयता सूची बनाई गई है. जिस कारण से महिला सिपाहियों को प्रोन्नति का लाभ नहीं मिल पा रहा है. महिला सिपाही की उम्र 50 वर्ष हो गई है. लेकिन वह उसी पद पर है, उन्हें प्रोन्नति नहीं मिल पाई है. इसलिए उन्होंने पुरुष और महिला सिपाही की वरीयता सूची एक साथ बनाने की मांग की है. उसी याचिका पर सुनवाई हुई.