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दहाई से कम सीटों पर कॉम्प्रोमाइज करने के मूड में नहीं आजसू, अगले 24 घंटे में तस्वीर हो सकती है साफ

झारखंड में एक तरफ जहां जेएमएम और कांग्रेस में सीट शेयरिंग को लेकर रुख साफ नहीं हो सका है. वहीं आजसू पार्टी भी बीजेपी से 15 सीटों से कम में गठबंधन करने के मूड में नजर नहीं आ रही है. ऐसे में एनडीए में भी पेंच फंस सकता है.

बीजेपी-आजसू गठबंधन में फंस सकता है पेंच
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Published : Nov 7, 2019, 4:42 PM IST

रांची: राज्य गठन से लेकर अब तक बनी हर सरकार में धुरी की भूमिका में रहने वाली आजसू पार्टी ने इस बार क्लियर कर दिया है, कि उसके अस्तित्व को लेकर एनडीए में किसी तरह का कोई कंफ्यूजन नहीं होना चाहिए. विधानसभा चुनावों के पहले पार्टी ने यह साफ कर दिया है कि अब तक हुई सीट शेयरिंग के मुकाबले इस बार उसे ज्यादा विधानसभा सीटें चाहिए.

देखें पूरी खबर

विधानसभा चुनाव 2014 में 8 सीटों पर लड़ने वाला आजसू पार्टी ने इस बार 15 से अधिक सीटों की एक लिस्ट कथित तौर पर बीजेपी को भेजी है. जिसमें यह साफ कर दिया है कि वह दहाई अंक से कम सीटों पर कॉम्प्रोमाइज करने के मूड में नहीं है. एक तरफ जहां 30 नवंबर को होने वाले पहले चरण के मतदान को लेकर नॉमिनेशन शुरू हो रहा है. वहीं, दूसरी तरफ आजसू का यह रोग सत्ताधारी बीजेपी के लिए गले की फांस बन गया है. हालांकि, बीजेपी शुरू से यह दावा करती आ रही है कि एनडीए में सबकुछ ठीक-ठाक है, लेकिन आजसू ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पुरानी बातें और माहौल अलग थे और 2019 का विधानसभा चुनाव बिल्कुल अलग होगा.

इसे भी पढे़ं:- महाराष्ट्र-हरियाणा का एक चरण में चुनाव , फिर झारखंड का चुनाव 5 चरण में क्यों: लखमा

इन विधानसभा सीटों पर है पार्टी की नजर
पार्टी के अंदरखाने चल रही तैयारी के अनुसार इस बार आजसू पार्टी हर प्रमंडल में अपनी उपस्थिति को मजबूत करना चाहती है. सूत्रों की माने तो उनमें कोल्हान की 4 सीटें में शामिल हैं. प्रदेश के संथाल परगना और पलामू प्रमंडल के अलावे पार्टी का फोकस दक्षिणी छोटानागपुर, उत्तरी छोटानागपुर और कोल्हान प्रमंडल पर विशेष रूप से है. 2014 की 8 विधानसभा सीटों को छोड़ दें तो लगभग 7 ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जिन पर आजसू बकायदा तैयारी भी कर रही है. उन 7 विधानसभा सीटों पर बीजेपी और झामुमो के विधायक हैं. उनमें गोमिया, हटिया, मांडू, डुमरी, सिंदरी, ईचागढ़, सरायकेला, खरसावां, मनोहरपुर और हुसैनाबाद विधानसभा सीटों के नाम शामिल हैं. 2014 के असेंबली इलेक्शन में आजसू पार्टी ने सिल्ली, रामगढ़, चंदनकियारी, बड़कागांव, टुंडी, तमाड़ और जुगसलाई से उम्मीदवार उतारे थे जिनमें सिल्ली, चंदनकियारी और बड़कागांव में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा था.

