रांची: 23 साल गुजर गए बिहार से अलग हुए. तब लगा था कि खनिज संपन्न यह राज्य तरक्की की इबारत लिखेगा. शुरुआत भी अच्छी हुई थी. लेकिन राज्य बनने के दो साल के भीतर ही डोमिसाइल की आग लग गयी. तब से आजतक यह राज्य बाहरी-भीतरी, 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीय को नौकरी और आरक्षण जैसे शब्दों में उलझा पड़ा है.
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झारखंड में अब एक नया नारा भी जुड़ गया है '60-40 नाय चलतो, नाय चलतो' का. फिर सवाल है कि कैसे चलतो. क्या ऐसे हालात में झारखंड को बिहार से सीख नहीं लेनी चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि हाल में ही बिहार में ओपन टू ऑल पैरामीटर पर बड़े पैमाने पर शिक्षकों की बहाली हुई है. क्या ऐसी मिसाल कायम करने की ताकत झारखंड के नेताओं में है? बिहार के फैसले को किस रूप में देखते हैं झारखंड के छात्र संगठन और राजनीतिक दल.
बिहार में ओपन टू ऑल पर झारखंड का नजरिया: यह संदर्भ इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि जिस बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना, वह 15 नवंबर को अपनी स्थापना का 22 वां वर्षगांठ मनाने जा रहा है. क्या झारखंड को बिहार से सीख नहीं लेनी चाहिए. क्योंकि स्थानीयता की वजह से कई बहालियां लटकी पड़ी हैं. विज्ञापन निकलता नहीं कि मामला कोर्ट में पहुंच जाता है. इसको किस रूप में देखते हैं यहां के राजनीतिक दल. बाहरी के नाम पर आंदोलन करने वाले छात्र संगठनों का क्या है स्टैंड.
क्या कहते हैं छात्र नेता: छात्र संगठन के नेता देवेंद्र कुमार महतो का कहना है कि बिहार ने वहां के युवाओं के साथ कोई अन्याय नहीं किया है. आदरणीय नीतीश जी खुद कहे हैं कि 12 प्रतिशत नौकरी बाहर के राज्य के युवाओं को मिली है. लेकिन यहां तो बाहर के लोगों के लिए 40 प्रतिशत सीटों तक पहुंचने का रास्ता खोल दिया गया है. झारखंड में पेपर लीक करके पैसे लेकर लोगों को नौकरी दी जा रही है. नीतीश सरकार की तरह हेमंत सरकार भी 88 प्रतिशत झारखंडी और 12 प्रतिशत बाहरी को नौकरी क्यों नहीं देती. इसपर कोई आपत्ति नहीं होगी. लेकिन 88 प्रतिशत को परिभाषित करना होगा. बिहार में अंतिम सर्वे सेटलमेंट के तहत स्थानीयता डिफाइंड है. छात्र संगठनों का कहना है कि यहां की सरकारें अपनी राजनीति करने के लिए बरगलाती रही हैं. यहां भी स्थानीय और नियोजन नीति परिभाषित होना चाहिए. हमारी मांग सिर्फ यही है कि झारखंडी को परिभाषित करें.
झारखंड की सरकार बिहार पुनर्गठन अधिनियम 2000 की उपधारा 85 के तहत गजट को अंगीकृत कर सकती है. बिहार में 3 मार्च 1982 को आधार बनाकर पत्र संख्या 5014/81/SR-806 जारी हुई थी. लेकिन यहां उलटा हो रहा है. बिहार की व्यवस्था लागू हो जाती तो कोर्ट कचहरी का चक्कर ही खत्म हो जाता. छात्र नेता देवेंद्र का कहना है कि जिला स्तर पर अंतिम सर्वे सेटलमेंट को आधार बनाकर स्थानीयता क्यों नहीं तय की जा रही है.
