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बाबूलाल मरांडी ने की मन की बात, अपने कार्यकाल से कराया हेमंत सरकार को अवगत - झारखंड न्यूज

पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी (Former CM Babulal Marandi) ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल के अनुभव को शेयर किया. उन्होंने ब्यूरोक्रेसी से भी आग्रह किया कि इतिहास के पन्ने पलट कर देखें और सोचें कि गलत का अंजाम अंत में क्या होता है?

Former CM Babulal Marandi
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Published : Nov 30, 2022, 7:53 PM IST

Updated : Nov 30, 2022, 8:32 PM IST

राची: पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी (Former CM Babulal Marandi) मन की बात करते देखे गए. इस दौरान बाबूलाल ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल के अनुभव को शेयर किया. उन्होंने कानून व्यवस्था को लेकर अनुभव को साझा किया है. उन्होंने लिखा है कि मेरे कार्यकाल के समय उग्रवादियों का उत्पात चरम पर था. मेरी योजना ज्यादा से ज्यादा उग्रवादियों, उनके सहयोगियों को मुख्यधारा में वापस लाने की थी. आदिवासी बाहुल्य एक जिले में कुछ उग्रवादियों को लॉजिस्टिक सपोर्ट देने वालों के पीछे पुलिस हाथ धोकर पड़ी हुई थी. मैंने वहां के एक सीनियर पदाधिकारी को बुलाकर कर कहा कि उन्हें मुख्यधारा में लाना चाहता हूँ. थोड़ा रहम करिये उनपर. वो अधिकारी रो पड़े और कहा कि “सर ये लोग भारी बदमाश हैं. मेरे से तो ये नहीं होगा. आप चाहें तो मुझे वहां से हटा दीजिए. मैंने तुरंत अपनी बात वापस ली और उन्हें कहा कि बेहिचक अपनी कार्रवाई जारी रखिए.

ये भी पढ़ें- बाबूलाल के भरोसे झारखंड में भाजपा! मिल सकता है राज्य संगठन को धारदार करने का सीधा भार

आज भी उन्हें देखता हूं तो मुझे उनकी बात याद आ जाती है और मैं उन्हें सम्मान से ही देखता हूं. संयोगवश वो अफसर भी आदिवासी समाज से ही थे. लेकिन मैंने पद की गोपनीयता की शपथ ली थी, इसलिए उनका नाम उजागर नहीं करूंगा. ठीक इसके उलट कुछ नये अफसरों के भी कानून से अलग सत्ता के इशारे चंद पैसे और महत्वपूर्ण पद की लालच में गलत काम करने की करतूत सुनता हूं तो शर्म आती है और आश्चर्य होता है.


हेमंत सरकार में परेशान अफसर सुनाते हैं आपबीती: बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि हेमंत सरकार के इशारे पर हर गलत काम करने वाले ऐसे कुछ अफसर आजकल परेशानी में अपने-अपने सम्पर्कों के जरिये मिलते हैं, मिलने का प्रयास करते हैं. उन्हें अपने किये का भय है कि न जाने कब उनकी गर्दन दबोचा जाय? ऐसे लोग अपनी सफाई देते जब बताते हैं कि उनसे दवाब देकर कैसे गलत करा लिया गया तो सुनकर हैरानी होती है. ऐसे लोग जब कहते हैं कि उनके जान पर बन जायेगी तो मजबूरी में सारे पोल-पट्टी खोलना ही पड़ेगा. मुझे लालू प्रसाद जी का वो जमाना याद आ रहा है जब चारा चोरी में उनके सहयोगी अफसर, दलाल, सप्लायर खुद जेल जाने लगे तो वो सब खुद भी डूबे और लालू जी को भी ऐसा डुबोया कि आज इतिहास बन गया है. सोचता हूं कि पिछली गलतियों का उदाहरण सामने होने के बाद भी आखिर कोई अफसर या नेता लालच में कैसे अपना पूरा करियर दांव पर लगाने के बारे में सोच लेता है? मैं ब्यूरोक्रेसी से पुनः विनम्र आग्रह करता हूं कि इतिहास के पन्ने पलट कर देखें और सोचें कि गलत का अंजाम अंत में क्या होता है?

