रांची: राज्यपाल रमेश बैस के महाराष्ट्र जाने के बाद से शांत पड़ा सीएम हेमंत सोरेन के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से जुड़ा मामला फिर नए रूप में सामने आया है. इस बार चुनाव आयोग से आए उस लिफाफे की चर्चा का कारण बने हैं वर्तमान राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन. एक मीडिया इंटरव्यू में लिफाफे पर उनसे सवाल पूछा गया. सवाल था कि पूर्व राज्यपाल कहा करते थे कि चुनाव आयोग के मंतव्य पर कानूनी सलाह ली जा रही है. इस वजह से फैसला लेने में विलंब हो रहा है. लिफाफा पहुंचे नौ माह बीत चुके हैं. आपको आए तीन माह हो चुके हैं. अब लिफाफा कब खुलेगा.
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पत्रकार के सवाल का जवाब देते हुए राज्यपाल सीपी राधाकृष्ण ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि पूर्व के राज्यपाल ने क्या कानूनी सलाह मांगी थी. उनका कहना है कि उन्होंने अभी तक इस मैटर को नहीं देखा है. सही समय आने पर फैसला लेंगे. अब सवाल है कि सही समय कब आएगा. यह पूछा गया कि आखिर कौन सा मुहूर्त देखा जा रहा है. जवाब में उन्होंने Unusual शब्द का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा कि विलंब का कारण असामान्य नहीं है. सही समय पर इसपर फैसला लिया जाएगा.
इस मसले पर झामुमो नेता मनोज पांडेय से ईटीवी भारत की टीम ने बात की. उन्होंने कहा कि वर्तमान राज्यपाल कह रहे हैं कि सही समय पर फैसला लेंगे. अब सही समय का मतलब तो वही बता पाएंगे. लेकिन पार्टी का मानना है कि चुनाव आयोग से आए लिफाफे में हमारे माननीय के खिलाफ कुछ है ही नहीं. भाजपा ने इसको जानबूझकर तूल दिया था. अब भाजपा को जवाब देते नहीं बनेगा. इसलिए पूरे मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. क्योंकि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में जो भी निर्णय होगा, वह संवैधानिक तरीके से होगा. पार्टी का मानना है कि लिफाफे में ऐसा कुछ होगा ही नहीं जिससे किसी तरह का संकट पैदा हो. झामुमो का आरोप है कि जानबूझकर एक असमंजस वाली स्थिति खड़ी की गई थी.
भाजपा प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने कहा कि यह दो संवैधानिक संस्थाओं के बीच का मामला है. लिफाफे की बात जानने के लिए मुख्यमंत्री भी राजभवन गये थे. यूपीए का एक प्रतिनिधिमंडल भी गया था. उस समय के राज्यपाल ने कहा था कि सही समय आने पर फैसला लेंगे. अब नये राज्यपाल को देखना है. अब वह कब फैसला लेंगे, यह उनके विशेषाधिकार का मामला है. लेकिन राज्य में लगातार भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं. आए दिन कई गिरफ्तारियां हो रही हैं. कई आयोग में पद रिक्त पड़े हैं. सरकार को जनता से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए. प्रदीप सिन्हा ने कहा कि भाजपा अगर इस मामले को तूल दे रही है तो फिर सरकार कैसे चल रही है. झामुमो के लोग भाजपा पर आरोप मढ़कर जनता के प्रति सरकारी की जिम्मेदारी और जवाबदेही से नहीं बच सकते.
राजनीतिक भूचाल खड़ा करता रहा है लिफाफा: नौ माह बीत गये और लिफाफा है कि खुल ही नहीं रहा. यह ऐसा वैसा लिफाफा नहीं है. इसमें सीएम हेमंत सोरेन की राजनीतिक किस्मत लिखी हुई है. खनन लीज मामले में लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद चुनाव आयोग ने पिछले साल अगस्त में इस मसले पर अपना मंतव्य राजभवन को भेजा था. उस वक्त सूबे के राज्यपाल रमेश बैस हुआ करते थे. तब उस लिफाफे ने झारखंड की राजनीति में भूचाल ला दिया था. असर ऐसा था कि सत्ताधारी दल के विधायक लतरातू से रायपुर की सैर करने लगे थे. सीएम आवास पर कई दिनों तक बैठकों का दौर चला था. विधायकों की गिनती हुआ करती थी. हर विधायक की गतिविधि पर नजर रखी जाती थी.
यहां तक चर्चा शुरू हो गई थी कि राज्य का अगला मुख्यमंत्री कौन हो सकता है. ऐसी नौबत इसलिए आई थी क्योंकि राजभवन के सूत्र बता रहे थे कि सीएम को बतौर बरहेट विधायक अयोग्य करार देने की सिफारिश थी. लेकिन लिफाफा खुला ही नहीं. कभी-कभार पूर्व राज्यपाल रमेश बैस अपने बयानों से लिफाफे की अहमियत बढ़ाते रहे. कभी उन्होंने कहा कि ऐसा चिपका है कि खुल ही नहीं रहा. कभी कहा कि इसपर कानूनी राय ली जा रही है. एक बार तो उन्होंने यहां तक कह दिया था कि कभी भी फूट सकता है एटम बम. लिफाफे पर उनकी हर टिप्पणी से झारखंड का राजनीतिक पारा चढ़ता रहा. इस दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बार-बार इसी बीच फरवरी माह में उनको महाराष्ट्र का राज्यपाल बना दिया गया.
किस बात पर शुरू हुआ था विवाद: 14 जुलाई 2021 को झारखंड के 10वें राज्यपाल बनाए गये थे रमेश बैस. कुछ माह बाद भाजपा के एक प्रतिनिधिमंडल ने उनसे मिलकर शिकायत की कि सीएम ने खान मंत्री रहते हुए अपने नाम से रांची के अनगड़ा में पत्थर खदान का लीज लिया है. यह ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के उल्लंघन का मामला है. इस मैटर को राज्यपाल ने चुनाव आयोग को भेज दिया. लेकिन अगस्त 2022 में जब चुनाव आयोग का मंतव्य राजभवन पहुंचा तो यहां की राजनीति में भूचाल आ गया. ऐसा लग रहा था कि कभी भी कुछ हो सकता है. लेकिन दिन गुजरता चला गया. नौबत ऐसी आ गई कि यूपीए प्रतिनिधिमंडल के बाद खुद सीएम ने उनसे मिलकर फैसला सुनाने की आग्रह किया. लेकिन हुआ कुछ नहीं. इस दौरान सरकार और राजभवन के बीच की दूरी बढ़ती चली गई. इसका असर राज्य स्थापना दिवस कार्यक्रम में भी दिखा. मुख्य अतिथि के तौर पर राष्ट्रपति के नहीं आने के बाद राज्यपाल को आमंत्रित किया गया लेकिन वे भी नहीं आए. अब रमेश बैस झारखंड में नहीं है. उनकी जगह सीपी राधाकृष्णन संभाल रहे हैं. फिर भी लिफाफे वाला राज नहीं खुल रहा है.