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फर्जी सर्टिफिकेट जमा कर पाई थी नौकरी, अदालत ने ठहराया दोषी, 3 साल की सजा - झारखंड न्यूज

रांची: सीबीआई की विशेष अदालत ने फर्जी सर्टिफिकेट जमा कर पोस्ट ऑफिस में नौकरी पाने वाले अभियुक्त विजय रंजन प्रसाद को 3 साल की सजा सुनाई है, साथ ही 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है.

सीबीआई की विशेष अदालत
CBI special court ranchi
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Published : Feb 29, 2020, 7:39 AM IST

रांची: सीबीआई की विशेष अदालत ने शुक्रवार को फर्जी सर्टिफिकेट जमा कर पोस्ट ऑफिस में नौकरी पाने वाले अभियुक्त विजय रंजन प्रसाद को 15 साल बाद दोषी ठहराते हुए 3 साल की सजा सुनाई है, साथ ही 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. जुर्माना की राशि नहीं देने पर 6 महीने की अतिरिक्त सजा काटनी होगी.

छह अभियुक्तों को सजा

अभियुक्त बिहार के नालंदा का रहने वाला है. वर्तमान में वह जीपीओ रांची में पदस्थापित है. इस तरह के मामले में छह अभियुक्तों को सजा मिल चुकी है. एपीपी सुनील कुमार के अनुसार 1995 में पोस्टल विभाग में सहायक पद के लिए सीधी नियुक्ति निकाली गई थी, जिसमें न्यूनतम शिक्षा इंटरमीडिएट तय किया गया था. इसमें अधिकतम अंक वालें अभ्यर्थियों को नियुक्ति मिली थी.

ये भी पढ़ें-झारखंड बजट 2020: जानिए हेमंत सरकार की पहली बजट से दुमका के ग्रामीणों की क्या हैं उम्मीदें

अदालत में 13 गवाह हुए पेश

नौकरी पाने के लिए अभियुक्त ने इंटरमीडिएट काउंसिल की मिली भगत से अंकपत्र में छेड़छाड़ कर अपने हिसाब से अंक पत्र बनवाया. छानबीन में अंक पत्र फर्जी पाए गए. 17 अक्टूबर 2005 को सीबीआई ने कांड संख्या आरसी 19/05 के तहत प्राथमिकी दर्ज की. 31 मार्च 2006 को चार्जशीट दाखिल की गई. अभियोजन पक्ष की ओर से सीबीआई की अदालत में 13 गवाह पेश किया गया.

रांची: सीबीआई की विशेष अदालत ने शुक्रवार को फर्जी सर्टिफिकेट जमा कर पोस्ट ऑफिस में नौकरी पाने वाले अभियुक्त विजय रंजन प्रसाद को 15 साल बाद दोषी ठहराते हुए 3 साल की सजा सुनाई है, साथ ही 10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है. जुर्माना की राशि नहीं देने पर 6 महीने की अतिरिक्त सजा काटनी होगी.

छह अभियुक्तों को सजा

अभियुक्त बिहार के नालंदा का रहने वाला है. वर्तमान में वह जीपीओ रांची में पदस्थापित है. इस तरह के मामले में छह अभियुक्तों को सजा मिल चुकी है. एपीपी सुनील कुमार के अनुसार 1995 में पोस्टल विभाग में सहायक पद के लिए सीधी नियुक्ति निकाली गई थी, जिसमें न्यूनतम शिक्षा इंटरमीडिएट तय किया गया था. इसमें अधिकतम अंक वालें अभ्यर्थियों को नियुक्ति मिली थी.

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अदालत में 13 गवाह हुए पेश

नौकरी पाने के लिए अभियुक्त ने इंटरमीडिएट काउंसिल की मिली भगत से अंकपत्र में छेड़छाड़ कर अपने हिसाब से अंक पत्र बनवाया. छानबीन में अंक पत्र फर्जी पाए गए. 17 अक्टूबर 2005 को सीबीआई ने कांड संख्या आरसी 19/05 के तहत प्राथमिकी दर्ज की. 31 मार्च 2006 को चार्जशीट दाखिल की गई. अभियोजन पक्ष की ओर से सीबीआई की अदालत में 13 गवाह पेश किया गया.

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