राची: पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी (Former CM Babulal Marandi) मन की बात करते देखे गए. इस दौरान बाबूलाल ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल के अनुभव को शेयर किया. उन्होंने कानून व्यवस्था को लेकर अनुभव को साझा किया है. उन्होंने लिखा है कि मेरे कार्यकाल के समय उग्रवादियों का उत्पात चरम पर था. मेरी योजना ज्यादा से ज्यादा उग्रवादियों, उनके सहयोगियों को मुख्यधारा में वापस लाने की थी. आदिवासी बाहुल्य एक जिले में कुछ उग्रवादियों को लॉजिस्टिक सपोर्ट देने वालों के पीछे पुलिस हाथ धोकर पड़ी हुई थी. मैंने वहां के एक सीनियर पदाधिकारी को बुलाकर कर कहा कि उन्हें मुख्यधारा में लाना चाहता हूँ. थोड़ा रहम करिये उनपर. वो अधिकारी रो पड़े और कहा कि “सर ये लोग भारी बदमाश हैं. मेरे से तो ये नहीं होगा. आप चाहें तो मुझे वहां से हटा दीजिए. मैंने तुरंत अपनी बात वापस ली और उन्हें कहा कि बेहिचक अपनी कार्रवाई जारी रखिए.

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आज भी उन्हें देखता हूं तो मुझे उनकी बात याद आ जाती है और मैं उन्हें सम्मान से ही देखता हूं. संयोगवश वो अफसर भी आदिवासी समाज से ही थे. लेकिन मैंने पद की गोपनीयता की शपथ ली थी, इसलिए उनका नाम उजागर नहीं करूंगा. ठीक इसके उलट कुछ नये अफसरों के भी कानून से अलग सत्ता के इशारे चंद पैसे और महत्वपूर्ण पद की लालच में गलत काम करने की करतूत सुनता हूं तो शर्म आती है और आश्चर्य होता है.


हेमंत सरकार में परेशान अफसर सुनाते हैं आपबीती: बाबूलाल मरांडी ने कहा है कि हेमंत सरकार के इशारे पर हर गलत काम करने वाले ऐसे कुछ अफसर आजकल परेशानी में अपने-अपने सम्पर्कों के जरिये मिलते हैं, मिलने का प्रयास करते हैं. उन्हें अपने किये का भय है कि न जाने कब उनकी गर्दन दबोचा जाय? ऐसे लोग अपनी सफाई देते जब बताते हैं कि उनसे दवाब देकर कैसे गलत करा लिया गया तो सुनकर हैरानी होती है. ऐसे लोग जब कहते हैं कि उनके जान पर बन जायेगी तो मजबूरी में सारे पोल-पट्टी खोलना ही पड़ेगा. मुझे लालू प्रसाद जी का वो जमाना याद आ रहा है जब चारा चोरी में उनके सहयोगी अफसर, दलाल, सप्लायर खुद जेल जाने लगे तो वो सब खुद भी डूबे और लालू जी को भी ऐसा डुबोया कि आज इतिहास बन गया है. सोचता हूं कि पिछली गलतियों का उदाहरण सामने होने के बाद भी आखिर कोई अफसर या नेता लालच में कैसे अपना पूरा करियर दांव पर लगाने के बारे में सोच लेता है? मैं ब्यूरोक्रेसी से पुनः विनम्र आग्रह करता हूं कि इतिहास के पन्ने पलट कर देखें और सोचें कि गलत का अंजाम अंत में क्या होता है?

Last Updated : Nov 30, 2022, 8:32 PM IST
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