रांचीः झारखंड में जानवर खतरे में हैं, लगातार उनकी मौत हो रही है. जुलाई महीने से सूकरों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर (African swine fever) का कहर जारी है. अब तक कांके सुकर प्रजनन प्रक्षेत्र में ही 1341 सूकरों की मौत हो चुकी (Jharkhand animals died) है और अब यहां सिर्फ 170 सूकर बचें हैं. वहीं राज्य में गाय भैस में होने वाली वायरल डिजीज लंपी स्किन डिजीज (Lumpy skin disease virus) के केस भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं. पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादन संस्थान कांके (Animal Health and Production Institute Kanke) के निदेशक डॉ बिपिन महथा ने बताया कि देवघर जिला से 62 और रांची जिला से 53 लंपी के संदिग्ध मवेशियों का सैंपल जांच के लिए राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान (HSADL) भोपाल भेजा गया है.
इसे भी पढ़ें- झारखंड में अफ्रीकन स्वाइन फीवर और लंपी वायरस का खतरा, अब तक 1261 सूकर और दो पशुओं की हो चुकी है मौत
इस बीमारी की यही रफ्तार रही तो अगले कुछ दिनों में कांके सूकर प्रजनन क्षेत्र सूकर विहीन हो जाएगा. कांके सूकर प्रजनन प्रक्षेत्र (Kanke Pig Breeding Farm) में 22-23 जुलाई को पहली मौत सूकर की हुई थी. अब तक के आंकड़ों के मुताबिक प्रजनन प्रक्षेत्र में 1341 सूकर की मौत हो चुकी है और हर दिन 15-17 सुकरों की जान इससे जा रही है. ऐसे में अगले 10-15 दिनों में राज्य का इकलौता सूकर प्रजनन प्रक्षेत्र सूकर विहीन हो जाएगा. अफ्रीकी स्वाइन फीवर का अभी तक कोई वैक्सीन नहीं होने की वजह से वेटेनरी डॉक्टर्स के पास इलाज करने के लिए ज्यादा कुछ नहीं बचता है. वह बीमार सूकरों के लक्षण के आधार पर इलाज करते हैं. लेकिन वो ज्यादा कारगर नहीं हो रहा है और लगातार सूकरों की मौत हो रही है.
कई जिलों में लंपी वायरस के संदिग्ध पशुः रांची जिला पशुपालन अधिकारी डॉ अनिल कुमार ने ईटीवी भारत को बताया कि रांची के कई प्रखंडों में गौवंशीय पशुओं में लंपी के संदिग्ध (lampy virus cow) मामले मिले हैं. अकेले सोनाहातू प्रखंड में ही 08-09 लंपी के संदिग्ध केस मिले हैं. डॉ अनिल ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या गोट पॉक्स के वैक्सीन उपलब्ध नहीं होने की है. रांची में सिर्फ 12 वायल वैक्सीन बाजार से मिल सका है, जिसमें 600 डोज होगा, ऐसे में यह ऊंट के मुंह मे जीरा जैसा ही है. डॉ बिपिन महथा ने कहा कि राज्य के रांची, हजारीबाग, चतरा, दुमका, देवघर, जमशेदपुर, पलामू और जामताड़ा में लंपी वायरस से संक्रमित संदिग्ध पशु मिले हैं. विभाग को भोपाल भेजे गए मवेशियों के सैंपल की रिपोर्ट आने का इंतजार है.
क्या है लंपी स्किन डिजीजः पशु चिकित्सकों के अनुसार लंपी वायरस का संक्रमण मुख्यतः गोवंशीय और भैंस जाति के पशुओं में होने वाला संक्रामक बीमारी है. ये मुख्य रूप से संक्रमित मक्खियों, मच्छरों एवं चमोकन के काटने से पशुओं में फैलता है. बीमार पशुओं की आंख और नाक के स्राव, लार घाव के स्राव और दूसरों के संपर्क में आने से स्वस्थ पशुओं में भी संक्रमण की संभावना बढ़ जाता है. वहीं बीमार दुधारू गाय भैंस के थन के आसपास घाव होने की वजह से दूध पीने वाले बाछा-बछियों में भी इस बीमारी के होने का खतरा रहता है. पशुपालन विभाग की ओर से दी गयी जानकारी के अनुसार संक्रमित गाभिन गाय भैंस से नवजात बच्चे में भी बीमारी आ जाती है. संक्रमित सांड, भैंसे से भी गर्भाधान के समय यह बीमारी स्वस्थ पशु को हो सकता है.
