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जिस खाकी से नफरत थी-आज वही वर्दी बना जीने का सहारा, मिलिए और जानिए पूर्व नक्सली रामपदो की कहानी

कुछ बनने की चाह हो या मन में अच्छा करने की ठान ली जाए, तो कोई भी काम मुश्किल नहीं होता है. पूर्व नक्सली रामपदो लोहरा की यही कहानी है. आइए आपको रूबरू करवाते हैं उनकी नक्सली से लेकर दर्जी बनने के सफर से.

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पूर्व नक्सली रामपदो लोहार
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Published : Aug 1, 2021, 7:36 PM IST

Updated : Aug 3, 2021, 5:14 PM IST

रांचीः वह कभी पुलिस की वर्दी से हद से ज्यादा नफरत करता था, पुलिसवालों के खून का प्यासा था. लेकिन आज वही वर्दी उस शख्स के लिए जीवन-यापन का साधन बन गया है. पुलिस के लिए कभी चुनौती बना भाकपा माओवादी का खूंखार नक्सली रामपदो लोहरा जिसने हथियार छोड़कर कैंची थाम ली. आत्मसमर्पण कर चुका रामपदो अब रांची पुलिस लाइन में पुलिस की वर्दी सिलाई कर अपनी जीविका चला रहा है.

इसे भी पढ़ें- कभी नक्सली संगठन में रहकर बड़े कांड को देता था अंजाम, अब ग्रामीणों के लिए बना मसीहा

नक्सली रामपदो लोहरा, बुंडू और तमाड़ के इलाके में जिसके नाम सिक्का कभी चलता था. उस इलाके में पुलिस वाले वर्दी पहनने से खौफ खाते थे. आज रामपदो के हाथों से रांची की पुलिस खाकी पहन रही है. रांची पुलिस लाइन के जवान अब रामपदो के हुनर के कायल हो चुके हैं. अपने जिस्म पर सभी रामपदो की सिली हुई वर्दी ही चाहते हैं.

देखें पूरी खबर

जानिए कौन है रामपदो लोहरा

बुंडू-तमाड़ इलाके के रहने वाले रामपदो लोहरा एक साधारण व्यक्ति थे. अपने किशोरावस्था में उन्होंने अपने परिवार पर जमींदारों का शोषण देखा. लेकिन कुछ ना कर पाने की वजह से वो मन मसोसकर रह जाता. जब उसकी अपनी जमीन छिन गई तो उसका खून खौल उठा उसने जमींदारों के खिलाफ हथियार उठा लिया और नक्सली दस्ते में शामिल हो गया.

साल 2005 में कुंदन पाहन के दस्ते में हुआ शामिल

रामपदो साल 2005 में कुख्यात नक्सली कमांडर कुंदन पाहन के दस्ते में शामिल हुआ. शुरुआत में वह माओवादियों के लिए उनकी वर्दी सिलता था. उसके बाद कुंदन पाहन ने उसे हथियार थमा दिया. इसके बाद कई पुलिस मुठभेड़ में वह शामिल रहा, कई वारदातों को उसने कुंदन पाहन के साथ मिलकर अंजाम दिया. रांची से सटे नक्सल प्रभावित बुंडू-तमाड़ इलाके में कभी रामपदो लोहरा का खौफ हुआ करता था.

रामपदो उस समय संगठन में सक्रिय था, जिस समय रांची से बुंडू तमाड़ जाने में पुलिस वालों के भी रूह कांप जाते थे. साल 2005 से लेकर 2014 तक बुंडू-तमाड़ के थानेदार जब रांची आते थे, तब वो वर्दी पहन कर नहीं आते थे, क्योंकि नक्सलियों के निशाने पर हमेशा वर्दी वाले ही होते थे. रामपदो पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था.

रामपदो बुंडू-तमाड़ के आसपास के पहाड़ और जंगलों से परिचित था, इसलिए उसका मुख्य काम नक्सलियों के लिए हथियार की खेप पहुंचाने का था. पुलिस की नजरों से छुपकर रामपदो अपने साथियों तक बड़ी आसानी से हथियार पहुंचा देता था.

