रांचीः सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड के वीसी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने केंद्र सरकार और सेंट्रल यूनिवर्सिटी की ओर से पेश किए जवाब को देखने पर प्रथम दृष्टया इसमें गड़बड़ी माना है. अदालत ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार को मामले में संबंधित सभी मूल संचिका अदालत में पेश करने का आदेश दिया है.
विस्तृत सुनवाई के लिए याचिका को स्वीकृत कर लिया गया
झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत प्रसाद की अदालत में सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड के वीसी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई. अदालत में केंद्र सरकार और राज्य सरकार के जवाब को देखने के उपरांत मूल संचिका अदालत में पेश करने का आदेश दिया है. अदालत ने माना कि प्रथम दृष्टया देखने पर यह प्रतीत होता है कि इसमें कुछ गड़बड़ लगती है. यह मामला गंभीर है. मामले की गंभीरता को देखते हुए इसकी विस्तृत सुनवाई के लिए याचिका को स्वीकृत कर लिया है. अदालत ने केंद्र सरकार को और सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड को मामले में मूल संचिका पेश करने का आदेश दिया है.
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि विश्वविद्यालय के एग्जीक्यूटिव काउंसिल और एकेडमिक काउंसिल के गठन से संबंधित जो नियम बनाए गए हैं, उसमें फ्रॉड किया गया है. जिसके तहत नियुक्ति होती है, उस अधिनियम में छेड़छाड़ किया गया है. सीयूजे के संशोधित अधिनियम 11 और 13 में जो बदलाव किया गया है, वह बदलाव असंवैधानिक है यह नहीं किया जा सकता है. इसलिए इसे निरस्त कर दिया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि जिस संशोधित अधिनियम में ही गड़बड़ी की गई है.
याचिकाकर्ता हरीश मोहन ने झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर कर सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ झारखंड के वीसी की नियुक्ति को चुनौती दी है. उनका कहना है कि जिस अधिनियम के तहत विश्व की नियुक्ति की जाती है, उसमें हेरफेर कर नियुक्ति की गई है. इसलिए सबसे पहले तो यह अधिनियम में जो संशोधन किया गया है, वह गलत है. उसे रद्द कर देनी चाहिए.