बीजेपी ने क्या कहा: भाजपा प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव ने कहा कि भाजपा का मानना है कि थर्ड और फोर्थ ग्रेड की नौकरियां स्थानीय निवासियों को मिलनी चाहिए. बिहार वाली व्यवस्था को लेकर तत्कालीन बाबूलाल मरांडी की सरकार ने लागू करने की कोशिश की थी लेकिन हाईकोर्ट ने कई टेक्निकल ग्राउंड का हवाला देकर पुनर्विचार करने को कहा था. बाद में रघुवर दास की सरकार ने 1985 को कट ऑफ बनाकर व्यवस्था लागू की. उसका फायदा यहां के स्थानीय को मिला. बड़ी संख्या में यहां के लोगों को नौकरी मिली. लेकिन वर्तमान सरकार स्थानीयता के नाम पर उलझाकर अपनी रोटी सेक रही है.
झामुमो ने क्या कहा: झामुमो प्रवक्ता विनोद पांडेय ने कहा कि किसने कहा कि यहां 60-40 से बाहरी नौकरी ले लेंगे. यहां लोकल भाषा का बैरियर लगा है. आप रिजल्ट देखिए. यहां स्थानीय लोगों को ही प्राथमिकता के आधार पर नौकरी दी जा रही है. ऐसे संगठन सिर्फ भाजपा के इशारे पर राजनीति का हिस्सा बन रहे हैं. स्थानीयता के विषय को विधानसभा से पास करा चुके हैं. फिलहाल तमाम बेहतर वैकल्पिक व्यवस्था के तहत नौकरी दी जा रही है. फिर भी 1932 के खतियान पर आधारित व्यवस्था पर हमारी सरकार कायम है.
सभी के अपने-अपने दावे हैं. इसका खामियाजा नौकरी की आस लगाए बैठे युवाओं को झेलनी पड़ रही है. गौर करने वाली बात यह है कि बिहार में ओपन टू ऑल में कोई बैरियर नहीं था. इसके बावजूद बिहार के 88 प्रतिशत सीटों पर स्थानीय युवाओं का दबदबा रहा.
बिहार में 18 हजार शिक्षक बाहरी: बिहार में 1 लाख 70 हजार शिक्षकों के पद के लिए परीक्षा हुई. इसमें 88 प्रतिशत यानी 1,49,600 सफल हुए. इनमें 12 प्रतिशत यानी 17,952 शिक्षक दूसरे राज्यों के हैं. बिहार ने पूरी बहाली प्रक्रिया को ओपन टू ऑल कर रखा था. विपक्ष ने जरुर आलोचना की. लेकिन सरकार नहीं रुकी. बीपीएससी ने परीक्षा ली और बिना विलंब रिजल्ट भी प्रकाशित कर दिया. कहीं कोई हो हल्ला नहीं हुआ. कहीं तोड़ फोड़ नहीं हुई. झारखंड में नाय चलतो की तरह बिहार में किसी ने नहीं कहा कि 'ना चली '.
बिहार क्या बाहर है, पूरा देश एक है- नीतीश: बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि 'बिहार के लोग भी तो देश के अन्य राज्यों में नौकरी कर रहे हैं. कुछ लोग क्रिटिसाइज कर रहा है कि बाहर का है. इनको पता है कि सब दिन जो बहाली होती है, उसमें देशभर के लोगों को मौका दिया जाता है. पहले नहीं आलोचना करता था. अब कहता है बिहार के बाहर वाले को बुला रहा है. अरे बिहार क्या बाहर है. देश कहीं बाहर है. पूरा देश एक है. बिहार के लोग भी तो दूसरे राज्यों में काम करते हैं. यह कहना बिल्कुल गलत है कि बिहार में दूसरे राज्यों के लोगों को नौकरी देने से यहां के युवाओं के साथ अन्याय हुआ है.'
अब सवाल है कि क्या झारखंड में इस कद का कोई नेता है जो बिहार की तरह इतना बोल्ड फैसले ले सके. इस सवाल का जवाब आखिर कौन देगा.