इसे भी पढ़ें- नक्सलवाद और अफीम की खेती के लिए बदनाम खूंटी में केसर की खुशबू


2012 के बाद संगठन में हो रहे भेदभाव से परेशान रहा
साल 2009 में कुंदन पाहन और उसके साथियों ने जमशेदपुर से रांची आ रहे आईसीआईसीआई बैंक के कैश वैन लूटी. जिसमें 5 करोड़ रुपया और दो किलो सोना था, उसे तमाड़ के पास लूट लिया था. इन पैसों के बंटवारे में जमकर बेईमानी की गई, जिसकी वजह से बुंडू-तमाड़ में सक्रिय माओवादियों के संगठन में फूट पड़ गई. संगठन सिर्फ पैसे के लिए ही इलाके में काम करने लगा. इस दौरान कई पुलिसकर्मियों की हत्या भी की गई थी. संगठन में पैसे की भूख और भेदभाव को देखकर रामपदो का मन संगठन से खिन्न होने लगा. अब रामपदो को लगने लगा कि नक्सली अपनी विचारधारा से भटक गए हैं.

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पूर्व नक्सली रामपदो की टेलरिंग की दुकान

2013 में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया
माओवादी संगठन में हो रहे भेदभाव और पैसों की लालच के साथ-साथ ऑपरेशन ग्रीन हंट की शुरुआत हुई. इस वजह से नक्सली संगठन के साथ-साथ रामपदो भी दहशत में था. इस दौरान उसके परिवार वाले भी लगातार उसे पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने का दबाव डाल रहे थे. जिसके बाद रामपदो ने एक बार फिर मुख्यधारा में लौट आने का प्रण कर लिया. मौका मिलते ही रामपदो संगठन छोड़ कर भाग गया. उस समय रांची के तत्कालीन रूरल एसपी सुरेंद्र झा (वर्तमान में एसएसपी रांची) के संपर्क में आया. जिसके बाद उसका विधिवत आत्मसमर्पण रांची में करवाया गया.


आत्मसमर्पण के बाद अपने ही साथियों के निशाने पर
2013 में आत्मसमर्पण करने के बाद झारखंड पुलिस के आत्मसमर्पण नीति के तहत मिलने वाले सभी लाभ रामपदो को मिले. आत्मसमर्पण के बाद रामपदों को 4 साल तक जेल में रहना पड़ा. लेकिन आत्मसमर्पण करने की वजह से रामपदो अपने ही साथियों के निशाने के निशाने पर आ गया. रामपदो को जान से मारने की धमकी मिली शुरू हो गई, उसके संगठन के साथी यह जानते थे कि उसके सीने में उसके कई राज दफन हैं और अगर वह पुलिस के सामने आ गए तो बुंडू-तमाड़ में चल रहा नक्सल आंदोलन पूरी तरह से प्रभावित हो जाएगा.

इसे भी पढ़ें- नक्सली संगठन में रहकर बड़े कांड को देता था अंजाम, अब ग्रामीणों के लिए मसीहा बना लादू मुंडा


पुलिस लाइन में दिलाई गई जगह
नक्सली संगठन और दूसरे साथियों से लगातार मिल रही धमकी और जान का खतरा रामपदो भांप चुका था. इसी दौरान वो अपनी जान बचाने के लिए रांची भाग गया. यहां सीनियर पुलिस अधिकारियों के सामने अपनी बेबसी बताई. जिसके बाद उसे रांची पुलिस लाइन में ही रहने की सुविधा मुहैया कराई गई.

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पुलिस की वर्दी सिलाई करते पूर्व नक्सली


दर्जी का हुनर आया काम
रामपदो लोहरा को दर्जी के काम में महारथ हासिल थी, वह नक्सल संगठन में रहते हुए भी नक्सलियों के लिए वर्दी और उनका पिट्ठू बनाता था. रांची के तत्कालीन एसएसपी साकेत सिंह ने रामपदो को यह कहा कि वह एक बेहतरीन दर्जी है इसलिए वह दर्जी का काम पुलिस लाइन में ही शुरू कर दे. रांची पुलिस लाइन में स्थित पानी टंकी के पास बने कमरे में रामपदो ने पुलिस की वर्दी सिलाई का काम शुरू किया, जो आज तक जारी है.

20 से 25 हजार रुपया कमा लेता है रामपदो
रामपदो वर्तमान समय में एक दिन में लगभग चार से पांच सेट पुलिस की वर्दी तैयार कर लेता है. काम अगर ज्यादा हो तो वह शहर के दूसरे दर्जियों की मदद भी लेता है. इस काम से हर महीने 15 से 20 हजार रुपया बड़े आराम से कमा लेता है. आज यही उसके परिवार का गुजारा है और रांची पुलिस लाइन ही उसका बसर है.