LSD के लक्षणः लंपी स्किन डिजीज एक वायरल बीमारी है. इससे ग्रसित पशुओं के संक्रमण के प्रारंभ में आंख एवं नाक से स्राव होता है. वहीं तेज बुखार और दूध में कमी आ जाती है. उसके बाद पशुओं के त्वचा पर गांठदार घाव का उभरना शुरू होता है, जो धीरे-धीरे पूरे शरीर पर फैल जाता है. मादा पशुओं में आमतौर पर थनैला भी इस दौरान हो जाता है. वहीं कुछ पशुओं में लंपी वायरस की वजह से निमोनिया के लक्षण भी उभरते हैं, इस बीमारी में मोर्टालिटी रेट 10% तक है.
इसे भी पढ़ें- Jharkhand Lumpy Virus: तीन जिलों में लंपी स्किन डिजीज से ग्रस्त कई मवेशी, पशुपालन निदेशालय ने बुलाई बैठक
सक्रामक है अफ्रीकन स्वाइन फीवरः सूकरों के लिए बीमारी एक अत्यधिक संक्रामक वायरल रोग है. अपने तीव्र रूप में रोग आमतौर पर उच्च मृत्यु दर में बदल होता है. यह एक अत्यधिक संक्रामक और घातक स्वाइन रोग है जो खेत में पाले जाने वाले और जंगली और पालतू सूकरों को प्रभावित कर सकता है. एएसएफ लोगों को संक्रमित नहीं करता है. लेकिन संक्रमित सूकर के शारीरिक तरल पदार्थ के सीधे संपर्क में आने से यह एक से दूसरे सूकर में आसानी से फैल जाता है. स्वाइन फ्लू से एएसएफ एक अलग बीमारी है. वायरस लोगों को प्रभावित नहीं करता है और मानव स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है.
अफ्रीकन स्वाइन फीवर के लक्षणः अफ्रीकी स्वाइन फीवर के लक्षण कुछ कुछ मतली, हल्का सिरदर्द, खुजली जैसी होती है. जिसमें कुछ हद तक स्वाइन बुखार के समान ही नजर आते हैं. लेकिन अफ्रीकी स्वाइन फीवर में सूकरों में रक्तस्त्राव, सायनोसिस यानी त्वचा का नीला पड़ जाना, साथ ही चमड़ी के कुछ हिस्से में कालापन लिए परिगलन होने लगता है. इस फीवर में सुकरों की मौत अचानक हो जाती है. इससे ग्रस्त जानवरों में बुखार के लक्षण मिलते हैं, जिसमें वो खाना बंद कर देते हैं और जल्द ही मारे जाते हैं.
पशुओं को बीमारी से कैसे बचाएंः पशुपालन विभाग की ओर से पशुपालकों में जागरूकता लाई जा रही है. पशुपालकों को बताया जा रहा है कि लंपी वायरस से पशुओं को कैसे बचाया जाए. उन्हें बताया जा रहा है कि समय-समय पर पशुओं का टीकाकरण, एलएसडी के लक्षण वाले पशु की जानकारी होते ही नजदीकी पशु चिकित्सक को पूरी जानकारी दें, लक्षण दिखते ही इलाज शुरू कर देने के साथ साथ बीमार पशुओं को आइसोलेट कर देने के साथ-साथ साफ सफाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. पशुपालन विभाग के डॉक्टर बताते हैं कि गौशाला के आसपास साफ-सफाई रखें, पानी नहीं जमने दें और यह ख्याल रखें कि आपके पशुओं को मच्छर मक्खी एवं चमोकन ना काटे, संक्रमित पशुओं को चारागाह में ना भेजें और ना ही संक्रमित पशुओं का खरीद बिक्री करें. गौशाला में बाहरी आवाजाही पर भी पाबंदी से इस बीमारी को फैलने से रोका जा सकता है. वहीं संक्रमित बीमार पशुओं की मृत्यु हो जाने पर उसे कम से कम डेढ़ मीटर गहरे गड्ढे में चूना और नमक के साथ दफना दें और बीमार पशुओं द्वारा उपयोग में लाया बोरा इत्यादि का कीटाणु रोधी घोल से उपचार करने के बाद ही इस्तेमाल करें.