इन सीटों को लेकर हो रही है रस्साकशी
अंदरूनी सूत्रों पर यकीन करें तो चंदनकियारी और लोहरदगा की सीटों के अलावा अन्य विधानसभा इलाकों में बीजेपी और आजसू के बीच पेंच फंस सकता है. दरअसल, एकतरफ जहां चंदनकियारी से राज्य के मौजूदा पर्यटन मंत्री अमर बाउरी विधायक हैं, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने लोहरदगा विधानसभा से अपना उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है. हाल ही में लोहरदगा से कांग्रेस के विधायक सुखदेव भगत ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. वहीं दूसरी तरफ हुसैनाबाद से बसपा विधायक भी आजसू पार्टी में शामिल हो गए हैं.

इसे भी पढ़ें:- झारखंड विधानसभा चुनाव 2019: RJD कार्यालय में समर्थकों ने की नारेबाजी, कई सीटों पर प्राथमिकता देने की कर रहे मांग

2000 से अबतक का आजसू पार्टी का सफर
आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो पहली बार वर्ष 2000 में विधायक बने और राज्य के उप मुख्यमंत्री भी बन गए थे. उसके बाद 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में सुदेश महतो के साथ रामगढ़ से चंद्र प्रकाश चौधरी विधायक बने. 2009 में हुए विधानसभा चुनाव में तीसरी बार सुदेश महतो सिल्ली से, चंद्रप्रकाश चौधरी रामगढ़ से, कमल किशोर भगत लोहरदगा से, उमाकांत रजक चंदनकियारी से और रामचंद्र सहिस जुगसलाई से विधायक बने, जबकि 2011 में हटिया विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में आजसू के नवीन जायसवाल जीत कर आए. 2014 के विधानसभा चुनाव में आजसू को 5 सीटें मिली लेकिन पार्टी सुप्रीमो की उस चुनाव में हार हो गई. 2014 से 2019 आते-आते अलग-अलग कारणों से विधानसभा में पार्टी के 2 विधायक बचे. वहीं पार्टी ने एक लोकसभा सीट पर अपना कब्जा किया है.

रांची: राज्य गठन से लेकर अब तक बनी हर सरकार में धुरी की भूमिका में रहने वाली आजसू पार्टी ने इस बार क्लियर कर दिया है, कि उसके अस्तित्व को लेकर एनडीए में किसी तरह का कोई कंफ्यूजन नहीं होना चाहिए. विधानसभा चुनावों के पहले पार्टी ने यह साफ कर दिया है कि अब तक हुई सीट शेयरिंग के मुकाबले इस बार उसे ज्यादा विधानसभा सीटें चाहिए.

देखें पूरी खबर

विधानसभा चुनाव 2014 में 8 सीटों पर लड़ने वाला आजसू पार्टी ने इस बार 15 से अधिक सीटों की एक लिस्ट कथित तौर पर बीजेपी को भेजी है. जिसमें यह साफ कर दिया है कि वह दहाई अंक से कम सीटों पर कॉम्प्रोमाइज करने के मूड में नहीं है. एक तरफ जहां 30 नवंबर को होने वाले पहले चरण के मतदान को लेकर नॉमिनेशन शुरू हो रहा है. वहीं, दूसरी तरफ आजसू का यह रोग सत्ताधारी बीजेपी के लिए गले की फांस बन गया है. हालांकि, बीजेपी शुरू से यह दावा करती आ रही है कि एनडीए में सबकुछ ठीक-ठाक है, लेकिन आजसू ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पुरानी बातें और माहौल अलग थे और 2019 का विधानसभा चुनाव बिल्कुल अलग होगा.

