रांची: भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा रविवार देर शाम 6:00 बजे तक संपन्न हो जाएगा. शाम 4:00 बजे मौसीबाड़ी से भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर अपना गृह वापसी करेंगे. भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलराम को मौसीबाड़ी में दर्शन करने के लिए सुबह से ही हजारों श्रद्धालु लगातार पहुंच रहे हैं.
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जगन्नाथपुर मंदिर समिति के प्रथम सेवक राहुल शाहदेव ने कहा कि शाम 6:00 बजे भगवान मुख्य मंदिर के लिए वापस हो जाएंगे. फिर इसी के साथ 10 दिनों का भव्य पूजा का समापन होगा. इसके साथ ही जगन्नाथपुर में लगने वाला मेला भी खत्म हो जाएगा. मंदिर के पुजारी ने बताया कि कभी 9 दिन या फिर कभी-कभी 10 दिन पर भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा की वापसी होती है. इस वर्ष 10 दिनों के बाद वापसी हो रही है. क्योंकि 9वें दिन शनिवार था, इसी को देखते हुए मंदिर समिति के लोगों ने 10वें दिन घुरती रथ यात्रा का आयोजन करने का निर्णय लिया. घुरती रथ यात्रा को लेकर धुर्वा क्षेत्र में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम रखे गए हैं. साथ ही श्रद्धालुओं को किसी तरह की कोई परेशानी ना हो इसका भी विशेष ध्यान रखा गया है.
जगन्नाथपुर मंदिर एक परिचयः रांची नगर से 10 किलोमीटर दूर दक्षिण की ओर स्थित 250 फीट ऊंची पहाड़ी पर 101 फीट ऊंचा जगन्नाथ मंदिर बना है. 1691 के अंत में ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने सुंदर एवं वनाच्छादित पहाड़ी पर इस मंदिर का निर्माण कराया था. आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक अन्य पहाड़ी पर मौसीबाड़ी बनवाकर रथ यात्रा का शुभारंभ किया था. मौसीबाड़ी में वर्ष में 9 दिन तक जगन्नाथ स्वामी अपने भाई बलराम एवं बहन सुभद्रा के साथ प्रवास पर रहते हैं.
प्रतिवर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को चलती रथ मेला का आयोजन होता है और हरि शयन एकादशी को घुरती रथ यात्रा निकाली जाती है. इस मेला में दूर-दराज से लाखों आदिवासी, गैर-आदिवासी जगन्नाथ स्वामी के दर्शन के लिए आते हैं. यह परंपरा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है. जब यातायात की व्यवस्था नहीं थी, सुदूर ग्रामों में से जंगल, पहाड़ और नदियों को लांघकर लोग रथ मेला से 2-3 दिन पहले ही यहां पहुंच जाते थे.
जगन्नाथ स्वामी के मंदिर के निर्माण के संबंध में कहा जाता है कि 21 पुत्रों के पिता एनीनाथ शाहदेव जब वृद्ध हुए तो उन्हें संसार से विरक्ति हो गयी. जगन्नाथ स्वामी के दर्शन के लिए एक नौकर के साथ पुरी की यात्रा पर निकल पड़े. उन दिनों तीर्थ यात्री अपने तमाम सामान लेकर चला करते थे. एनीनाथ ने सारी सुविधाएं होते हुए कष्टकर यात्रा को चुना. घनघोर पहाड़ और नदियों को लांघकर यात्रा करनी पड़ी. तब जाकर ठाकुर एनीनाथ पुरी पहुंचे. भगवान के दर्शन किये और वहां शांति का अनुभव किया. कहा जाता है कि उन्हें स्वप्न में स्वयं भगवान जगन्नाथ ने बड़कागढ़ में जगन्नाथ मंदिर बनाने के लिए कहा. ठाकुर एनीनाथ ने इस सपने को भगवान का आदेश माना और बड़कागढ़ में जगन्नाथ मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया. ऐसा लगता है मानो प्रकृति ने इस मंदिर के लिए ही दो पहाड़ियों का निर्माण कर रखा था.
इन्हीं पहाड़ियों पर ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने दोनों मंदिरों का निर्माण करवाया. पुरी के मंदिर की तरह ही काष्ठ के विग्रह बनवाये गये. व्यवस्था के लिए जगन्नाथपुर, आनी एवं भुसुर तीन गांवों को जगन्नाथ मंदिर के नाम दान कर दिया. पुरी मंदिर की तर्ज पर और उन्हीं तिथियों पर रथ यात्रा निकालने की व्यवस्था की गयी. सन 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक बड़कागढ़ के ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को अंग्रेजों ने फांसी दे दी. बड़ाकागढ़ के सभी 97 गांवों को ब्रिटिश सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया.