रांची: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के सातवें दीक्षांत समारोह का आयोजन किया गया. इस समारोह में राज्यपाल रमेश बैस भी शामिल हुए. कांके स्थित बीएयू कैंपस में आयोजित दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए राज्यपाल सह चांसलर रमेश बैस ने 1139 छात्र छात्राओं को उपाधि प्रदान की. छात्र-छात्राओं को उपाधि प्रदान करने के बाद उन्होंने कहा कि हर एक नया दौर, नई चुनौती लेकर आता है, जिसका सामना आप सफलतापूर्वक करेंगे. जीवन में हमेशा बेहतर सीखने की भूख रहनी चाहिए, तभी हम आगे बढ़ेंगे.
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राज्यपाल ने कहा कि बीएयू 2017 में 53वां, 2018 में 60वां और 2020 में 58वां पर है, क्या कारण है कि विश्वविद्यालय टॉप 20 में नहीं है. आईसीएआर की मानक पर हम टॉप 20 में क्यों नहीं हैं. इसपर चिंतन करने की जरूरत है. इसके अलावा राज्यपाल ने किसानों के बेहतर भविष्य में कृषि एवं पशुपालन के छात्रों की भूमिका को चिन्हित किया.
छात्रों के राज्यपाल के निर्देश: राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि मिट्टी में सुधार, अनाजों में पोषण स्तर को बनाये रखना और पर्यावरण को भी संतुलित बनाएं रखना एक बड़ी चुनौती है. डिग्री धारण करनेवाले नव कृषि, मत्स्य और पशुपालन के युवा पांच-पांच गांव में जाएं. किसानों के बीच बैठें, उनकी समस्या सुनें तो बदलाव दिखेगा. उन्होंने कहा कि वर्षा जल का 80% बिना उपयोग के बह जाना दुखद है. जल प्रबंधन की दिशा में काम करने की जरूरत है. अनाज उत्पादन में हमें आत्मनिर्भर बनना है, जैसे सब्जी उत्पादन में हम हैं. किसानों को उनके उत्पाद के उचित मूल्य पर भी ध्यान देना होगा. लोगों का विश्वास कृषि में बना रहे, इसके लिए भी कृषि वैज्ञानिकों को काम करना है.
आईसीएआर के महानिदेशक ने भी की शिरकत: इस दीक्षांत समारोह में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर के महानिदेशक डॉ हिमांशु पाठक भी अतिथि के रूप में शामिल हुए. उन्होंने कहा कि दीक्षांत समारोह विद्यार्थी जीवन का एक महत्वपूर्ण दिन होता है. उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने कहा था 'शिक्षा सिर्फ डिग्री प्राप्त करना भर नहीं है, जब तक आपके अंदर का टैलेंट बाहर निकलकर समाज के लिए समर्पित न हो, तब तक शिक्षा प्राप्ति परिपूर्ण नहीं होता.'
भारतीय कृषि ने तय की है एक लंबी यात्रा: हिमांशु पाठक ने कहा कि 1970 तक देश को शिप टू माउथ कहा जाता था, जो देश 1960-1970 तक अनाज के लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहता था. वहीं भारत आज विश्व के 15-20 देशों को मुफ्त में अनाज देते हैं. आज भारतीय कृषि ने जो विकास किया है, उससे फूड और न्यूट्रिशन की कमी दूर करने में ग्लोबल भूमिका निभाता है. यशस्वी प्रधानमंत्री का सपना है कि 2047 तक हम एक विकसित देश बनकर विश्व के सामने आएं. इस उन्नत भारत के सपने को पूरा करने की जवाबदेही उन सभी युवाओं पर है, जिन्होंने आज यहां डिग्री प्राप्त की है. उन्होंने कहा नया करना है तो नई सोच और नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल जरूरी है.
24 छात्र छात्राओं को मिला गोल्ड मेडल: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में हर 4 वर्ष पर दीक्षांत समारोह आयोजित किये जाते हैं. वर्ष 2019 के बाद 2023 में आयोजित किये गए दीक्षांत समारोह में 24 छात्र-छात्राओं को गोल्ड मेडल प्रदान किये गए. इन गोल्ड मेडलिस्ट मेधावी छात्र-छात्राओं में भी 3 को अपने सत्र में किसी भी पाठ्यक्रम में सर्वोच्चता हासिल करने के लिए चांसलर यूनिवर्सिटी ने गोल्ड मेडल प्रदान किया. चांसलर यूनिवर्सिटी गोल्ड मेडल पाने वाले छात्र में 2019-20 सत्र के स्वप्निल, वर्ष 2020-21 सत्र के एम देवेंद्र और 2021-22 सत्र की काजल कुमारी शामिल हैं. जिन 1139 छात्र छात्राओं को उपाधि और ग्रेजुएशन सेरेमनी प्रदान किया गया, उनमें 226 स्नातकोत्तर, 888 स्नातक डिग्री और 25 पीएचडी की उपाधि रही.
कुलपति ने क्या कहा: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि यूनिवर्सिटी का 7वां दीक्षांत समारोह बेहद खास है, क्योंकि पहली बार विश्वविद्यालय के बाहर स्थापित किये गए महाविद्यालयों के छात्र-छात्राओं ने डिग्री प्राप्त किया है. कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि बीज से बाजार तक इनोवेशन कर युवा कृषि विकास में भागीदारी निभा सकते हैं. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में ना सिर्फ फसलों की कई वैरायटी विकसित की गई हैं, बल्कि सुकर और पॉल्ट्री की नई प्रजातियां भी विकसित किये गये हैं. कृषि प्रसार शिक्षा के अंतर्गत 16 कृषि विकास केंद्र को सशक्त किया जा रहा है. मोटे अनाज की खेती के लिए बड़ी योजना बनाई गई है. वहीं आज डिग्री प्राप्त करने वाले छात्र छात्राओं ने कहा वह कृषि के क्षेत्र में झारखंड और भारत को अग्रणी बनाने के लिए काम करेंगे. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की आईसीएआर रैंकिंग में पिछड़ने पर कहा कि फैकल्टी और मानव संसाधन की कमी की वजह से ऐसा हुआ है.