रांची: झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल को संवारने की जिम्मेदारी डॉ कामेश्वर प्रसाद को मिली है. रामगढ़ जिला के पतरातू स्थित साकुल गांव में एक किसान परिवार में जन्में डॉ कामेश्वर प्रसाद की शुरुआती शिक्षा आज के रामगढ़ जिला के मांडू से हुई थी. इसके बाद रांची के संत जेवियर कॉलेज में पढ़ें, फिर आईआईटी की पढ़ाई की और उसके बाद आरएमसीएच से एमबीबीएस की डिग्री ली. डॉ कामेश्वर प्रसाद ने आरएमसीएच के कई चिकित्सकों को याद किया. उन्होंने कहा कि तब शिक्षकों का छात्रों के साथ एक अलग रिश्ता हुआ करता था. ऐसा संबंध दिल्ली स्थित एम्स में भी नहीं देखने को मिला. उनका मानना है कि शिक्षक का असली काम है, छात्रों को इंस्पायर करना.
डॉक्टरों के प्राइवेट प्रैक्टिस पर क्या है राय
उनसे पूछा गया कि धरती के भगवान अब सेवा के इस क्षेत्र को व्यवसाय के रूप में देखने लगे हैं. इस पर आपकी क्या राय है? जवाब में उन्होंने कहा कि डॉक्टरों को चाहिए कि वह जहां भी काम कर रहे हैं, वहां अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. उन्होंने डॉ ब्रहमेश्वर प्रसाद, डॉ सुरेंद्र सिंह, डॉ एनके झा, डॉ आरसीएन सहाय समेत कई चिकित्सकों को याद किया. कहा कि इन सभी ने इस क्षेत्र में आदर्श पेश किया और उनसे सीख लेनी चाहिए. विख्यात न्यूरो फिजिशियन डॉक्टर केके सिन्हा का भी उन्होंने जिक्र किया. जब डॉक्टर केके सिन्हा को लगा कि वह अपना पूरा ध्यान आरएमसीएच में नहीं दे पा रहे हैं तो उन्होंने आरएमसीएच छोड़ दी थी और निजी प्रैक्टिस करने लगे थे. लिहाजा जरूरी है कि इस सेवा से जुड़े लोग जहां भी काम करें एक आदर्श पेश करें.
सरकारी संस्थान पर पॉलिटिकल प्रेशर
डॉ कामेश्वर प्रसाद से पूछा गया कि सरकारी अस्पताल की व्यवस्था की देखरेख के दौरान राजनीतिक दबाव बना रहता है, क्या यह वाजिब है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हमारा काम है व्यवस्था को देखना और राजनीतिज्ञ भी व्यवस्था का ही हिस्सा होते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उनके गलत काम को बढ़ावा दिया जाए. उन्होंने बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद का जिक्र किया. डॉ कामेश्वर प्रसाद ने कहा कि एम्स में सेवा के दौरान उन्हें निजी अस्पताल से बहुत बड़ा ऑफर मिला था. तब उन्होंने बिंदेश्वरी प्रसाद से सुझाव मांगा था. उन्होंने कहा था कि ईश्वर ने तुम्हें सेवा के लिए बनाया है. इसलिए निजी क्षेत्र में मत जाना और इसके बाद उनके मन में कभी भी निजी क्षेत्र से जुड़ने का ख्याल नहीं आया.
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रिम्स में डॉक्टर और नर्सों की है भारी कमी
डॉ कामेश्वर प्रसाद ने कहा कि व्यवस्था को बहाल करना एक बड़ी चुनौती है. पदभार ग्रहण करने के साथ ही उन्होंने 17 डॉक्टरों को नियुक्त किया है. 20 और डॉक्टरों का पत्र जारी करने की तैयारी चल रही है. नर्सों के रिक्त पदों को भरने की कवायद भी जल्द शुरू हो जाएगी. उन्होंने कहा कि इन प्रक्रियाओं को नियमों के तहत पूरा किया जाना है, इसलिए थोड़ा वक्त जरूर लगेगा. उन्होंने कहा कि वह रिम्स में नौकरी करने नहीं आए हैं. उनकी नौकरी तो 2019 में ही दिल्ली स्थित एम्स में पूरी हो चुकी थी. 'मैं यहां ईमानदार कोशिश करने आया हूं, मैं कितना सफल हो पाऊंगा, यह हमारे समाज और नियमों पर निर्भर करता है'.
क्या प्राइवेट सेक्टर में पढ़कर ही मुकाम मिलता है ?
डॉ कामेश्वर प्रसाद ने कहा कि उनका व्यक्तिगत मानना है कि शिक्षा के क्षेत्र में ह्रास हुआ है. इस पर काम करने की जरूरत है. अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा कि हमारे माता-पिता ने कभी भी पढ़ाई से अलग करने की कोशिश नहीं की, लेकिन आज अभिभावक चाहते हैं कि होश संभालते ही उनका बच्चा काम में लग जाए. उस जमाने के शिक्षक अपने छात्रों पर पूरा वक्त देते थे. उन्हें राह दिखाते थे. स्कूल के दिनों में ही हमारे कई शिक्षकों ने एमए की पुस्तकें पढ़ा दी थी. हालत ऐसी हो गई थी कि हमारे साइंस के शिक्षक इस बात से नाराज होते थे कि मैं हिंदी और संस्कृत को इतना तवज्जो क्यों दे रहा हूं. उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि जहां भी अच्छे शिक्षक मिल जाएंगे, बच्चे को रास्ता मिल जाएगा. शायद यही वजह है कि रिम्स में पदभार ग्रहण करने के साथ ही डॉ कामेश्वर प्रसाद ने मेडिकल के छात्रों को पढ़ाने वाले प्रोफेसर के साथ सबसे पहले संवाद स्थापित किया.