रांची: झारखंड में इन दिनों नियोजन नीति का मुद्दा सुर्खियों में है. छात्र सड़कों पर हैं और सरकार आश्वासन पर आश्वासन देने में जुटी है. इन सबके बीच 17 अप्रैल से छात्रों का 72 घंटे का आंदोलन शुरू होने जा रहा है. 72 घंटे के इस आंदोलन के क्रम में पहले दिन यानी 17 अप्रैल को मुख्यमंत्री आवास घेराव का कार्यक्रम छात्रों का है. वहीं, 19 अप्रैल को झारखंड बंद का ऐलान किया गया है. नियोजन नीति के मुद्दे पर छात्रों की नाराजगी पहली बार नहीं देखी जा रही है. इससे पहले भी आंदोलन होते रहे हैं. कभी सोशल मीडिया पर तो कभी सड़कों पर तो कभी विधानसभा घेराव कर छात्र अपने गुस्से का इजहार करते रहे हैं.
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बाबूलाल मरांडी लेकर आए नियोजन नीति: झारखंड में अब तक तीन बार नियोजन नीति बन चुकी है. सर्वप्रथम राज्य गठन के बाद झारखंड की गद्दी संभालने के बाद बाबूलाल मरांडी ने स्थानीय लोगों को रोजगार देने और आरक्षण की नई कहानी लिखने की कोशिश की थी. डोमिसाइल को लेकर उठा विवाद और उसके बाद 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति लाने की कोशिश में बाबूलाल मरांडी सफल नहीं हो पाए. झारखंड हाईकोर्ट ने बाबूलाल मरांडी सरकार के 73% आरक्षण की व्यवस्था को असंवैधानिक बताते हुए इस नियोजन नीति रद्द कर दिया था. बाबूलाल मरांडी की स्थानीय और नियोजन नीति कानूनी रूप से खारिज होने के बाद लंबे समय तक राज्य में जैसे तैसे नियुक्ति प्रक्रिया चलती रही. इस दौरान नियुक्ति प्रक्रिया में बरती गई अनियमितता जगजाहिर है.
रघुवर दास ने बनाई थी नियोजन नीति: रघुवर दास के नेतृत्व में बनी सरकार ने स्थानीय नीति के साथ नियोजन नीति भी बनाया. 14 जुलाई 2016 को रघुवर सरकार की ओर से नियोजन नीति लागू की गई. नियोजन नीति के अंतर्गत 13 जिलों को अनुसूचित और 11 जिलों को गैर अनुसूचित जिला घोषित कर दिया गया था. नियोजन नीति के अंतर्गत अनुसूचित जिलों की ग्रुप सी और ग्रुप डी की नौकरियों में वहीं यानी उसी जिला के निवासियों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया था. यह प्रावधान 10 वर्षों के लिए रखी गई थी. इस नियोजन नीति के तहत जैसे ही राज्य सरकार की ओर से नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की गई, यह भी विवादों में आ गया और सोनी कुमारी बनाम झारखंड सरकार के एक मामले में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से इसे आखिरकार खारिज होना पड़ा.
हेमंत सोरेन भी लेकर आए नियोजन नीति: 2019 के विधानसभा चुनाव में सफलता मिलने के बाद झारखंड की गद्दी पर आसीन होते ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 3 फरवरी 2021 को रघुवर सरकार की नियोजन नीति के बदले एक नए नियोजन नीति लाने की घोषणा की. रघुवर सरकार की नियोजन नीति को रद्द करने के पीछे झारखंड हाईकोर्ट का हवाला देते हुए हेमंत सरकार का तर्क यह था कि राज्य स्तरीय नियोजन नीति बनाया जाएगा.
हेमंत सरकार ने इस दिशा में कदम भी बढ़ाया और 2021 में एक नई नियोजन नीति बनाने का काम किया. जिसके तहत सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए झारखंड के मैट्रिक-इंटर पास की अनिवार्यता की गई. इसके अलावा हिंदी और अंग्रेजी को किनारे करते हुए प्रत्येक जिले में उर्दू एवं क्षेत्रीय भाषाओं की मान्यता दी गई. जिसके खिलाफ झारखंड हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गयी. झारखंड हाईकोर्ट ने हेमंत सरकार की नियोजन नीति 2021 को असंवैधानिक मानते हुए 17 दिसंबर 2022 को निरस्त कर दिया. जिसके परिणामस्वरूप जेएसएससी द्वारा आयोजित होने वाली सभी परीक्षाएं रद्द हो गई. सरकार ने हाईकोर्ट से नियोजन नीति 2021 निरस्त होने के बाद न्यायालय द्वारा दिए गए सुझाव के अंतर्गत संशोधन कर नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की है. जिसके तहत किसी भी रिक्ति में 40% सीटें झारखंड सहित देश के अन्य राज्यों के अभ्यर्थियों के लिए ओपन करने का प्रावधान कर दिया गया है जिससे छात्र नाराज हैं और इसे झारखंड के मूलवासी छात्रों की हकमारी मानते हुए सरकार पर दवाब बनाने में जुटे हैं.