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इन विधानसभा सीटों पर है पार्टी की नजर
पार्टी के अंदरखाने चल रही तैयारी के अनुसार इस बार आजसू पार्टी हर प्रमंडल में अपनी उपस्थिति को मजबूत करना चाहती है. सूत्रों की माने तो उनमें कोल्हान की 4 सीटें में शामिल हैं. प्रदेश के संथाल परगना और पलामू प्रमंडल के अलावे पार्टी का फोकस दक्षिणी छोटानागपुर, उत्तरी छोटानागपुर और कोल्हान प्रमंडल पर विशेष रूप से है. 2014 की 8 विधानसभा सीटों को छोड़ दें तो लगभग 7 ऐसी विधानसभा सीटें हैं, जिन पर आजसू बकायदा तैयारी भी कर रही है. उन 7 विधानसभा सीटों पर बीजेपी और झामुमो के विधायक हैं. उनमें गोमिया, हटिया, मांडू, डुमरी, सिंदरी, ईचागढ़, सरायकेला, खरसावां, मनोहरपुर और हुसैनाबाद विधानसभा सीटों के नाम शामिल हैं. 2014 के असेंबली इलेक्शन में आजसू पार्टी ने सिल्ली, रामगढ़, चंदनकियारी, बड़कागांव, टुंडी, तमाड़ और जुगसलाई से उम्मीदवार उतारे थे जिनमें सिल्ली, चंदनकियारी और बड़कागांव में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा था.

इन सीटों को लेकर हो रही है रस्साकशी
अंदरूनी सूत्रों पर यकीन करें तो चंदनकियारी और लोहरदगा की सीटों के अलावा अन्य विधानसभा इलाकों में बीजेपी और आजसू के बीच पेंच फंस सकता है. दरअसल, एकतरफ जहां चंदनकियारी से राज्य के मौजूदा पर्यटन मंत्री अमर बाउरी विधायक हैं, वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने लोहरदगा विधानसभा से अपना उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है. हाल ही में लोहरदगा से कांग्रेस के विधायक सुखदेव भगत ने बीजेपी का दामन थाम लिया है. वहीं दूसरी तरफ हुसैनाबाद से बसपा विधायक भी आजसू पार्टी में शामिल हो गए हैं.

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2000 से अबतक का आजसू पार्टी का सफर
आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो पहली बार वर्ष 2000 में विधायक बने और राज्य के उप मुख्यमंत्री भी बन गए थे. उसके बाद 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में सुदेश महतो के साथ रामगढ़ से चंद्र प्रकाश चौधरी विधायक बने. 2009 में हुए विधानसभा चुनाव में तीसरी बार सुदेश महतो सिल्ली से, चंद्रप्रकाश चौधरी रामगढ़ से, कमल किशोर भगत लोहरदगा से, उमाकांत रजक चंदनकियारी से और रामचंद्र सहिस जुगसलाई से विधायक बने, जबकि 2011 में हटिया विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में आजसू के नवीन जायसवाल जीत कर आए. 2014 के विधानसभा चुनाव में आजसू को 5 सीटें मिली लेकिन पार्टी सुप्रीमो की उस चुनाव में हार हो गई. 2014 से 2019 आते-आते अलग-अलग कारणों से विधानसभा में पार्टी के 2 विधायक बचे. वहीं पार्टी ने एक लोकसभा सीट पर अपना कब्जा किया है.

Intro:बाइट 1 देवशरण भगत केंद्रीय प्रवक्ता आजसू पार्टी
बाइट 2 प्रतुल शाहदेव प्रदेश प्रवक्ता बीजेपी

रांची। राज्य गठन से लेकर अब तक बनी हर सरकार में धुरी की भूमिका में रहने वाली आजसू पार्टी ने इस बार क्लियर कर दिया है कि उसके अस्तित्व को लेकर एनडीए गठबंधन में किसी तरह का कोई कंफ्यूजन नहीं होना चाहिए। विधानसभा चुनावों के पहले पार्टी ने यह साफ कर दिया है कि अब तक हुई सीट शेयरिंग के मुकाबले इस बार उसे ज्यादा विधानसभा सीटें चाहिए। 2014 में हुए असेंबली इलेक्शन में 8 सीटों पर लड़ने वाले आजसू पार्टी ने इस बार 15 से अधिक सीटों की एक लिस्ट कथित तौर पर बीजेपी को भेजी है। जिसमें या साफ कर दिया है कि वह दहाई अंक से कम सीटों पर कॉम्प्रोमाइज करने के मूड में नहीं है। एक तरफ जहां 30 नवंबर को होने वाले प्रथम चरण के मतदान को लेकर नॉमिनेशन शुरू हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ आजसू का यह रोग सत्ताधारी बीजेपी के लिए गले की फांस बन गया है। हालांकि बीजेपी शुरू से या दावा करती आ रही है कि एनडीए में सब कुछ ठीक-ठाक है लेकिन आजसू ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पुरानी बातें और माहौल अलग थे और 2019 का विधानसभा चुनाव बिल्कुल अलग होगा।


