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Ranchi Contracted Nurses Protest Ended: अनुबंधित नर्सों की हड़ताल समाप्त, इतनी देर से क्यों जगे मंत्री जी!

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Published : Feb 26, 2023, 9:09 AM IST

शनिवार को रांची में स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता से वार्ता के बाद अनुबंधित नर्सों की हड़ताल समाप्त हो गयी. सोमवार से तमाम अनुबंधित नर्स और पारा मेडिकलकर्मी अपने काम पर पहले की तरह लौट जाएंगे. लेकिन सवाल यह कि हड़ताल अवधि में आम बीमार जनता ने जो कष्ट झेला उसकी जवाबदेही किसकी?

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रांचीः एक महीना और 11 दिन, काफी लंबा वक्त होता है, जब किसी राज्य या किसी इलाके की स्वास्थ्य व्यवस्था ठप रहे. हादसे, मौत और बीमारी का कोई तय वक्त मुकर्रर नहीं होता. इसलिए चौबीसों घंटे और साल के 365 दिन निर्बाध चिकित्सिय सुविधा शासन प्रशासन और स्वास्थ्य प्रबंधन द्वारा दिया जाता है. ऐसे में अगर यही व्यवस्था पूरी तरह से ठप हो जाए तो किसी प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था धराशायी होना निश्चित है. 41 दिनों की हड़ताल का असर झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था पर अपना बुरा असर डाला है. ऐसे में एक सवाल उन बीमार लोगों की ओर से है, जिन्हें इस हड़ताल अवधि में वह सुविधाएं नहीं मिली जिसकी वह हकदार थे.

इसे भी पढ़ें- Jharkhand CHO Protest: सीएम आवास घेरने निकले सामुदायिक स्वास्थ्य पदाधिकारियों को पुलिस ने रोका, राजभवन के पास बीच सड़क पर दिया धरना

राष्ट्रीय स्वाथ्य मिशन की अनुबंधित नर्स और पारा मेडिकलकर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल 16 जनवरी को मुख्यमंत्री आवास घेराव के साथ शुरू हुई. अस्पताल के बजाय पूरे प्रदेश के अनुबंधित मेडिकलकर्मी सड़कों पर नजर आए. कभी राजभवन, कभी सीएम आवास तो कभी अनशन के कारण खुद भी अस्पताल में भर्ती हुए. अपनी मांगों के लेकर मुखर और उग्र हो चुके आंदोलनकारियों की शनिवार को स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के साथ वार्ता हुई, जिसके बाद स्वास्थ्यकर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल खत्म हो गयी.

समय पर टीकाकरण नहीं हुआ, जिम्मेदार कौन? 41 दिनों तक चली यह हड़ताल भले ही समाप्त हो और संभव है कि सोमवार से व्यवस्थाएं भी पटरी पर आ जाए. लेकिन इस दौरान बड़ी संख्या में ग्रामीण बच्चों को इस दौरान रूटीन इम्यूनाइजेशन यानी समय पर टीकाकरण नहीं हुआ. दूसरी तरफ हड़ताल कर रहीं नर्सें ही कहती रहीं कि हड़ताल की वजह से महज 15 फीसदी लोगों को ही फाइलेरिया रोधी दवाएं खिलाई जा सकीं. लेकिन उन 85 प्रतिशत लोगों को एमडीए के तहत डीईसी और एल्बेंडाजोल की गोलियों से वंचित रखने की जवाबदेही कौन लेगा?

इतने देर से क्यों जगे मंत्री जी! सवाल यह भी है कि जब सबकुछ आश्वासन पर ही होना था तब स्वास्थ्य महकमा और जनता के वोट से जीतकर स्वास्थ्य मंत्री बने बन्ना गुप्ता को हड़ताल को समाप्त कराने में इतना वक्त कैसे लग गया? क्या विभागीय अधिकारी और मंत्री का पूरा तंत्र पहले इन नर्सों के धरना प्रदर्शन, आमरण अनशन को जान-बूझकर इसलिए लंबा खींचा था ताकि समय बीतने के साथ आंदोलन कमजोर पड़ जाए और फिर वार्ता हो. ऐसे कई सवाल आम जनता के मन में हैं और सवाल उन वंचितों का भी है जो अप्रत्यक्ष रूप से इस लंबी हड़ताल का शिकार हुए. स्वास्थ्य मंत्री से अनुबंधित नर्सों की वार्ता होनी ही थी पहले बातचीत क्यों नहीं की गयी.

सवाल हड़ताली नर्स और पारा मेडिकलकर्मियों से भीः राज्य की साढ़े आठ हजार अनुबंधित एनएचएम नर्स और पारा मेडिकलकर्मियों ने हड़ताल वापस ले ली यह राहत की बात है. पर एक सवाल सबों से भी है कि आपका दिल भी आम जनता की परेशानियों से नहीं पिघला. वार्ता में आपने हड़ताल अवधि के लिए किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई ना करने का विभाग से आश्वासन पाकर आप तो निश्चिंत हो गए. लेकिन उन लोगों का क्या जिन्हें आपकी हड़ताल की वजह से परेशानी उठानी पड़ी.

