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Employment Policy: झारखंड में फिर बजने लगी नियोजन नीति की डफली, बजट सत्र में विधेयक लाने की तैयारी, स्वरूप पर सत्ताधारी दलों के पास नहीं है जवाब - नियोजन नीति

नियोजन नीति को लेकर झारखंड में राजनीति काफी तेज चल रही है. नियोजन नीति को लेकर जहां विपक्ष लगातार दबाद बना रहा है. वहीं सत्ता पक्ष के लोग जल्द से जल्द नियोजन नीति लाने की बात तो करते हैं, लेकिन उसके स्वरूप पर खुलकर कुछ भी कहने से बचते हैं.

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Published : Feb 16, 2023, 9:35 PM IST

रांचीः बजट सत्र शुरू होने से पहले फिर एक बार झारखंड की राजनीति में नियोजन नीति की डफली बजने लगी है. विपक्षी दल जहां नियोजन नीति के बहाने सरकार को युवा विरोधी बताने में लगे हैं तो सत्ताधारी दल के नेता बजट सत्र में ही नई नियोजन नीति लाने की बात करने लगे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि पहले चार बार रद्द हो गयी नियोजन नीति के बाद इस बार ऐसा क्या होगा नई नियोजन नीति में कि वह राज्य के युवा वर्ग की आकांक्षाओं पर खड़ा उतरे और कानूनी रूप से भी ठीक हो. इस सवाल का जवाब सत्ताधारी दलों के नेताओं के पास नहीं है. झामुमो, कांग्रेस और राजद के नेता सिर्फ इतना कहते हैं कि बजट सत्र के दौरान सरकार नियोजन नीति लाकर युवाओं की नियुक्ति का राह प्रशस्त करेगी.

ये भी पढ़ेंः Babulal Marandi On Niyojan Niti: नियोजन नीति पर बीजेपी ने सरकार को घेरा, बाबूलाल मरांडी ने कहा- जल्द लागू नहीं हुआ तो बीजेपी करेगी आंदोलन

युवाओं में बढ़ रहा है असंतोषः बढ़ते बेरोजगारी और राज्य में खाली पड़े पदों पर भर्ती नहीं होने से युवाओं में शासन के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा है. हेमंत सोरेन और राज्य की सत्ता में शामिल तीनों दल के नेता भी युवाओं में उभर रहे असंतोष के भाव को भांप रहे हैं. यही वजह है कि सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के नेता जल्द से जल्द नई नियोजन नीति के लिए विधेयक बनाकर उसे विधानसभा से पारित कराने के पक्षधर हैं. सरकार और सत्ताधारी दल युवाओं में यह मैसेज देना चाहते हैं कि राज्य की सरकार युवाओं और उनके रोजगार को लेकर पूरी तरह गंभीर है.

कांग्रेस के प्रदेश महासचिव और प्रवक्ता राकेश सिन्हा कहते हैं कि सरकार, बजट सत्र के दौरान ही एक सर्वमान्य और विधि के अनुरूप नियोजन नीति के प्रारूप को विधानसभा के पटल पर रख कर उसे पारित कराएगी. राकेश सिन्हा ने कहा कि वर्तमान सरकार युवाओं की हितैषी है और वह चाहती है कि युवाओं को पक्की और स्थायी नौकरी मिले. उन्होंने कहा कि दरअसल पिछली भारतीय जनता पार्टी की सरकार के पाप हमारी सरकार के माथे आ गया है.

वहीं राष्ट्रीय जनता दल के महासचिव और प्रवक्ता डॉ मनोज कुमार ने कहा कि सरकार एक ऐसी नियोजन नीति लाने जा रही है जो झारखंड के युवाओं की उम्मीदों पर खड़ी उतरेगी. उन्होंने कहा कि अदालत द्वारा पूर्व की नियोजन नीति को रद्द करने पर वह कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन यह जरूर है कि इस बार ठोक बजाकर ही नीति लाई जाएगी.

झारखंड में 10 वीं और 12 वीं झारखंड से ही पास होने पर थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरी के लिए आवेदन करने की अहर्ता और हिंदी की जगह उर्दू को स्थानीय भाषा की सूची में शामिल करने सहित कई बिंदु थे जिस की वजह से कानूनी स्तर पर पूर्व की नियोजन नीति को उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था. झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता मनोज पांडे ने कहा कि झारखंड के युवाओं की इच्छा के अनुरूप नियोजन नीति की मांग पार्टी की है, जो झारखंड के बेटे बेटियों के लिए नौकरियों का द्वार खोले. उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से नई नियोजन नीति में भी झारखंड के युवाओं के हितों की रक्षा होगी.

