रांची: झारखंड में चुनाव भले ना हो, राजनीतिक दलों के बीच मुद्दों के महत्वाकांक्षा वाली लड़ाई भी भले ना हो, लेकिन हेमंत सोरेन ने पेट्रोल की कीमतों में 25 रुपए की कमी का ऐलान कर देश की सियासत में कई बड़े राजनीतिक पंडितों को सियासी अखाड़े में पटक दिया है. अब जवाब बड़ा मुश्किल हो गया है कि बीतते 2021 में हेमंत सोरेन ने तेल के जिस खेल में पूरी राजनीति को लाकर खड़ा कर दिया है, उसका जवाब 2022 की सियासत में लोग देगे कैसे?
पेट्रोल की राजनीति
देश में 2013 के बाद बदले राजनीतिक हालात में नरेंद्र मोदी ने महंगाई के जिस मुद्दे को सबसे मजबूती से रखा था उसमें बढ़ते तेल के दाम कांग्रेस के लिए सत्ता जाने का कारण बन गया. 2004 से 2009 और 2009 से 2014 तक मनमोहन सिंह गद्दी पर रहे. लेकिन महंगाई के जितने गाने पेट्रोल को लेकर खड़े हुए उसे बीजेपी ने खूब गाया. हालांकि इसकी बानगी बीजेपी के खाते में न आए इसका पूरा ध्यान बीजेपी ने रखा था और यही वजह है कि झारखंड में 2014 में सरकार बनने के बाद नरेंद्र मोदी की नीतियों वाली कई योजनाओं को झारखंड से उतार दिया गया. लेकिन झारखंड की जनता शायद इस चीज को समझ नहीं पाई कि बीजेपी के मन में क्या है और झारखंड के मन में जो था वह 2019 में सामने आया और जनता ने बीजेपी की सत्ता को पलट दिया. हेमंत गद्दी पर बैठे तो वादों में कई बातें थी लेकिन 2021 के अंत तक जिस विषय को हेमंत सोरेन ने अमलीजामा पहना दिया. वह बीजेपी सहित तमाम विपक्षी दलों के लिए जवाब न दे पाने वाला सवाल बन गया है.
ये भी पढ़ें- अलविदा 2021: जानिए साल 2021 में झारखंड में क्या रहा सियासत का हाल, किन मुद्दों ने बटोरी सुर्खियां
हेमंत सोरेन झारखंड के एक खास वर्ग को 10 लीटर पेट्रोल पर 25 रुपए कम कीमत पर देंगे. यह वह वर्ग है जिसे चिन्हित किया गया है और जिनके बारे में ही कहने पर झारखंड की पृष्ठभूमि खड़ी होती है कि झारखंड गरीबों का है, पिछड़ों का है, आदिवासियों का है. गरीब राज्य है तो ऐसे गरीब राज्य के लोगों को निश्चित तौर पर एकत्रित सहूलियत मिलनी चाहिए और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का यह काम झारखंड की जनता के लिए जेठ की तपिश में पुरवा हवा के साथ होने वाली बारिश का वह सुकून है जो बढ़ती महंगाई ने आम लोगों के जीवन को घुट-घुट कर जीने को विवश कर रखा है. आम लोगों को मिली राहत निश्चित तौर पर उनके लिए बड़ी सौगात है, जो हर दिन बाजार में 50 किलो सब्जी बेचने के लिए अपने खेत से बाजार जाते हैं. जिनके लिए 2 जून की रोटी का इंतजाम करना 12 घंटे से ज्यादा किसी सेठ के यहां अपनी जिंदगी को गिरवी रखना है.
आज भी जिंदगी पक्की सड़कों के बजाय बगैर चप्पल के पगडंडियों से गुजरती है और पसीने की हर टपकती बूंद जिंदगी की नई आश के साथ अच्छे दिन के इंतजार को टकटकी लगाए बैठी रहती है. अगर झारखंड के पिछड़े होने की कहानी को इन्हीं शब्दों में कहा जाए तो निश्चित तौर पर झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने अपने लोगों के लिए एक बहुत बड़ी सौगात दे दी है. अब सवाल यह है कि झारखंड में भले ही कोई चुनाव ना हो लेकिन पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में 2022 की हर रैली में 25 रुपए वाले तेल की आहट नहीं सुनाई देगी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता.
ये भी पढ़ें- अलविदा 2021ः झारखंड कांग्रेस के लिए संगठन विस्तार और सरकार में सामंजस्य बैठाने में गुजर गया साल
पांच राज्यों में चुनावी मुद्दे
2022 में पांच राज्यों में होने वाले चुनाव में भले ही हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा सीधे तौर पर चुनाव में ना जाए लेकिन पेट्रोल पर 25 रुपए की राहत देकर के हर राज्य में जाने वाले राजनीतिक दल के लिए राजनीति का एक यक्ष प्रश्न खड़ा कर दिया और सवाल पूछने के लिए झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा के साथ चल रही कांग्रेस को एक तुरुप का पत्ता भी. महंगाई से निजात के लिए झारखंड में कांग्रेस जिस सहयोग के साथ चल रही है उसने एक आधार तो खड़ा कर दिया बाकी जिन राज्यों में दूसरे राजनीतिक दलों की सरकार चल रही है. वह क्या कर रहे हैं आखिर गरीबों को राहत देने के लिए सरकार का काम कैसे चल रहा है. कम से कम कांग्रेस उन राज्यों में इस बात को तो जरूर बताएगी, जहां बीजेपी तेल के दाम को रोक पाने में नाकामयाब रही है.
2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को अब ये नहीं कहा जाएगा कि अगले साल होने वाला चुनाव. अब वह वक्त भी आ गया जब इसी साल होने वाले चुनाव का समय भी लिखा जाएगा. अब सवाल यह है कि जो पिछड़ा राज्य है, गरीब है, आदिवासियों का है, वहां की सरकार पेट्रोल पर 25 रुपए की राहत एक खास वर्ग को दे सकती है तो राज्यों का वह वर्ग जो अभी भी गरीबी और तंगहाली में जी रहा है और खास वर्ग उसके लिए काम करने की बात कर रहा है. तो फिर उसे इस राह पर लाकर खड़ा करने में दिक्कत क्या है?
दूसरे राज्यों की सरकारों के लिए चिंता का सबब यही है कि अगर झारखंड जैसा गरीब राज्य इस तरह का निर्णय ले सकता है तो जिन राज्यों की आर्थिक स्थिति मजबूत है और जिन राज्यों की आर्थिक संरचना भी बहुत मजबूत है उन्हें इस तरीके की सहायता देने में दिक्कत क्या है? सरकार की तेजी दिखी या वोट बैंक की सियासत राजनीति में दखल मिलने वाले वोट की भागीदारी जाति बल का जमावड़ा और जातियों से मिलने वाले पार्टी का आधार जैसे तमाम ऐसे सवाल हैं जो राजनीतिक दल जोड़ेंगे, घटाएंगे, जीत हार के तराजू में बोलेंगे भी. इन तमाम चीजों के बाद भी हेमंत सरकार ने 2021 के अंत में देश की सियासत में तेल वाली राजनीति का सियासी खेल खड़ा किया है. उसमें कई राजनीतिक दलों को अब मेल मिलाप तो करना ही पड़ेगा. नहीं तो जनता को समझा पाना मुश्किल है और इतना तो सबको पता है कि यह पब्लिक है सब जानती है.