रांची: गांवों को सशक्त बनाने के लिए संविधान संशोधन कर पंचायत चुनाव तो कराया जाने लगा लेकिन पंचायतों को अधिकार देने में हाथ खींच लिए गए. नतीजतन बिना अधिकार के पंचायत प्रतिनिधि 'शोपीस' भर रह गए हैं. इस टीस इन प्रतिनिधियों को भी है. अब तो तमाम पंचायत प्रतिनिधि अपने मतदाताओं का सामना करने से भी घबराते हैं और कहते हैं कि पंचायतों के पास अधिकार ही नहीं तो इनके चुनाव की क्या जरूरत.
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झारखंड में अब तक दो बार पंचायत चुनाव हो चुके हैं मगर आज भी पंचायत चुनाव जीत कर आने वाले जनप्रतिनिधियों को कोई खास अधिकार नहीं मिले हैं. उनका कहना है कि यदि फैसलों में भागीदारी करानी हो तभी चुनाव कराया जाए. वर्ना दिखावे के लिए पंचायत चुनाव न कराया जाए. एक तो इससे संबंध बिगड़ते हैं, दूसरे न वित्तीय अधिकार और न प्रशासनिक अधिकार होने से हम ग्रामीणों की कोई मदद भी नहीं कर पाते. इसलिए असहाय महसूस करते हैं.
बता दें कि संविधान के 73 वें संशोधन के अनुसार त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना की गई है. इसके तहत ग्राम पंचायतों को सहभागिता पर आधारित शासन व्यवस्था का अधिकार प्रदान किया गया है. इसके तहत 29 अधिकार पंचायतों को दिए गए हैं, जिसमें से 14 विषयों पर आंशिक अधिकार ही झारखंड में पंचायतों को दिए गए हैं. इन अधिकारों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल,20 सूत्री कमिटी,मनरेगा आदि शामिल हैं.
न जाने क्यों कराते हैं चुनावः त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था का मकसद हर गांव की जरूरत के मुताबिक वहां की पंचायत ही योजना बनाए, लेकिन हकीकात में अभी तक ऐसा नहीं हो पाया. इसलिए पंचायत समिति और जिला परिषद सदस्य ही इस पर सवाल उठा रहे हैं. पुंडरी चान्हो के पंचायत समिति सदस्य मो.इस्तियाक और मांडर पंचायत समिति सदस्य उसु उरांव का कहना है कि मुखिया को तो कुछ हद तक अधिकार मिले हैं, लेकिन बाकी प्रतिनिधियों की कोई वैल्यू ही नहीं है. न जाने क्यों चुनाव कराया जाता है.
पहली बार 2010 में हुए पंचायत चुनावः राज्य में पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना काफी जद्दोजहद के बाद 2010 में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के बाद हुई. तत्पश्चात 2015 में भी चुनाव कराकर गांव की सरकार बनाई गई. उस समय से अब तक पंचायतों के निर्वाचित प्रतिनिधि अधिकारों की मांग को लेकर आंदोलन करते रहे हैं. सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा अब तक जो अधिकार पंचायतों को दिए भी गए हैं वो भी औपचारिक अधिक हैं.
सुधीर पॉल के अनुसार जब तक पंचायत सचिवालय को सशक्त नहीं किया जाएगा तब तक इसका लाभ नहीं मिलेगा. पंचायत सचिवालय को सशक्त करने के लिए अधिकारों के साथ-साथ मैनपावर मुहैया कराना होगा. गांव की योजना गांव में बने, इसकी बात भले की जाती हो मगर उसका मॉनिटरिंग और योजना में गड़बड़ी पर कारवाई का अधिकार पंचायतों को नहीं दिया गया है. हालांकि सरकार कई अधिकार पंचायतों को देने का दावा करती है मगर इसमें ईमानदारी की कमी है.
पंचायतों को सशक्त करेगी सरकारः आलमगीर आलम
ग्रामीण विकास सह पंचायती राज मंत्री आलमगीर आलम ने कहा है कि सरकार पंचायतों को सशक्त करने के लिए कृतसंकल्पित है.उन्होंने कहा कि कुछ अधिकार दिए गए हैं, जिसके माध्यम से मुखिया गांव की योजना गांव में ही ग्रामसभा आदि के माध्यम से बनाकर तय करते हैं. मुखिया को वित्तीय पावर भी दिया गया है मगर अन्य पंचायत प्रतिनिधि को भी पावरफुल बनाने के लिए सरकार सोच रही है और जो भी खामियां हैं उसे दूर कर लिया जाएगा.