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ट्राइबल फिलॉसफी सेमिनार का पहला दिन, ब्रह्मांड और मानव जाति की उत्पति पर विशेषज्ञों ने रखे विचार - रांची में सेमिनार

रांची में ट्राइबल फिलॉसफी पर तीन दिवसीय सेमिनार की शुरुआत हो गई. कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने किया. ट्राइबल फिलॉसफी के पहले दिन उद्घाटन सत्र को छोड़कर चार सत्र आयोजित किए गए.

Experts put forth their views in Tribal Philosophy in ranchi
ट्राइबल फिलॉसफी की शुरुआत
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Published : Jan 17, 2020, 11:49 PM IST

रांची: राजधानी के आड्रे हाउस में शुक्रवार से ट्राइबल फिलॉसफी पर शुरु हुए तीन दिवसीय अंतराराष्ट्रीय सेमिनार के पहले दिन देश-विदेश से कई दर्शन विशेषज्ञ आए, जिन्होंने जनजातीय दर्शन के दृष्टिकोण से ब्रह्रमांड की उत्पति, मानव जाति की उत्पति, प्रकृति से रिश्ता आदि पर पेपर प्रजेंटेशन दिये. विशेषज्ञों ने कहा कि जनजातीय दर्शन कोई अलग दर्शन नहीं है, लेकिन इस दर्शन की महत्ता अन्य़ दर्शनों को विकसित करने में काफी अहम रही है.

देखें पूरी खबर

जनजातीय समुदायों का वजूद आदिकाल से रहा है, लेकिन पूरी दुनिया में यह अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहा है. यह नहीं भूलना चाहिए कि जनजातीय समुदाय किसी भी सभ्यता और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है और इसकी कला, संस्कृति, परंपरा, खानपान, रहन-सहन आदि के केंद्र में प्रकृति के साथ रिश्ता चला आ रहा है. यह समुदाय प्रकृति पूजा में विश्वास करता है और प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित और संरक्षित करने में उन्होंने हमेशा अहम भूमिका निभायी है

इसे भी पढ़ें- इंटरनेशनल ट्राइबल फिलॉसफी कॉन्फ्रेंस में बोले हेमंत सोरेन, आदिवासियों को ग्लोबल भूख कर रही प्रभावित

पहले दिन हुए चार एकेडमिक सेशन
ट्राइबल फिलॉसफी के पहले दिन उद्घघाटन सत्र को छोड़कर चार सत्र आयोजित किए गए. इन सभी सत्रों में जनजातीय दर्शन से जुड़े विशेषज्ञों ने ब्रह्रमांड की उत्पति और प्रकृति से इनके रिश्ते को विस्तार से बताया. इस दौरान उन्होंने बताया कि इस अंतराष्ट्रीय सेमिनार से जनजातीय समुदायों के प्रति जानकारी को लोगों तक पहुंचाने में काफी मदद मिलेगी. इस तरह के सेमिनार आगे भी होते रहने चाहिए, ताकि जनजातीय दर्शन को एक विधा के तौर पर स्थापित किया जा सके.

पहले सत्र में आस्ट्रो-एशियाटिक के मुंडा,संथाल, हो, खड़िया, भूमिज और द्रविड़ समूह के गोंड़ और माल्टो जनजातीय समुदाय के दृष्टिकोण से ब्रह्मांड की उत्पति, पुरुष-स्त्री, प्रकृति, जंतु, चेतना और प्राणियों में चेतना विषयों पर को लेकर कयन्त्येवबोर सोहटून, एगेन्स्टार कुरकलनग, पॉल स्ट्रेउमेर और डॉ मिहिर कुमार जेना ने अपने विचार रखे.

कॉन्फ्रेंस के दूसरे सत्र में बिजोया सवाइन, सुनुमि चांगमी, हेज तबयो और काच्यो लेपचा ने उत्तर पूर्व के अनुसूचित जनजाति के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पति, मानव की उत्पति, प्रकृति और जंतुओं से आदिवासी समुदाय के रिश्ते पर अपनी बातें रखी.

कॉन्फ्रेंस के तीसरे सत्र में राफेल रोसलौ, राजू नायक, गोपाल भील, मानसिंह इमाम, स्नेहलता नेगी और माहेश्वरी गावित ने बताया कि भील और मीना जनजाति में ब्रह्रांड और मानव उत्पति को लेकर अलग दर्शन है. उन्होंने विभिन्न जनजातीय समुदायों में जीवन चक्र के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी.

