रांची: अपरधियों के खिलाफ आन द स्पॉट फैसला यानी त्वरित न्याय के लिए पुलिस से इनकाउंटर किए जाने को समाज के कुछ लोग सही ठहरा रहे हैं. कुछ माह पूर्व गैंगरेप के चार आरोपियों को भी एनकाउंटर में मारने वाले पुलिसकर्मियों का खूब स्वागत किया गया था. यूपी में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के आरोपियों के एनकाउंटर पर भी समाज के एक बड़े तबके ने पुलिस को जमकर शाबाशी दी थी, लेकिन झारखंड पुलिस का कानूनी तरीके से दिलवाया गए न्याय को अब प्रशिक्षु आईपीएस अधिकारियों के लिए अध्ययन का विषय बनाया गया है.
क्या है पूरा मामला
देशभर के प्रशिक्षू आईपीएस अधिकारियों को त्वरित न्याय के एनकाउंटर वाले तौर तरीके से अलग अनुसंधान के गुर सिखाए जा रहे, ताकि बेहतर अनुसंधान के जरिए आरोपियों को तत्काल सजा दिलायी जा सके. झारखंड के दुमका जिले के नाबालिग के साथ गैंगरेप-हत्या केस को नेशनल पुलिस एकादमी (एनपीए) हैदराबाद ने नजीर के तौर पर लिया है. हैदराबाद में प्रशिक्षण ले रहे प्रशिक्षू आईपीएस अधिकारियों को केस स्टडी के तौर पर इस केस की जानकारी दी गई है.
ऑनलाइन क्लास में दी एसपी ने जानकारी
दुमका के तत्कालीन और वर्तमान में गोड्डा के एसपी वाईएस रमेश ने इस केस की पहलूओं को लेकर प्रशिक्षू अधिकारियों को ऑनलाइन जानकारी दी. एसपी वाईएस रमेश ने बताया कि एनपीए की टीम ने इस मामले में उनसे संपर्क किया था. संपर्क किए जाने के बाद उन्होंने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इस केस के अनुसंधान और त्वरित न्याय के विभिन्न पहलूओं पर प्रशिक्षू आईपीएस अधिकारियों को जानकारी दी है.
ये भी पढ़ें-रांची: सीसीएल की नौकरी छोड़ नक्सली बना अर्जुन गंझू, पूछताछ करेगी एनआईए
क्यों देशभर के लिए नजीर बना केस
दुमका के रामगढ़ में छह साल की मासूम को उसके कथित चाचा 5 फरवरी को मेला घुमाने ले गए थे. दो दिन के बाद बच्ची का शव बरामद किया गया. शव के पोस्टमार्टम के बाद गैंगरेप की पुष्टि हुई थी. मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद उनके डीएनए प्रोफाइल की जांच मृत बच्ची के शरीर में मिले डीएनए से करायी गई थी. वहीं घटनास्थल पर जाकर स्टेट एफएसएल की टीम ने जांच कर वैज्ञानिक सबूत जुटाए थे. पुलिस ने महज 21 दिन में आरोप पत्र समर्पित किया. 27 फरवरी को पुलिस ने आरोप पत्र गठित किया, 28 और 29 फरवरी को रिश्तेदार और पुलिस की गवाही हुई. 2 मार्च को कोर्ट में 12 घंटे तक सुनवाई चली. अगली सुबह 3 मार्च को कोर्ट ने आरोपियों को फांसी की सजा सुनायी. देश के न्यायिक इतिहास में ऐसा दूसरी बार था, जब आरोपियों को महज 25 दिनों में फांसी की सजा सुनायी गई. वैज्ञानिक अनुसंधान की कई पहलूओं और त्वरित न्याय के कारण यह केस नजीर बन गया.