रांचीः झारखंड में सरकारी कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति उम्रसीमा 60 से 62 करने की मांग तेज हो गई है. झारखंड राज्य कर्मचारी महासंघ ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चिठ्ठी लिखकर इसपर जल्द से जल्द निर्णय लेने का आग्रह किया है. कर्मचारियों का तर्क यह है कि वर्तमान समय में 35% कार्यबल के साथ सरकारी काम निपटाये जा रहे हैं, जिस वजह से अतिरिक्त कार्यबोझ से कर्मचारी दबे हुए हैं. ऐसे में चुनाव के समय और भी कार्यबोझ से कर्मचारी जुझेंगे.
मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को लिखे गए पत्र में महासंघ ने कहा है कि एक कर्मचारी के सेवानिवृत्त के वक्त 50-60 लाख देनदारी सरकार की होती है. ऐसे में सेवानिवृत्ति की उम्र सीमा यदि बढ़ाई जाती है तो आर्थिक दृष्टि से भी सरकार के लिए यह लाभदायक साबित होगा. गौरतलब है कि राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में विभिन्न स्तर के कुल 5,33,737 पद स्वीकृत हैं. इन स्वीकृत पदों के मुकाबले 1,83,016 पदों पर लोग कार्यरत हैं. नियमित पदों पर कार्यरत कर्मचारियों के वेतन भत्ते पर राज्य सरकार के द्वारा सालाना करीब 16000 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं.
अनुकंपा आधारित नियुक्ति में गैर मैट्रिक को भी नियुक्ति पर विचारः झारखंड राज्य कर्मचारी महासंघ की मांग पर राज्य सरकार ने अनुकंपा के आधार पर होने वाली नियुक्ति में गैर मैट्रिक परिजन को भी योग्य माने जाने पर विचार करना शुरू कर दिया है. महासंघ के राज्य सचिव मृत्युंजय कुमार झा ने कहा कि राज्य गठन के 23 वर्षों में अब तक अनुकंपा के आधार पर हजारों वैसे लोगों को नियुक्ति नहीं मिली है जो गैर मैट्रिक थे. महासंघ के द्वारा की गई मांग पर सभी जिलों से ऐसे परिजनों की सूची मांगी गई है, जो मैट्रिक नहीं थे और इस वजह से उनकी नियुक्ति अनुकंपा के आधार पर नहीं हो पाई है. इसके अलावे महासंघ ने कोरोनाकाल के 18 महीने के लंबित महंगाई भत्ता का भुगतान करने का आग्रह किया है. महासंघ का मानना है कि कोरोनाकाल में कर्मचारियों ने सरकार के हर कार्यों को पूरा करने में जी-जान से सहयोग किया है, ऐसे में जब परिस्थितियां सामान्य हो गई हैं और देश और राज्य की आर्थिक स्थिति ठीक है तो कर्मचारियों के लंबित महंगाई भत्ता का भी भुगतान होना चाहिए.