क्या नियोजन नीति में जिन बिंदुओं को उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक बताकर नीति को ही रद्द कर दिया था, उससे इतर एक सर्वमान्य नियोजन नीति लेकर सरकार आएगी या फिर युवाओं के भविष्य से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा एक बार फिर सिर्फ राजनीतिक नफा नुकसान का विषय बन कर रह जाएगा. यह एक बड़ा सवाल है, जिसका जवाब फिलहाल राज्य के सत्ताधारी राजनीतिक दलों के पास नहीं है.

रांचीः बजट सत्र शुरू होने से पहले फिर एक बार झारखंड की राजनीति में नियोजन नीति की डफली बजने लगी है. विपक्षी दल जहां नियोजन नीति के बहाने सरकार को युवा विरोधी बताने में लगे हैं तो सत्ताधारी दल के नेता बजट सत्र में ही नई नियोजन नीति लाने की बात करने लगे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि पहले चार बार रद्द हो गयी नियोजन नीति के बाद इस बार ऐसा क्या होगा नई नियोजन नीति में कि वह राज्य के युवा वर्ग की आकांक्षाओं पर खड़ा उतरे और कानूनी रूप से भी ठीक हो. इस सवाल का जवाब सत्ताधारी दलों के नेताओं के पास नहीं है. झामुमो, कांग्रेस और राजद के नेता सिर्फ इतना कहते हैं कि बजट सत्र के दौरान सरकार नियोजन नीति लाकर युवाओं की नियुक्ति का राह प्रशस्त करेगी.

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युवाओं में बढ़ रहा है असंतोषः बढ़ते बेरोजगारी और राज्य में खाली पड़े पदों पर भर्ती नहीं होने से युवाओं में शासन के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा है. हेमंत सोरेन और राज्य की सत्ता में शामिल तीनों दल के नेता भी युवाओं में उभर रहे असंतोष के भाव को भांप रहे हैं. यही वजह है कि सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के नेता जल्द से जल्द नई नियोजन नीति के लिए विधेयक बनाकर उसे विधानसभा से पारित कराने के पक्षधर हैं. सरकार और सत्ताधारी दल युवाओं में यह मैसेज देना चाहते हैं कि राज्य की सरकार युवाओं और उनके रोजगार को लेकर पूरी तरह गंभीर है.

कांग्रेस के प्रदेश महासचिव और प्रवक्ता राकेश सिन्हा कहते हैं कि सरकार, बजट सत्र के दौरान ही एक सर्वमान्य और विधि के अनुरूप नियोजन नीति के प्रारूप को विधानसभा के पटल पर रख कर उसे पारित कराएगी. राकेश सिन्हा ने कहा कि वर्तमान सरकार युवाओं की हितैषी है और वह चाहती है कि युवाओं को पक्की और स्थायी नौकरी मिले. उन्होंने कहा कि दरअसल पिछली भारतीय जनता पार्टी की सरकार के पाप हमारी सरकार के माथे आ गया है.

वहीं राष्ट्रीय जनता दल के महासचिव और प्रवक्ता डॉ मनोज कुमार ने कहा कि सरकार एक ऐसी नियोजन नीति लाने जा रही है जो झारखंड के युवाओं की उम्मीदों पर खड़ी उतरेगी. उन्होंने कहा कि अदालत द्वारा पूर्व की नियोजन नीति को रद्द करने पर वह कुछ नहीं कहेंगे, लेकिन यह जरूर है कि इस बार ठोक बजाकर ही नीति लाई जाएगी.

झारखंड में 10 वीं और 12 वीं झारखंड से ही पास होने पर थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरी के लिए आवेदन करने की अहर्ता और हिंदी की जगह उर्दू को स्थानीय भाषा की सूची में शामिल करने सहित कई बिंदु थे जिस की वजह से कानूनी स्तर पर पूर्व की नियोजन नीति को उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था. झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता मनोज पांडे ने कहा कि झारखंड के युवाओं की इच्छा के अनुरूप नियोजन नीति की मांग पार्टी की है, जो झारखंड के बेटे बेटियों के लिए नौकरियों का द्वार खोले. उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से नई नियोजन नीति में भी झारखंड के युवाओं के हितों की रक्षा होगी.

क्या नियोजन नीति में जिन बिंदुओं को उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक बताकर नीति को ही रद्द कर दिया था, उससे इतर एक सर्वमान्य नियोजन नीति लेकर सरकार आएगी या फिर युवाओं के भविष्य से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा एक बार फिर सिर्फ राजनीतिक नफा नुकसान का विषय बन कर रह जाएगा. यह एक बड़ा सवाल है, जिसका जवाब फिलहाल राज्य के सत्ताधारी राजनीतिक दलों के पास नहीं है.

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