आंदोलित एनएचएम कर्मियों के संयुक्त मोर्चा के सचिव नवीन कुमार ने फोन पर कहा कि हड़ताल लंबा खींच गया था. ऐसे में जब सरकार ने पहल की तब हमें भी उनके आश्वासन पर विश्वास करना पड़ा. आम जनता को हड़ताल के दौरान हुई परेशानियों को लेकर क्षमा मांगते हुए कहा कि हम लोगों ने भी इस दौरान 24 दिन अनशन कर कष्ट झेला है.

अनुबंधित मेडिकल स्टाफ को इन बिंदुओं पर मिला आश्वासनः शनिवार को स्वास्थ्य मंत्री के साथ अनुबंधित नर्स और पारामेडिकल स्टाफ की बैठक हुई. जिसमें यह सहमति बनी कि अनुबंधित पारा मेडिकलकर्मियों और नर्सों की सेवा नियोजन वर्ष 2014 की नियमावली की जगह वर्तमान में प्रभावी 2018 पारा चिकित्साकर्मियों के नियुक्ति नियमावली का अध्ययन कर इसे नियमानुसार कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग, विधि विभाग और वित्त विभाग से सहमति मिलने पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगा.

इसके अलावा अनुबंधित एनएचएम कर्मचारियों, एड्स कंट्रोल सोसाइटी और अन्य अनुबंधित चिकित्साकर्मियोंं को विभाग द्वारा रिक्त पड़े पदों के 50 फीसदी पर नियुक्ति के लिए जेएसएससी या स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा सीमित परीक्षा आयोजित करने पर विचार किया जाएगा. शेष 50 प्रतिशत पदों पर खुली प्रतियोगिता होगी और इसमें भी अनुबंधित चिकित्साकर्मी भाग ले सकते हैं.

हड़ताल के दौरान कोई दंडात्मक कार्रवाई नहींः अनुबंधित मेडिकल स्टाफ 41 दिन तक हड़ताल पर रहे. इसकी अवधि के लिए उनपर किसी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए, इसके लिए विभाग विधिक राय लेने के बाद फैसला लेगा. सामुदायिक स्वास्थ्य पदाधिकारियों के लिए पद सृजन के लिए भारत सरकार से आये पत्र का अध्ययन कर फैसला होगा. वहीं लंबित इंसेंटिव के भुगतान के लिए सिविल सर्जनों को विशेष निर्देश दिया जाएगा. सीएचओ, डीपीएम, डीएएम,डीसीपी, बीएएम, बीपीएम के स्थानांतरण पर विचार किया जाएगा. इन बिंदुओं पर सहमति बनने के बाद अनुबंधित एनएचएम नर्सेस एसोसिएशन और पारा मेडिकल एसोसिएशन ने हड़ताल वापस लेने की घोषणा की. अब वो सोमवार से काम पर लौटेंगे.

रांचीः एक महीना और 11 दिन, काफी लंबा वक्त होता है, जब किसी राज्य या किसी इलाके की स्वास्थ्य व्यवस्था ठप रहे. हादसे, मौत और बीमारी का कोई तय वक्त मुकर्रर नहीं होता. इसलिए चौबीसों घंटे और साल के 365 दिन निर्बाध चिकित्सिय सुविधा शासन प्रशासन और स्वास्थ्य प्रबंधन द्वारा दिया जाता है. ऐसे में अगर यही व्यवस्था पूरी तरह से ठप हो जाए तो किसी प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था धराशायी होना निश्चित है. 41 दिनों की हड़ताल का असर झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था पर अपना बुरा असर डाला है. ऐसे में एक सवाल उन बीमार लोगों की ओर से है, जिन्हें इस हड़ताल अवधि में वह सुविधाएं नहीं मिली जिसकी वह हकदार थे.

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राष्ट्रीय स्वाथ्य मिशन की अनुबंधित नर्स और पारा मेडिकलकर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल 16 जनवरी को मुख्यमंत्री आवास घेराव के साथ शुरू हुई. अस्पताल के बजाय पूरे प्रदेश के अनुबंधित मेडिकलकर्मी सड़कों पर नजर आए. कभी राजभवन, कभी सीएम आवास तो कभी अनशन के कारण खुद भी अस्पताल में भर्ती हुए. अपनी मांगों के लेकर मुखर और उग्र हो चुके आंदोलनकारियों की शनिवार को स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के साथ वार्ता हुई, जिसके बाद स्वास्थ्यकर्मियों की अनिश्चितकालीन हड़ताल खत्म हो गयी.