बेटा दिनेश भी बेहतरीन टेलर मास्टर
रामपदो के दो बेटे हैं, जिसमें छोटा बेटा दिनेश लोहरा भी एक बेहतरीन दर्जी हैं और अपने पिता के काम में अपना हाथ बंटाता है. दोनों मिलकर हर दिन 4 से 5 सेट वर्दी तैयार कर देता है. दिनेश के अनुसार वर्तमान समय में उनका जीवन अच्छे से बीत रहा है. कपड़े सिलने से जो कुछ पैसा आता है उससे पूरे परिवार का भरण-पोषण हो जाता है.

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पुलिस लाइन में वर्दी सिलाई करते पूर्व नक्सली

दिनेश के अनुसार जब उसके पिता जंगल में थे, तब उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. उस दौरान पुलिस अक्सर घर आकर उनके पिता की तलाश करते थे. इन परेशानियों को लेकर बाद में परिवार वालों और दोस्तों के समझाने पर अपने पिता को मुख्यधारा में लौटने के लिए मनाया.

इसे भी पढ़ें- कोरोना में पूर्व नक्सली गांववालों की कर रहा मदद, बांट रहा खाद्य सामग्री


दूसरी पत्नी और बच्चों के साथ रहता पुलिस लाइन में बसर
झारखंड पुलिस के आत्मसमर्पण नीति का फायदा उठाकर मुख्यधारा में जुड़ चुके रामपदो लोहरा अब अपने पूरे परिवार के साथ पुलिस लाइन में ही रह रहे हैं. रामपदो की पहली पत्नी का देहांत हो चुका है, जब वो नक्सली दस्ते में थे. जिसके बाद उन्होंने दूसरा विवाह किया. फिलहाल रांची पुलिस लाइन में स्थित पानी टंकी में उनकी टेलरिंग की दुकान है, जबकि पुलिस लाइन में ही एक छोटा-सा क्वार्टर उन्हें मिला हुआ है.


बेहतरीन दर्जी, लगती है लाइन
रामपदो लोहरा से कपड़ा सिलवाने वाले पुलिसकर्मी बताते हैं कि रामपदो और उनका बेटा एक बेहतरीन दर्जी है. वह बड़े बेहतरीन ढंग से वर्दी सिलते हैं, इसलिए पुलिस लाइन का हर जवान या फिर दूसरे पदाधिकारी रामपदो से ही अपनी वर्दी सिलवाते हैं.

रांचीः वह कभी पुलिस की वर्दी से हद से ज्यादा नफरत करता था, पुलिसवालों के खून का प्यासा था. लेकिन आज वही वर्दी उस शख्स के लिए जीवन-यापन का साधन बन गया है. पुलिस के लिए कभी चुनौती बना भाकपा माओवादी का खूंखार नक्सली रामपदो लोहरा जिसने हथियार छोड़कर कैंची थाम ली. आत्मसमर्पण कर चुका रामपदो अब रांची पुलिस लाइन में पुलिस की वर्दी सिलाई कर अपनी जीविका चला रहा है.

इसे भी पढ़ें- कभी नक्सली संगठन में रहकर बड़े कांड को देता था अंजाम, अब ग्रामीणों के लिए बना मसीहा

नक्सली रामपदो लोहरा, बुंडू और तमाड़ के इलाके में जिसके नाम सिक्का कभी चलता था. उस इलाके में पुलिस वाले वर्दी पहनने से खौफ खाते थे. आज रामपदो के हाथों से रांची की पुलिस खाकी पहन रही है. रांची पुलिस लाइन के जवान अब रामपदो के हुनर के कायल हो चुके हैं. अपने जिस्म पर सभी रामपदो की सिली हुई वर्दी ही चाहते हैं.

देखें पूरी खबर

जानिए कौन है रामपदो लोहरा

बुंडू-तमाड़ इलाके के रहने वाले रामपदो लोहरा एक साधारण व्यक्ति थे. अपने किशोरावस्था में उन्होंने अपने परिवार पर जमींदारों का शोषण देखा. लेकिन कुछ ना कर पाने की वजह से वो मन मसोसकर रह जाता. जब उसकी अपनी जमीन छिन गई तो उसका खून खौल उठा उसने जमींदारों के खिलाफ हथियार उठा लिया और नक्सली दस्ते में शामिल हो गया.