कॉन्फ्रेंस के चौथे सत्र में मोहन, हीराबाई हीरालाल, देवजी नवाल तोफा, डॉ राजेश राथवा, जयश्री गावित, विनायक साम्बा तुमराम, पुष्पा गावित ने गोंड़ जनजाति के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पति को लेकर अपने विचार रखे.

रांची: राजधानी के आड्रे हाउस में शुक्रवार से ट्राइबल फिलॉसफी पर शुरु हुए तीन दिवसीय अंतराराष्ट्रीय सेमिनार के पहले दिन देश-विदेश से कई दर्शन विशेषज्ञ आए, जिन्होंने जनजातीय दर्शन के दृष्टिकोण से ब्रह्रमांड की उत्पति, मानव जाति की उत्पति, प्रकृति से रिश्ता आदि पर पेपर प्रजेंटेशन दिये. विशेषज्ञों ने कहा कि जनजातीय दर्शन कोई अलग दर्शन नहीं है, लेकिन इस दर्शन की महत्ता अन्य़ दर्शनों को विकसित करने में काफी अहम रही है.

देखें पूरी खबर

जनजातीय समुदायों का वजूद आदिकाल से रहा है, लेकिन पूरी दुनिया में यह अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहा है. यह नहीं भूलना चाहिए कि जनजातीय समुदाय किसी भी सभ्यता और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है और इसकी कला, संस्कृति, परंपरा, खानपान, रहन-सहन आदि के केंद्र में प्रकृति के साथ रिश्ता चला आ रहा है. यह समुदाय प्रकृति पूजा में विश्वास करता है और प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित और संरक्षित करने में उन्होंने हमेशा अहम भूमिका निभायी है

इसे भी पढ़ें- इंटरनेशनल ट्राइबल फिलॉसफी कॉन्फ्रेंस में बोले हेमंत सोरेन, आदिवासियों को ग्लोबल भूख कर रही प्रभावित

पहले दिन हुए चार एकेडमिक सेशन
ट्राइबल फिलॉसफी के पहले दिन उद्घघाटन सत्र को छोड़कर चार सत्र आयोजित किए गए. इन सभी सत्रों में जनजातीय दर्शन से जुड़े विशेषज्ञों ने ब्रह्रमांड की उत्पति और प्रकृति से इनके रिश्ते को विस्तार से बताया. इस दौरान उन्होंने बताया कि इस अंतराष्ट्रीय सेमिनार से जनजातीय समुदायों के प्रति जानकारी को लोगों तक पहुंचाने में काफी मदद मिलेगी. इस तरह के सेमिनार आगे भी होते रहने चाहिए, ताकि जनजातीय दर्शन को एक विधा के तौर पर स्थापित किया जा सके.

पहले सत्र में आस्ट्रो-एशियाटिक के मुंडा,संथाल, हो, खड़िया, भूमिज और द्रविड़ समूह के गोंड़ और माल्टो जनजातीय समुदाय के दृष्टिकोण से ब्रह्मांड की उत्पति, पुरुष-स्त्री, प्रकृति, जंतु, चेतना और प्राणियों में चेतना विषयों पर को लेकर कयन्त्येवबोर सोहटून, एगेन्स्टार कुरकलनग, पॉल स्ट्रेउमेर और डॉ मिहिर कुमार जेना ने अपने विचार रखे.

कॉन्फ्रेंस के दूसरे सत्र में बिजोया सवाइन, सुनुमि चांगमी, हेज तबयो और काच्यो लेपचा ने उत्तर पूर्व के अनुसूचित जनजाति के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पति, मानव की उत्पति, प्रकृति और जंतुओं से आदिवासी समुदाय के रिश्ते पर अपनी बातें रखी.

कॉन्फ्रेंस के तीसरे सत्र में राफेल रोसलौ, राजू नायक, गोपाल भील, मानसिंह इमाम, स्नेहलता नेगी और माहेश्वरी गावित ने बताया कि भील और मीना जनजाति में ब्रह्रांड और मानव उत्पति को लेकर अलग दर्शन है. उन्होंने विभिन्न जनजातीय समुदायों में जीवन चक्र के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी.

