रांचीः 15 जुलाई को हुई हेमंत कैबिनेट की बैठक में ओबीसी जातियों की सूची को मंजूरी दी गई है. इसके तहत सरकारी नौकरियों में सामान्य वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षित सीटों में समाहित करने का प्रस्ताव कैबिनेट से पास हुआ है. राज्य की बीसी-1 और बीसी-2 कोटि में जो जातियां सूचीबद्ध हैं. इसमें कुड़मी, माहिस्य, मगदा-गौड़ महाकुड़/गोप/ग्वाला, चंद्रवंशी/ रवानी, हजाम, बारी, बागची, राजभट(मुस्लिम) शाह, फकीर, मदार व देवान, शेख, कुम्हार/ कुंभकार, सोय, तेली /एकादश तेली /द्वादश तेली वागाल/ खंडवाल खंडुवाल व खंडाइत, खैरा तथा परघा/ परीधा/पैरधा / पलीआर शामिल हैं.
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सरकार का पॉलिटिकल स्टंट: सरकार के इस फैसले पर राजनीतिक स्तर पर अलग अलग व्याख्या की जा रही है. खास बात यह है कि सदन के अंदर और बाहर हर राजनीतिक दल के लोग ओबीसी को वोट बैंक का हिस्सा मानकर राज्य में ओबीसी आरक्षण का दायरा 14 फीसदी से अधिक करने की मांग करते रहे हैं. लेकिन यह सिर्फ और सिर्फ पॉलिटिकल स्टंट बनकर रह जाता है. इस बार भी राज्य सरकार के इस फैसले को पॉलिटिकल स्टंट के रूप में ही माना जा रहा है.
सूची पर निर्णय लेना केंद्र की जिम्मेवारी: राज्य सरकार के फैसले को पॉलिटिकल स्टंट इसलिए बताया जा रहा है कि इस सूची पर निर्णय लेना केंद्र की जिम्मेवारी है. कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव कहते हैं कि केंद्र सरकार इस अनुशंसा को मान लेती है तो इसका लाभ झारखंड के ओबीसी को मिलेगा, जो अब तक आरक्षण से वंचित रहे हैं. जबकि माले विधायक विनोद सिंह कहते हैं कि झारखंड में पिछड़े जातियों की आबादी अधिक है. इसपर राज्य सरकार को पहले निर्णय लेना चाहिए था.
बहरहाल, राज्य सरकार के इस फैसले ने एक नई बहस राज्य में छेड़ दी है. लोग समझ रहे हैं कि राज्य में जनसंख्या के हिसाब से ओबीसी को आरक्षण देने के सवाल पर सिर्फ राजनीति होती है. राज्य बनने के बाद से 27 प्रतिशत की जगह सिर्फ 14 प्रतिशत आरक्षण ही ओबीसी को मिल रहा है.