साल 2005 में कुंदन पाहन के दस्ते में हुआ शामिल

रामपदो साल 2005 में कुख्यात नक्सली कमांडर कुंदन पाहन के दस्ते में शामिल हुआ. शुरुआत में वह माओवादियों के लिए उनकी वर्दी सिलता था. उसके बाद कुंदन पाहन ने उसे हथियार थमा दिया. इसके बाद कई पुलिस मुठभेड़ में वह शामिल रहा, कई वारदातों को उसने कुंदन पाहन के साथ मिलकर अंजाम दिया. रांची से सटे नक्सल प्रभावित बुंडू-तमाड़ इलाके में कभी रामपदो लोहरा का खौफ हुआ करता था.

रामपदो उस समय संगठन में सक्रिय था, जिस समय रांची से बुंडू तमाड़ जाने में पुलिस वालों के भी रूह कांप जाते थे. साल 2005 से लेकर 2014 तक बुंडू-तमाड़ के थानेदार जब रांची आते थे, तब वो वर्दी पहन कर नहीं आते थे, क्योंकि नक्सलियों के निशाने पर हमेशा वर्दी वाले ही होते थे. रामपदो पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था.

रामपदो बुंडू-तमाड़ के आसपास के पहाड़ और जंगलों से परिचित था, इसलिए उसका मुख्य काम नक्सलियों के लिए हथियार की खेप पहुंचाने का था. पुलिस की नजरों से छुपकर रामपदो अपने साथियों तक बड़ी आसानी से हथियार पहुंचा देता था.

इसे भी पढ़ें- नक्सलवाद और अफीम की खेती के लिए बदनाम खूंटी में केसर की खुशबू


2012 के बाद संगठन में हो रहे भेदभाव से परेशान रहा
साल 2009 में कुंदन पाहन और उसके साथियों ने जमशेदपुर से रांची आ रहे आईसीआईसीआई बैंक के कैश वैन लूटी. जिसमें 5 करोड़ रुपया और दो किलो सोना था, उसे तमाड़ के पास लूट लिया था. इन पैसों के बंटवारे में जमकर बेईमानी की गई, जिसकी वजह से बुंडू-तमाड़ में सक्रिय माओवादियों के संगठन में फूट पड़ गई. संगठन सिर्फ पैसे के लिए ही इलाके में काम करने लगा. इस दौरान कई पुलिसकर्मियों की हत्या भी की गई थी. संगठन में पैसे की भूख और भेदभाव को देखकर रामपदो का मन संगठन से खिन्न होने लगा. अब रामपदो को लगने लगा कि नक्सली अपनी विचारधारा से भटक गए हैं.

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पूर्व नक्सली रामपदो की टेलरिंग की दुकान

2013 में पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया
माओवादी संगठन में हो रहे भेदभाव और पैसों की लालच के साथ-साथ ऑपरेशन ग्रीन हंट की शुरुआत हुई. इस वजह से नक्सली संगठन के साथ-साथ रामपदो भी दहशत में था. इस दौरान उसके परिवार वाले भी लगातार उसे पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने का दबाव डाल रहे थे. जिसके बाद रामपदो ने एक बार फिर मुख्यधारा में लौट आने का प्रण कर लिया. मौका मिलते ही रामपदो संगठन छोड़ कर भाग गया. उस समय रांची के तत्कालीन रूरल एसपी सुरेंद्र झा (वर्तमान में एसएसपी रांची) के संपर्क में आया. जिसके बाद उसका विधिवत आत्मसमर्पण रांची में करवाया गया.


आत्मसमर्पण के बाद अपने ही साथियों के निशाने पर
2013 में आत्मसमर्पण करने के बाद झारखंड पुलिस के आत्मसमर्पण नीति के तहत मिलने वाले सभी लाभ रामपदो को मिले. आत्मसमर्पण के बाद रामपदों को 4 साल तक जेल में रहना पड़ा. लेकिन आत्मसमर्पण करने की वजह से रामपदो अपने ही साथियों के निशाने के निशाने पर आ गया. रामपदो को जान से मारने की धमकी मिली शुरू हो गई, उसके संगठन के साथी यह जानते थे कि उसके सीने में उसके कई राज दफन हैं और अगर वह पुलिस के सामने आ गए तो बुंडू-तमाड़ में चल रहा नक्सल आंदोलन पूरी तरह से प्रभावित हो जाएगा.

