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आदिवासियों की धार्मिक पहचान की मांग पर विवाद शुरू, 2 पूर्व मंत्रियों ने रखे ये पक्ष

झारखंड में आदिवासियों की सदियों पुरानी धार्मिक पहचान की मांग पर अब विवाद खड़ा होता दिख रहा है. इन दिनों धार्मिक पहचान की मांग दो अलग-अलग नामों से हो रही है. पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव और देव कुमार ने अपने-अपने पक्ष रखे हैं.

आदिवासियों की धार्मिक पहचान की मांग पर विवाद शुरू
Dispute over demand of religious identity of tribals in Jharkhand
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Published : Nov 6, 2020, 10:49 PM IST

Updated : Nov 6, 2020, 10:58 PM IST

रांची: आदिवासियों की सदियों पुरानी धार्मिक पहचान की मांग पर विवाद खड़ा होता दिख रहा है. इन दिनों दो अलग-अलग नामों से धार्मिक पहचान की मांग हो रही है. एक गुट सरना धर्म कोड की मांग कर रही है तो दूसरा गुट आदिवासी धर्म कोड की, जो इनके धार्मिक पहचान की मांग पर रोड़ा बन सकता है.

देखें पूरी खबर

सभी जनजातियों के एकत्रित करने पर जोर


पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव और पूर्व मंत्री देव कुमार धान आदिवासी धर्म कोड की वकालत कर रहे हैं, उन्होंने राज्य के 32 जनजातियों के संग बैठक कर आदिवासी धर्म कोड की मांग को लेकर रणनीति बनायी है. आदिवासी धर्म कोड की मांग पर सहमति बनने के बाद हॉट नवंबर को राष्ट्रीय सम्मेलन करने की घोषणा की गई है, जिसके बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ज्ञापन सौंपा जाएगा. पूर्व मंत्री देव कुमार धान के मुताबिक सरना एक धार्मिक स्थल है, जिसके नाम पर धार्मिक पहचान नहीं मिल सकता है. सभी समुदायों को उनके जाति के आधार पर पहचान मिली हुई है. पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव ने देश के सभी जनजातियों के एकत्रित करने पर जोर देने की बात की है.

ये भी पढ़ें-लंबी खिंच सकती है बाइडेन-ट्रंप की रेस, 6 प्रमुख राज्यों में मतगणना जारी

धर्म कोड का प्रस्ताव

आजाद भारत में अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित रहे आदिवासी समाज के लोग लगातार अपनी पहचान को लेकर संघर्ष कर रहे हैं, ताकि 2021 के जनगणना प्रपत्र में इन्हें एक अलग पहचान मिल सके. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी आदिवासियों को पहचान दिलाने को लेकर 11 नवंबर को विशेष सत्र बुलाने का निर्णय लिया है, लेकिन सवाल यह उठता है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से पारित धार्मिक कोड में सरना धर्म कोड का प्रस्ताव केंद्र को भेजा जाता है या फिर आदिवासी धर्म कोड की.

रांची: आदिवासियों की सदियों पुरानी धार्मिक पहचान की मांग पर विवाद खड़ा होता दिख रहा है. इन दिनों दो अलग-अलग नामों से धार्मिक पहचान की मांग हो रही है. एक गुट सरना धर्म कोड की मांग कर रही है तो दूसरा गुट आदिवासी धर्म कोड की, जो इनके धार्मिक पहचान की मांग पर रोड़ा बन सकता है.

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सभी जनजातियों के एकत्रित करने पर जोर


पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव और पूर्व मंत्री देव कुमार धान आदिवासी धर्म कोड की वकालत कर रहे हैं, उन्होंने राज्य के 32 जनजातियों के संग बैठक कर आदिवासी धर्म कोड की मांग को लेकर रणनीति बनायी है. आदिवासी धर्म कोड की मांग पर सहमति बनने के बाद हॉट नवंबर को राष्ट्रीय सम्मेलन करने की घोषणा की गई है, जिसके बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को ज्ञापन सौंपा जाएगा. पूर्व मंत्री देव कुमार धान के मुताबिक सरना एक धार्मिक स्थल है, जिसके नाम पर धार्मिक पहचान नहीं मिल सकता है. सभी समुदायों को उनके जाति के आधार पर पहचान मिली हुई है. पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव ने देश के सभी जनजातियों के एकत्रित करने पर जोर देने की बात की है.

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धर्म कोड का प्रस्ताव

आजाद भारत में अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित रहे आदिवासी समाज के लोग लगातार अपनी पहचान को लेकर संघर्ष कर रहे हैं, ताकि 2021 के जनगणना प्रपत्र में इन्हें एक अलग पहचान मिल सके. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी आदिवासियों को पहचान दिलाने को लेकर 11 नवंबर को विशेष सत्र बुलाने का निर्णय लिया है, लेकिन सवाल यह उठता है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से पारित धार्मिक कोड में सरना धर्म कोड का प्रस्ताव केंद्र को भेजा जाता है या फिर आदिवासी धर्म कोड की.

Last Updated : Nov 6, 2020, 10:58 PM IST
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