रांची: कहते हैं भारत दो तरह का है, एक अमीर और दूसरा गरीब. ऐसे लोगों के लिए त्योहारों के खास मायने नहीं हैं (diwali celebration for poor in ranchi). झारखंड की राजधानी रांची में भी भारत की ऐसी तस्वीरें आम हैं. दिवाली पर भी ऐसी कहानी सामने आई. आइये उन्हीं की कहानी सुनाते हैं.
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दीपावली के मौके पर ईटीवी भारत की टीम ने जब शहर के ठेले चालक, रिक्शा चालक और मजदूरों वर्ग के लोगों से बात की तो उन्होंने ईटीवी की टीम से अपनी पीड़ा साझा करते हुए कहा कि उनके लिए दीपावली और धनतेरस सिर्फ आम तारीख की तरह है क्योंकि वह लोग रोज कमाने और रोज खाने वाले हैं.
भोजन में चली जा रही कमाईः शहर में ठेला चला रहे महावीर पासवान कहते हैं कि जिस प्रकार से महंगाई चरम पर है. सब्जी, आटा, तेल के दाम दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं, हम मजदूरों की कमाई रोज का भोजन जुटाने में ही चली जाती है. हम दीपावली में नई चीजें कैसे खरीद पाएंगे. उन्होंने बताया कि बीपीएलधारी होने के बावजूद भी सरकारी स्तर पर बहुत ज्यादा मदद नहीं मिल पाती है. क्योंकि सरकारी व्यवस्था खुद ही चरमराई हुई है.वहीं किसी तरह अपना जीवन यापन करने वाले राम कहते हैं कि वह दिव्यांग है और उससे कोई काम भी ढंग से नहीं हो पाता है इसीलिए भीख मांगना उनकी मजबूरी है. दिव्यांग होने के कारण वह अपने परिवार को भी साथ में नहीं रखते हैं. इसीलिए दीपावली हो या धनतेरस उनके लिए सारे पर्व आम दिनों के जैसे ही होते हैं.
कम पड़ जाती है कमाईः रिक्शा चालक योगेंद्र बताते हैं कि सुबह से शाम तक रिक्शा चलाने से 300 से 400 रुपये मिल जाते हैं जिसमें 100 खाने में ही खर्च हो जाता है. ऐसे में हम मात्र 200 रुपये ही घर के लिए ले जा पाते हैं जो परिवार के लिए काफी कम होता है. रांची में कई ऐसे परिवार हैं जिनके घर के बच्चे दूसरों के घरों में फूटने वाले आतिशबाजी को देखकर खुश होते हैं तो वहीं कई ऐसे युवा हैं जो दूसरे के शरीर पर पहने कपड़े को देखकर यह महसूस करते हैं कि काश हम भी इन खुशियों के साथ दीपावली मना पाते.रांची के मेन रोड, बूटी मोड़ रोड, कोकर चौक, लालपुर चौक, रातू रोड सहित विभिन्न चौक चौराहों पर कई ऐसे लोग दिवाली के दिन भी मजदूरी करते नजर आए ताकि आज की रात का खाना वह परिवार के साथ खा सकें. शायद साथ में भोजन करना ही उनके दीपावली पर्व मनाने की रस्म को पूरी करता है.