कॉन्फ्रेंस के चौथे सत्र में मोहन, हीराबाई हीरालाल, देवजी नवाल तोफा, डॉ राजेश राथवा, जयश्री गावित, विनायक साम्बा तुमराम, पुष्पा गावित ने गोंड़ जनजाति के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पति को लेकर अपने विचार रखे.

Intro:इससे जुड़ा वीडियो लाइव व्यू से गया है

रांची। जनजातीय समुदायों का वजूद आदिकाल से रहा है लेकिन पूरी दुनिया में यह अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रहा है। यह नहीं भूलना चाहिए कि जनजातीय समुदाय किसी भी सभ्यता और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है और इसकी कला, संस्कृति, परंपरा, खानपान, रहन-सहन आदि के केंद्र में प्रृकृति के साथ रिश्ता चला आ रहा है। यह समुदाय प्रकृति पूजा में विश्वास करता है और प्राकृतिक संसाधनों को सुरक्षित व संरक्षित करने में इन्होंने सदैव अहम भूमिका निभायी है और निभाती आ रही है। रांची के आड्रे हाउस में शुक्रवार से ट्राइबल फिलॉसफी पर शुरु हुए तीन दिवसीय अंतराराष्ट्रीय सेमिनार के पहले दिन देश-विदेश से आए आदि दर्शन के विशेषज्ञों ने जनजातीय दर्शन के दृष्टिकोण से ब्रह्रमांड की उत्पति, मानव जाति की उत्पति प्रकृति से रिश्ता आदि पर पेपर प्रेजेंटेशन किया। इन्होंने कहा कि जनजातीय दर्शन कोई अलग दर्शन नहीं है, लेकिन इस दर्शन की महत्ता अन्य़ दर्शनों को विकसित करने में काफी अहम रही है।

Body:पहले दिन हुए चार एकेडमिक सेशन

ट्राइबल फिलॉसफी के पहले दिन उद्घघाटन सत्र को छोड़कर चार सत्र आय़ोजित किए गए. इन सभी सत्रों में जनजातीय दर्शन से जुड़े विशेषज्ञों ने ब्रह्रमांड की उत्पति और प्रकृति से इनके रिश्ते को विस्तार से बताया. इस दौरान उन्होंने बताया कि इस अंतराष्ट्रीय सेमिनार से जनजातीय समुदायों के प्रति जानकारी को लोगों तक पहुंचाने में काफी मदद मिलेगी. इस तरह के सेमिनार आगे भी होते रहने चाहिए, ताकि जनजातीय दर्शन को एक विधा के तौर पर स्थापित किया जा सके.

पहले सत्र में आस्ट्रो-एशियाटिक के मुंडा/संथाल/हो/खड़िया/भूमिज और द्रविड़ समूह के गोंड़ और माल्टो जनजातीय समुदाय के दृष्टिकोण से ब्रह्मांड की उत्पति, पुरुष-स्त्री, प्रकृति, जंतु, चेतना एवं प्राणियों में चेतना विषयों पर को लेकर कयन्त्येवबोर सोहटून, एगेन्स्टार कुरकलनग, पॉल स्ट्रेउमेर और डॉ मिहिर कुमार जेना ने अपने विचार रखे।

कॉन्फ्रेंस के दूसरे सत्र में बिजोया सवाइन, सुनुमि चांगमी, हेज तबयो और काच्यो लेपचा ने उत्तर पूर्व के अनुसूचित जनजाति के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पति, मानव की उत्पति, प्रकृति और जंतुओं से आदिवासी समुदाय के रिश्ते पर अपनी बातें रखी।

Conclusion:कॉन्फ्रेंस के तीसरे सत्र में राफेल रोसलौ, राजू नायक, गोपाल भील, मानसिंह इमाम, स्नेहलता नेगी और माहेश्वरी गावित ने बताया कि भील और मीना जनजाति में ब्रह्रांड और मानव उत्पति को लेकर अलग दर्शन है। इन्होंने विभिन्न जनजातीय समुदायों में जीवन चक्र के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।

कॉन्फ्रेंस के चौथे सत्र में मोहन, हीराबाई हीरालाल, देवजी नवाल तोफा, डॉ राजेश राथवा, जयश्री गावित, विनायक साम्बा तुमराम, पुष्पा गावित ने गोंड़ जनजाति के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पति को लेकर अपने विचार रखे।
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