रांची: आंदोलन की उपज है झारखंड. लेकिन राज्य बनाने के लिए प्रदर्शन करने वाले, जेल जाने वाले, पुलिस की लाठियां खाने वाले, सड़क जाम करने वाले खुद राजनीति का हिस्सा बनकर रह गये हैं. बेशक, झारखंड आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों के सम्मान (Honor to Jharkhand agitators) और हक के लिए सरकार ने कुछ नियम जरूर बनाए हैं लेकिन जब बात सम्मान राशि और सुविधा बढ़ाने की होती है तो सरकार दूसरे राज्यों में मिलने वाली सुविधाओं से जुड़ी रिपोर्ट मंगाने की बात करने लगती है. अब सवाल है कि चिन्हित झारखंड आंदोलनकारियों को किस तरह की सुविधा और लाभ दी जाती है. इसका जवाब जानते ही आप सोच में पड़ जाएगे.
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झारखंड आंदोलनकारियों को क्या मिलता है: तत्कालीन अर्जुन मुंडा सरकार ने 7 मई 2012 को गृह, कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग की संकल्प संख्या 2108 के तहत आंदोलनकारियों को मिलने वाली सुविधा से जुड़े प्रस्ताव जारी किए थे. लेकिन वर्तमान हेमंत सरकार ने 25 फरवरी 2021 को पूर्व के प्रस्ताव को विलोपित करते हुए नयी व्यवस्था लागू की.
जाहिर सी बात है कि आंदोलनकारियों (Jharkhand agitators) को दी जाने वाली सुविधाएं ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मसले पर सरकार का जवाब है कि दूसरे राज्यों से रिपोर्ट मंगवाकर सम्मान राशि और सुविधा बढ़ाने पर विचार होगा. सदन में खुद संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम यह बात कह चुके हैं. झामुमो विधायक दीपक बिरूआ का कहना है कि छत्तीसगढ़ की तर्ज पर सम्मान राशि दिया जाना चाहिए. स्पीकर भी कह चुके हैं कि 22 साल बाद भी आंदोलनकारियों के हित में उचित निर्णय न हो पाना दुर्भाग्यपूर्ण है.
झामुमो विधायक मथुरा महतो मानते हैं कि झारखंड आंदोलनकारी चिन्हितीकरण (Jharkhand agitators identificatio) में जेल जाने वाली बाध्यता को समाप्त कर देना चाहिए. झामुमो विधायक लोबिन हेंब्रम का मानना है कि जिन लोगों ने अलग राज्य के लिए कुर्बानी दी है, उनका स्टेच्यू बनना चाहिए. परिवारों को आवास और सहयोग राशि मिलनी चाहिए. आजसू नेता सुदेश महतो तो झारखंड आंदोलनकारियों को फ्रीडम फाइटर तक का दर्जा देने की मांग कर चुके हैं. हालाकि उनकी यह मांग सीरे से खारीज हो चुकी है. कुल मिलाकर देखें तो झारखंड की राजनीति के हर मोड़ पर आंदोलनकारियों के हक और सम्मान की बात उठती है. हर मंच से आंदोलनकारियों के संघर्ष और बलिदान की दुहाई दी जाती है लेकिन जब बात सुविधा बढ़ाने की आती है तो सरकारें दूसरे राज्यों की रिपोर्ट ढूंढने लग जाती हैं.