रांचीः धनबाद में सिविल कोर्ट के जज की संदेहास्पद मौत और रांची के अधिवक्ता मनोज झा की गोली मार कर हत्या के बाद राज्य में एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट (Advocate Protection Act) की मांग तेज हो गई है. राज्य के 38 हजार अधिवक्ताओं ने सरकार से मांग की है कि जल्द एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट बनाए और लागू करे, ताकि राज्य में निर्भीक होकर जज और वकील काम कर सके.
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झारखंड राज्य विधिक परिषद (Jharkhand State Legal Council ) के सदस्य अधिवक्ता संजय विद्रोही ने बताया कि एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की मांग बहुत लंबे समय से की जा रही है. इसको लेकर पूर्व सरकार को ज्ञापन भी सौंपा था, लेकिन कुछ नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी पत्र लिखा गया है और शीघ्र ही एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री से मिलकर एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की मांग करेगा.
ड्यूटी करने में होती है परेशानी
एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लागू नहीं होने की वजह से वकीलों को अपने प्रोफेशनल ड्यूटी करने में परेशानी होती है. आए दिन राज्य में अधिवक्ताओं की हत्याएं हो रही हैं. इसके साथ ही अधिवक्ताओं पर हमला और धमकी दी जा रही है. इससे वो एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट की मांग कर रहे हैं. अधिवक्ताओं का कहना है कि मध्य प्रदेश में एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट को कैबिनेट से मंजूरी दे दी गई है और मध्य प्रदेश की तर्ज पर ही झारखंड में भी एक्ट को लागू किया जाए.
कई अधिवक्ताओं की हो चुकी है हत्या
हाल के कुछ महीनों में धनबाद के सिविल कोर्ट के जज उत्तम आनंद की मॉर्निंग वॉक के दौरान संदेहास्पद मौत हुई. इसके अलावा रांची सिविल कोर्ट के अधिवक्ता मनोज झा की गोली मारकर हत्या, अधिवक्ता वीरेंद्र सिंह की रांची के सिल्ली में हत्या, महिला अधिवक्ता आरती देवी के बेटे की रांची के बरियातू में हत्या, कांके के अधिवक्ता राम प्रवेश सिंह की गोली मारकर हत्या और जमशेदपुर के अधिवक्ता प्रकाश यादव की हत्या की गई. इसके अलावा आए दिन अधिवक्ताओं के साथ मारपीट की घटना हो रही है.
अधिवक्ताओं को भी मिलनी चाहिए सुरक्षा
राज्य सरकार के कर्मियों को सुरक्षा दी गई है. डॉक्टरों के लिए प्रोटेक्शन एक्ट लागू करने की बात हो रही है तो अधिवक्ताओं के लिए एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट क्यों नहीं लागू होना चाहिए? अधिवक्ता भी अपनी जान जोखिम में डालकर अपने दायित्व का निर्वहन कर रहे हैं.
निर्भीक होकर अधिवक्ता कर सकेंगे काम
झारखंड स्टेट बार काउंसिल के सदस्य संजय विद्रोही कहते हैं कि एडवोकेट के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने से पहले झारखंड राज्य विधिक परिषद से जांच कराई जाए. इस जांच से पता चलेगा कि अधिवक्ता पर किसी प्रकार की ड्यूटी ऑफ डिस्चार्ज में दबाव तो नहीं बनाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि ऑफिशियल कार्य करने में अगर कोई गलती होती है, तो उसके लिए भी जांच कराई जाए. किसी अधिवक्ता को किसी मुद्दे पर काम करने के दौरान धमकी मिलती है, तो राज्य सरकार सुरक्षा प्रदान करें. इन बिंदुओं को एक्ट में रखने की जरूरत है.
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राज्य सरकार को सौंपा गया है ड्राफ्ट
झारखंड स्टेट बार कॉउंसिल के सदस्य हेमंत कुमार सिकवार ने बताया कि झारखंड राज्य विधिक परिषद की ओर से एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट का ड्राफ्ट राज्य सरकार को सौंप दिया गया है. अब राज्य सरकार की ड्राफ्ट कमेटी उस ड्राफ्ट को तैयार करेगी. उन्होंने सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि अगामी कैबिनेट की बैठक में एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट के प्रारूप को पास कर दिया जाए.
पीड़ित को मिलेगा सही न्याय
हेमंत कुमार सिकवार ने बताया कि कानूनी लड़ाई में दो पक्ष होते हैं. दोनों पक्षों में जीतने की होड़ लगी रहती है. उन्होंने बताया कि केस जीतने को लेकर एक पक्ष दूसरे पक्ष के अधिवक्ताओं पर धमकी देते रहते हैं. स्थिति यह होती है कि सेक्रेसी मेंटेन नहीं होता है और पीड़ित को सही न्याय नहीं मिल पाता है. उन्होंने कहा कि इस एक्ट के आने के बाद अधिवक्ताओं का आत्मबल बढ़ेगा और पीड़ित को सही न्याय भी मिलेगा.