रांचीः झारखंड सरकार (Jharkhand government) ने बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (Birsa Agricultural University) के वैज्ञानिकों की ओर से ईजाद किए गए 11 फसलों के बीज को मान्यता दे दी है. इनमें उड़द, अरहर, सोयाबीन, सरसो, मक्का, मड़ुआ, बैगन की दो और तीसी की तीन किस्में शामिल हैं. नये बीज अधिक उपज देने वाला, शीघ्र परिपक्व होने वाला, कम पानी की जरूरत और कीड़ा-रोगों के प्रतिरोधी किस्म हैं. वैज्ञानिकों ने बताया कि वर्तमान बीज की तुलना में इस नये किस्म की उत्पादन क्षमता 15 से 20 प्रतिशत अधिक है.
यह भी पढ़ेंःबिरसा कृषि विश्वविद्यालय ने मनाया विश्व दुग्ध दिवस, देसी गाय पालन पर जोर
कृषि सचिव अबूबकर सिद्दीक की अध्यक्षता में राज्य वेरायटी रिलीज कमेटी की बैठक हुई. जिसमें फसलों के नये किस्म के बीज को मान्यता दी गई. बैठक में बीएयू कुलपति डॉ. ओंकार नाथ सिंह, अनुसंधान निदेशक डॉ. ए. वदूद, बीज निदेशक डॉ. ऋषिपाल सिंह, एनबीपीजीआर के डॉ. एसबी चौधरी, झारखंड बीज प्रमाणीकरण एजेंसी के सुरेंद्र कुमार, बीज परीक्षण प्रयोगशाला के अंजनी कुमार आदि उपस्थित थे.
120 दिनों में तैयार हो जाएगा फसल
बीएयू कुलपति डॉ. ओंकार नाथ सिंह और अनुसंधान निदेशक डॉ. वदूद ने कहा कि इन नये बीज से उत्पादकता काफी बढ़ जाएगी. इन किस्मों की परिपक्वता अवधि कम है. 120 दिनों से कम समय में फसल तैयार हो जाएगा. उन्होंने बताया कि धान की कटाई के बाद खाली पड़े खेतों का उपयोग भी किसान कर सकेंगे. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार से मान्यता मिल गई है और केंद्र सरकार को भेजा जा रहा है, ताकि देश के किसानों को फसलों के नये बीज से लाभ मिल सके.
नए किस्म के बीज की मुख्य विशेषताएं
बिरसा उड़द-2: पौधा प्रजनन डॉ सीएस महतो की ओर से विकसित किया गया है. इस किस्म की उत्पादन क्षमता 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और फसल लगभग 82 दिनों में तैयार हो जाएगा. एक फली में 6-7 बड़े भूरे दाने होते हैं. सर्कोस्पोरा, लीफ स्पॉट और जड़ विगलन रोग के प्रतिरोधी है और एफिड का न्यूनतम प्रकोप होता है.
बिरसा अरहर-2: डॉ. नीरज कुमार की ओर से विकसित किया गया है. इस दलहनी किस्म में प्रोटीन की मात्रा 22.48 प्रतिशत है. अंडाकार दाना भूरे रंग का होता है. इसकी उत्पादन क्षमता 27.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और 235-240 दिन में फसल तैयार हो जाएगा. विल्ट और बोरर रोग का प्रतिरोधक है.
बिरसा सोयाबीन-3: डॉ नूतन वर्मा की ओर से विकसित किया गया है. इस बीज में तेल की मात्रा 19 प्रतिशत और प्रोटीन की मात्रा 38.8 प्रतिशत है. उत्पादन क्षमता 27.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
बिरसा भाभा सरसो-1: भाभा आणविक अनुसंधान केंद्र के सहयोग से बीएयू वैज्ञानिक डॉ अरुण कुमार की ओर से विकसित किया गया है. सरसो के इस किस्म में तेल की मात्रा लगभग 40 प्रतिशत है. 112-120 दिनों में फसल तैयार हो जाएगा. उत्पादन क्षमता 14.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
तीसी: मुख्य वैज्ञानिक डॉ. सोहन राम की ओर से तीन किस्म विकसित किया गया है. बिरसा तीसी-1 में तेल की मात्रा 34.6 प्रतिशत है. इसकी औसत उपज 11.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह फसल 128-130 दिनों में तैयार हो जाएगा. तीसी के दूसरे किस्म दिव्या में तेल की मात्रा लगभग 40 प्रतिशत है. औसत उपज 15.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और 127 से 130 दिनों में फसल तैयार हो जाएगा. तीसी की तीसरी किस्म प्रियम में तेल की मात्रा 37 प्रतिशत और औसत उपज 12.5 क्विंटल है.
विरसा बेबी मक्का-1: मुख्य वैज्ञानिक डॉ मणिगोपा चक्रवर्ती की ओर से विकसित किया गया है. औसत उपज 16.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और फसल तैयार होने की अवधि 50-65 दिन है.
बिरसा मड़ुआ-3: पौधा प्रजनन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जेडए हैदर की ओर से विकसित किया गया है. इस फसल की औसत उपज क्षमता 28.5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
बैगन: डॉ. अब्दुल माजिद अंसारी की ओर से बैगन की दो किस्में विकसित किया गया है. इसमें बिरसा चियांकी बैगन-1 और बिरसा चियांकी बैगन-2 शामिल हैं. बिरसा चियांकी बैगन-1 के उपज क्षमता 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और बिरसा चियांकी बैगन-2 उत्पादन क्षमता 375 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.