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झारखंड सहायक प्राध्यापक अनुबंध संघ की बैठक, सरकार से कल्याण कोष बनाने की मांग

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Published : Apr 12, 2021, 8:06 PM IST

झारखंड सहायक प्राध्यापक अनुबंध संघ की एक विशेष बैठक ऑनलाइन हुई. इस दौरान राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों सहित सैकड़ों शिक्षक मौजूद रहे. इस दौरान शिक्षकों ने घंटी आधारित अनुबंध सहायक प्राध्यापकों के लिए कल्याण कोष का गठन करने की मांग की.

jharkhand assistant professor contract association meeting held in ranchi
झारखंड सहायक प्राध्यापक अनुबंध संघ की बैठक आयोजित

रांचीः झारखंड सहायक प्राध्यापक अनुबंध संघ की एक विशेष बैठक ऑनलाइन हुई. इस दौरान राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों सहित सैकड़ों शिक्षक मौजूद रहे. संघ के प्रदेश संरक्षक डॉ. एसके झा के नेतृत्व में हुई. जिसमें सभी विश्वविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों ने कहा कि सरकार घंटी आधारित अनुबंध सहायक प्राध्यापकों के हितार्थ एक कल्याण कोष का गठन करें. घंटी आधारित अनुबंध सहायक प्राध्यापक कोरोना से संक्रमित होकर जान गंवा रहे हैं, सरकार या विश्वविद्यालय उनके मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं.


इसे भी पढ़ें- नीलांबर पीतांबर यूनिवर्सिटी में नहीं है एक भी प्रोफेसर, घंटी आधारित शिक्षकों पर टिका छात्रों का भविष्य

घंटी आधारित लगभग 900 संविदा सहायक प्राध्यापक
संघ के सचिव डॉ. प्रभाकर कुमार ने कहा कि राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में कार्यरत उच्च तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग के आलोक में यूजीसी अर्हता के आधार पर चयन समिति गठित की गई. यह समिति कुलपति की अध्यक्षता में साक्षात्कार और शैक्षणिक अंक के प्राप्तांक के आधार पर तैयार मेधा सूची से अनुशंसित विभिन्न अंगीभूत महाविद्यालयों और विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभागों में कार्यरत घंटी आधारित लगभग 900 संविदा सहायक प्राध्यापक हैं.

जारी संकल्प के तहत नहीं मिल रहा मानदेय
संकल्प में इन शिक्षकों का मानदेय 600 रुपये प्रति कक्षा और अधिकतम 60 कक्षा यानी 36 हजार रुपये प्रतिमाह तय किया गया है. अवकाश के दिनों में जैसे- ग्रीष्मावकाश, शरद ऋतु, होली, दशहरा, दीपावली, छठ के समय में कोई मानदेय देय नहीं होता है और ना ही हम सबों को सरकार की ओर से सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई है.

कोल्हान विश्वविद्यालय सहायक प्राध्यापक अनुबंध संघ के उपाध्यक्ष डॉ. केके कमलेंदू ने कहा कि सरकार इन शिक्षकों के हितार्थ एक आकस्मिक कोष का भी गठन करे. रांची विश्वविद्यालय की डॉ. स्मिता गुप्ता ने कहा कि इन शिक्षकों से सारा कार्य जैसे- वीक्षण, उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन, प्रश्न पत्र निर्माण आदि स्थायी शिक्षकों की तरह लिया जाता है, किसी भी आपदा-विपदा, महामारी और दुर्घटना के शिकार होने पर इन्हें किसी भी प्रकार की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा सरकार या विश्वविद्यालय की ओर से प्रदान नहीं की जाती है.

रांचीः झारखंड सहायक प्राध्यापक अनुबंध संघ की एक विशेष बैठक ऑनलाइन हुई. इस दौरान राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों सहित सैकड़ों शिक्षक मौजूद रहे. संघ के प्रदेश संरक्षक डॉ. एसके झा के नेतृत्व में हुई. जिसमें सभी विश्वविद्यालयों में कार्यरत शिक्षकों ने कहा कि सरकार घंटी आधारित अनुबंध सहायक प्राध्यापकों के हितार्थ एक कल्याण कोष का गठन करें. घंटी आधारित अनुबंध सहायक प्राध्यापक कोरोना से संक्रमित होकर जान गंवा रहे हैं, सरकार या विश्वविद्यालय उनके मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं.


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घंटी आधारित लगभग 900 संविदा सहायक प्राध्यापक
संघ के सचिव डॉ. प्रभाकर कुमार ने कहा कि राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में कार्यरत उच्च तकनीकी शिक्षा एवं कौशल विकास विभाग के आलोक में यूजीसी अर्हता के आधार पर चयन समिति गठित की गई. यह समिति कुलपति की अध्यक्षता में साक्षात्कार और शैक्षणिक अंक के प्राप्तांक के आधार पर तैयार मेधा सूची से अनुशंसित विभिन्न अंगीभूत महाविद्यालयों और विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभागों में कार्यरत घंटी आधारित लगभग 900 संविदा सहायक प्राध्यापक हैं.

जारी संकल्प के तहत नहीं मिल रहा मानदेय
संकल्प में इन शिक्षकों का मानदेय 600 रुपये प्रति कक्षा और अधिकतम 60 कक्षा यानी 36 हजार रुपये प्रतिमाह तय किया गया है. अवकाश के दिनों में जैसे- ग्रीष्मावकाश, शरद ऋतु, होली, दशहरा, दीपावली, छठ के समय में कोई मानदेय देय नहीं होता है और ना ही हम सबों को सरकार की ओर से सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई है.

कोल्हान विश्वविद्यालय सहायक प्राध्यापक अनुबंध संघ के उपाध्यक्ष डॉ. केके कमलेंदू ने कहा कि सरकार इन शिक्षकों के हितार्थ एक आकस्मिक कोष का भी गठन करे. रांची विश्वविद्यालय की डॉ. स्मिता गुप्ता ने कहा कि इन शिक्षकों से सारा कार्य जैसे- वीक्षण, उत्तर पुस्तिका का मूल्यांकन, प्रश्न पत्र निर्माण आदि स्थायी शिक्षकों की तरह लिया जाता है, किसी भी आपदा-विपदा, महामारी और दुर्घटना के शिकार होने पर इन्हें किसी भी प्रकार की आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा सरकार या विश्वविद्यालय की ओर से प्रदान नहीं की जाती है.

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