इसे भी पढ़ें- नक्सली संगठन में रहकर बड़े कांड को देता था अंजाम, अब ग्रामीणों के लिए मसीहा बना लादू मुंडा


पुलिस लाइन में दिलाई गई जगह
नक्सली संगठन और दूसरे साथियों से लगातार मिल रही धमकी और जान का खतरा रामपदो भांप चुका था. इसी दौरान वो अपनी जान बचाने के लिए रांची भाग गया. यहां सीनियर पुलिस अधिकारियों के सामने अपनी बेबसी बताई. जिसके बाद उसे रांची पुलिस लाइन में ही रहने की सुविधा मुहैया कराई गई.

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पुलिस की वर्दी सिलाई करते पूर्व नक्सली


दर्जी का हुनर आया काम
रामपदो लोहरा को दर्जी के काम में महारथ हासिल थी, वह नक्सल संगठन में रहते हुए भी नक्सलियों के लिए वर्दी और उनका पिट्ठू बनाता था. रांची के तत्कालीन एसएसपी साकेत सिंह ने रामपदो को यह कहा कि वह एक बेहतरीन दर्जी है इसलिए वह दर्जी का काम पुलिस लाइन में ही शुरू कर दे. रांची पुलिस लाइन में स्थित पानी टंकी के पास बने कमरे में रामपदो ने पुलिस की वर्दी सिलाई का काम शुरू किया, जो आज तक जारी है.

20 से 25 हजार रुपया कमा लेता है रामपदो
रामपदो वर्तमान समय में एक दिन में लगभग चार से पांच सेट पुलिस की वर्दी तैयार कर लेता है. काम अगर ज्यादा हो तो वह शहर के दूसरे दर्जियों की मदद भी लेता है. इस काम से हर महीने 15 से 20 हजार रुपया बड़े आराम से कमा लेता है. आज यही उसके परिवार का गुजारा है और रांची पुलिस लाइन ही उसका बसर है.

बेटा दिनेश भी बेहतरीन टेलर मास्टर
रामपदो के दो बेटे हैं, जिसमें छोटा बेटा दिनेश लोहरा भी एक बेहतरीन दर्जी हैं और अपने पिता के काम में अपना हाथ बंटाता है. दोनों मिलकर हर दिन 4 से 5 सेट वर्दी तैयार कर देता है. दिनेश के अनुसार वर्तमान समय में उनका जीवन अच्छे से बीत रहा है. कपड़े सिलने से जो कुछ पैसा आता है उससे पूरे परिवार का भरण-पोषण हो जाता है.

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पुलिस लाइन में वर्दी सिलाई करते पूर्व नक्सली

दिनेश के अनुसार जब उसके पिता जंगल में थे, तब उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. उस दौरान पुलिस अक्सर घर आकर उनके पिता की तलाश करते थे. इन परेशानियों को लेकर बाद में परिवार वालों और दोस्तों के समझाने पर अपने पिता को मुख्यधारा में लौटने के लिए मनाया.

इसे भी पढ़ें- कोरोना में पूर्व नक्सली गांववालों की कर रहा मदद, बांट रहा खाद्य सामग्री


दूसरी पत्नी और बच्चों के साथ रहता पुलिस लाइन में बसर
झारखंड पुलिस के आत्मसमर्पण नीति का फायदा उठाकर मुख्यधारा में जुड़ चुके रामपदो लोहरा अब अपने पूरे परिवार के साथ पुलिस लाइन में ही रह रहे हैं. रामपदो की पहली पत्नी का देहांत हो चुका है, जब वो नक्सली दस्ते में थे. जिसके बाद उन्होंने दूसरा विवाह किया. फिलहाल रांची पुलिस लाइन में स्थित पानी टंकी में उनकी टेलरिंग की दुकान है, जबकि पुलिस लाइन में ही एक छोटा-सा क्वार्टर उन्हें मिला हुआ है.


बेहतरीन दर्जी, लगती है लाइन
रामपदो लोहरा से कपड़ा सिलवाने वाले पुलिसकर्मी बताते हैं कि रामपदो और उनका बेटा एक बेहतरीन दर्जी है. वह बड़े बेहतरीन ढंग से वर्दी सिलते हैं, इसलिए पुलिस लाइन का हर जवान या फिर दूसरे पदाधिकारी रामपदो से ही अपनी वर्दी सिलवाते हैं.

Last Updated : Aug 3, 2021, 5:14 PM IST
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