खूंटी: जिले के रामनवमी का इतिहास 83 साल पुराना है. देश की आजादी से पहले से चली आ रही जिले में रामनवमी धूमधाम से मनाने की परंपरा आज भी कायम है. खूंटी में रामनवमी हिंदु मुस्लिम एकता की मिसाल भी पेश करता है. यहां अल्पसंख्यक समुदाय के कई लोग कई दशकों से इस पर्व में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. भले ही जिले में कुछ असामाजिक तत्वो ने रामनवमी से पूर्व अशांति फैलाने की कोशिश की लेकिन यहां के अमन पसंद लोगों ने 83 वर्षो का ऐतिहासिक परंपरा को धूमिल होने से बचा लिया और दोनों समुदायों ने विवाद को भुलाकर रामनवमी मनाने का एलान किया है.
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खूंटी में रामनवमी का इतिहास: खूंटी जिले में रामनवमी की शुरुआत 1939 से शुरू हुई थी. तब से हर साल इसे भव्य तरीके से मनाने की परंपरा जारी है. पहले के 10 सालों में खूंटी में रामनवमी सिर्फ एक दिन चैत शुक्ल नवमी तिथि को मनाया जाता था लेकिन धीरे धीरे खूंटी की आबादी बढ़ती गई और इसके साथ रामनवमी का स्वरूप भी बदलता गया. आज पूरा शहर 15 से 20 दिन पहले इसकी तैयारी में लग जाता है. कहते है कि वर्ष 1938 के खूंटी एसडीओ वेबस्टल रामनवमी जुलूस के लिए लाइसेंस देने के लिए पक्ष में नही थे, लेकिन रामनवमी साव उर्फ उर्फ घसिया साव, रामटहल भगत,नारायण चौधरी आदि के प्रयास पर रांची के तत्कालीन डीसी ने रामनवमी जुलूस निकालने की मंजूरी दे दी थी. वर्ष 1950 में दशमी के दिन आश्रम मैदान पतरा टोली खूंटी में मेला सह खेलकूद प्रतियोगिता का शुभारंभ हुआ. तब इसका द्धघाटन समारोह में बिहार के तत्कालीन गवर्नर एमएस अन्ने बतौर मुख्य अतिथि शरीक हुए थे.
खास है खूंटी का रामनवमी: खूंटी के रामनवमी को खास माना जाता है. कारण है कि अन्य जगहों में जहां नवमी की शोभायात्रा के साथ ही रामनवमी के समापन हो जाता है वहीं खूंटी में दशवी मेला के साथ इसका समापन किया जाता है. रामनवमी के इस अनोखे परंपरा को निभाने के लिए सिर्फ जिले के लोग ही नहीं बल्कि दूसरे जिलों के लोग भी बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं. इसके साथ ही ये भी बताया जाता है कि शुरुआत में यहां दो झंडों के साथ जुलूस निकाली गई. इसमें एक झंडा खूंटी बस्ती का और दूसरा बार एसोसिएसन का था.