समय पर टीकाकरण नहीं हुआ, जिम्मेदार कौन? 41 दिनों तक चली यह हड़ताल भले ही समाप्त हो और संभव है कि सोमवार से व्यवस्थाएं भी पटरी पर आ जाए. लेकिन इस दौरान बड़ी संख्या में ग्रामीण बच्चों को इस दौरान रूटीन इम्यूनाइजेशन यानी समय पर टीकाकरण नहीं हुआ. दूसरी तरफ हड़ताल कर रहीं नर्सें ही कहती रहीं कि हड़ताल की वजह से महज 15 फीसदी लोगों को ही फाइलेरिया रोधी दवाएं खिलाई जा सकीं. लेकिन उन 85 प्रतिशत लोगों को एमडीए के तहत डीईसी और एल्बेंडाजोल की गोलियों से वंचित रखने की जवाबदेही कौन लेगा?

इतने देर से क्यों जगे मंत्री जी! सवाल यह भी है कि जब सबकुछ आश्वासन पर ही होना था तब स्वास्थ्य महकमा और जनता के वोट से जीतकर स्वास्थ्य मंत्री बने बन्ना गुप्ता को हड़ताल को समाप्त कराने में इतना वक्त कैसे लग गया? क्या विभागीय अधिकारी और मंत्री का पूरा तंत्र पहले इन नर्सों के धरना प्रदर्शन, आमरण अनशन को जान-बूझकर इसलिए लंबा खींचा था ताकि समय बीतने के साथ आंदोलन कमजोर पड़ जाए और फिर वार्ता हो. ऐसे कई सवाल आम जनता के मन में हैं और सवाल उन वंचितों का भी है जो अप्रत्यक्ष रूप से इस लंबी हड़ताल का शिकार हुए. स्वास्थ्य मंत्री से अनुबंधित नर्सों की वार्ता होनी ही थी पहले बातचीत क्यों नहीं की गयी.

सवाल हड़ताली नर्स और पारा मेडिकलकर्मियों से भीः राज्य की साढ़े आठ हजार अनुबंधित एनएचएम नर्स और पारा मेडिकलकर्मियों ने हड़ताल वापस ले ली यह राहत की बात है. पर एक सवाल सबों से भी है कि आपका दिल भी आम जनता की परेशानियों से नहीं पिघला. वार्ता में आपने हड़ताल अवधि के लिए किसी भी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई ना करने का विभाग से आश्वासन पाकर आप तो निश्चिंत हो गए. लेकिन उन लोगों का क्या जिन्हें आपकी हड़ताल की वजह से परेशानी उठानी पड़ी.

आंदोलित एनएचएम कर्मियों के संयुक्त मोर्चा के सचिव नवीन कुमार ने फोन पर कहा कि हड़ताल लंबा खींच गया था. ऐसे में जब सरकार ने पहल की तब हमें भी उनके आश्वासन पर विश्वास करना पड़ा. आम जनता को हड़ताल के दौरान हुई परेशानियों को लेकर क्षमा मांगते हुए कहा कि हम लोगों ने भी इस दौरान 24 दिन अनशन कर कष्ट झेला है.

अनुबंधित मेडिकल स्टाफ को इन बिंदुओं पर मिला आश्वासनः शनिवार को स्वास्थ्य मंत्री के साथ अनुबंधित नर्स और पारामेडिकल स्टाफ की बैठक हुई. जिसमें यह सहमति बनी कि अनुबंधित पारा मेडिकलकर्मियों और नर्सों की सेवा नियोजन वर्ष 2014 की नियमावली की जगह वर्तमान में प्रभावी 2018 पारा चिकित्साकर्मियों के नियुक्ति नियमावली का अध्ययन कर इसे नियमानुसार कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग, विधि विभाग और वित्त विभाग से सहमति मिलने पर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगा.

इसके अलावा अनुबंधित एनएचएम कर्मचारियों, एड्स कंट्रोल सोसाइटी और अन्य अनुबंधित चिकित्साकर्मियोंं को विभाग द्वारा रिक्त पड़े पदों के 50 फीसदी पर नियुक्ति के लिए जेएसएससी या स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा सीमित परीक्षा आयोजित करने पर विचार किया जाएगा. शेष 50 प्रतिशत पदों पर खुली प्रतियोगिता होगी और इसमें भी अनुबंधित चिकित्साकर्मी भाग ले सकते हैं.

हड़ताल के दौरान कोई दंडात्मक कार्रवाई नहींः अनुबंधित मेडिकल स्टाफ 41 दिन तक हड़ताल पर रहे. इसकी अवधि के लिए उनपर किसी प्रकार की दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए, इसके लिए विभाग विधिक राय लेने के बाद फैसला लेगा. सामुदायिक स्वास्थ्य पदाधिकारियों के लिए पद सृजन के लिए भारत सरकार से आये पत्र का अध्ययन कर फैसला होगा. वहीं लंबित इंसेंटिव के भुगतान के लिए सिविल सर्जनों को विशेष निर्देश दिया जाएगा. सीएचओ, डीपीएम, डीएएम,डीसीपी, बीएएम, बीपीएम के स्थानांतरण पर विचार किया जाएगा. इन बिंदुओं पर सहमति बनने के बाद अनुबंधित एनएचएम नर्सेस एसोसिएशन और पारा मेडिकल एसोसिएशन ने हड़ताल वापस लेने की घोषणा की. अब वो सोमवार से काम पर लौटेंगे.

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