Body:इन विधानसभा सीटों पर है पार्टी की नजर
पार्टी के अंदरखाने चल रही तैयारी के अनुसार इस बार आजसू पार्टी हर प्रमंडल में अपने प्रेजेंस को मजबूत करना चाहती है। सूत्रों की मानें तो उनमें कोल्हान ठीक 4 सीटें में शामिल है। प्रदेश के संथाल परगना और पलामू प्रमंडल के अलावे पार्टी का फोकस दक्षिणी छोटानागपुर, उत्तरी छोटानागपुर और कोल्हान प्रमंडल पर विशेष रूप से है। 2014 की 8 विधानसभा सीटों को छोड़ दें तो लगभग 7 ऐसी विधानसभा सीटें हैं जिन पर आजसू बकायदा तैयारी भी कर रही है। उन 7 विधानसभा सीटों बीजेपी और झामुमो के विधायक हैं। उनमें गोमिया, हटिया, मांडू, डुमरी, सिंदरी, ईचागढ़, सरायकेला खरसावां, मनोहरपुर और हुसैनाबाद विधानसभा सीटों के नाम शामिल है। 2014 के असेंबली इलेक्शन में आजसू पार्टी ने सिल्ली, रामगढ़, चंदनक्यारी, बड़कागांव, टुंडी, तमाड़ और जुगसलाई से उम्मीदवार उतारे थे जिनमें सिल्ली, चंदनक्यारी और बड़कागांव में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा था।

इन सीटों को लेकर हो रही है रस्साकशी
अंदरूनी सूत्रों का यकीन करें तो चंदनक्यारी और लोहरदगा की सीटों के अलावा बाकी के अन्य विधानसभा इलाकों में बीजेपी और आजसू के बीच पेच फंस सकता है। दरअसल एकतरफ जहां चंदनक्यारी से राज्य के मौजूदा पर्यटन मंत्री अमर बाउरी विधायक हैं। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने लोहरदगा विधानसभा से अपना उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है। हाल ही में लोहरदगा से कांग्रेस के विधायक सुखदेव भगत ने बीजेपी का दामन थाम लिया है। वहीं दूसरी तरफ हुसैनाबाद से बसपा विधायक भी आजसू पार्टी में शामिल हो गए हैं।






Conclusion:2000 से अबतक का आजसू पार्टी का सफर
आजसू पार्टी के सुप्रीमो सुदेश महतो पहली बार वर्ष 2000 में विधायक बने और राज्य के उप मुख्यमंत्री बने। उसके बाद 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में सुदेश महतो के साथ रामगढ़ से चंद्र प्रकाश चौधरी विधायक बने। 2009 में हुए विधानसभा चुनाव में तीसरी बार सुदेश महतो सिल्ली से, चंद्रप्रकाश चौधरी रामगढ़ से, कमल किशोर भगत लोहरदगा से, उमाकांत रजक चंदनक्यारी से, और रामचंद्र सहिस जुगसलाई से विधायक बने। जबकि 2011 में हटिया विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में आजसू के नवीन जयसवाल जीत कर आए। 2014 के विधानसभा चुनाव में आजसू को 5 सीटें मिली लेकिन सुप्रीम महतो की उस चुनाव में हार हो गई। 2014 से 2019 आते-आते अलग-अलग कारणों से विधानसभा में पार्टी के 2 विधायक बचे। वहीं पार्टी ने एक लोकसभा सीट पर कब्जा किया।
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