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लगातार दूसरे साल भी सुखाड़ जैसी स्थिति से परेशान रहे अन्नदाता, जानिए झारखंड में कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में कैसा रहा साल 2023 - झारखंड में कृषि

Condition of Jharkhand agriculture. वर्ष 2023 कृषि और पशुपालन के क्षेत्र में खास नहीं रहा. कमजोर मानसून के कारण खेती पर असर पड़ा और अन्नदाता परेशान रहे. वहीं पशुपालक भी लंपी बीमारी को लेकर परेशान रहे. हालांकि मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चलाई गई.

Animal Husbandry Sector
Jharkhand Agriculture
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 31, 2023, 4:49 PM IST

रांची: झारखंड में कृषि, पशुपालन और मत्स्यपालन के लिए वर्ष 2023 कमोबेश 2022 जैसा ही रहा. इस वर्ष भी पिछले वर्ष की तरह मानसून की वर्षा सामान्य से कम हुई. वहीं समय पर बारिश नहीं होने से धान का आच्छादन काफी कम हुआ. वर्ष 2022 में जहां राज्य के 22 जिलों के 226 प्रखंड सुखाड़ की चपेट में थे, वहीं 2023 में 158 ऐसे प्रखंडों को चिन्हित किया गया जहां सामान्य से कम मानसूनी वर्षा की वजह से सुखाड़ जैसे हालात दिखे. दुखद पहलू यह रहा कि वर्ष 2022 में जिन 226 प्रखंडों को सुखाड़ घोषित किया गया, वहां के किसानों को ना तो फसल राहत योजना का लाभ मिला और ना ही सुखाड़ से हुए नुकसान का मुआवजा.


वर्ष 2023 में सिर्फ 07 जिलों में सामान्य मानसूनी वर्षाः राज्य के 24 में से सिर्फ 07 जिले ऐसे रहे जहां इस वर्ष सामान्य रेंज में वर्षा हुई है. वहीं चतरा, रांची और पलामू सहित 17 जिले ऐसे हैं, जहां सामान्य से कम वर्षा हुई है. समय पर बारिश नहीं होने की वजह से वर्ष 2023 में लगभग 10 लाख हेक्टेयर खेत खाली रह गए. राज्य की करीब 28 लाख हेक्टेयर भूमि में से 10 लाख हेक्टेयर खाली रह गई. वहीं जिन किसानों ने किसी तरह धान और अन्य खरीब फसल की रोपनी की थी उसकी उपज भी अच्छी नहीं हुई. बावजूद इसके पिछले वर्ष सुखाड़ से हुए नुकसान का मुआवजा नहीं मिलने से किसानों ने बेहद खस्ताहाल स्थिति में होने के बावजूद किसान योजना के तहत निबंधन के प्रति रुचि नहीं दिखाई. राज्य में 19 लाख से ज्यादा किसानों ने निबंधन कराया है.


सब्जियों का एमएसपी तय नहीं कर पाई सरकारः राज्य के किसानों को नुकसान नहीं हो इसलिए केरल की तर्ज पर कई सब्जियों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की बात कृषि विभाग की ओर से कहा गया था, लेकिन 2023 का वर्ष भी बिना एमएसपी तय किए गुजर गया. वर्ष 2023 के अंत में दिसंबर महीने की अंतिम कैबिनेट में हेमंत सरकार ने धान की खरीद पर बोनस और एमएसपी बढ़ा और अन्नदाताओं को थोड़ी राहत देने की कोशिश जरूर की.


लंपी स्किन डिजीज से इस वर्ष भी पशुधन की हुई हानिः वर्ष 2022 की तरह इस वर्ष भी पशुपालन के लिए लंपी स्किन डिजीज परेशानी का सबब बना रहा. रांची, चतरा, लोहरदगा सहित कई जिलों में लंपी बीमारी से पशुपालक परेशान रहे, लेकिन विभाग आंकड़ों को छुपाने की कोशिश में लगा रहा.पशुओं के लिए एंबुलेंस सेवा, पशु चिकित्सकों की बहाली की कोशिशों के बीच पशु कल्याण से जुड़ी ज्यादातर योजनाएं फाइलों में सिमटी रहीं. वहीं रांची वेटनरी कॉलेज में फैकल्टी की कमी पूरी नहीं हो सकी. वेटनरी काउंसिल ऑफ इंडिया को एफिडेविट देने के बाद BSC (AH) में नामांकन करने की अनुमति मिली थी, लेकिन आज की तारीख में भी वेटनरी कॉलेज में शिक्षकों के कई पद खाली पड़े रहे. वहीं बिरसा कृषि विश्वविद्यालय इस वर्ष लंबे दिनों तक प्रभारी कुलपति के रूप में कृषि सचिव अबु बकर सिदिकी रहे.


मोटे अनाज की खेती को दिया गया बढ़ावाः मिलेट्स वर्ष में मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए भी 2023 याद रखा जाएगा. इस वर्ष कृषि विभाग ने 50 करोड़ की राशि मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, मडुआ की खेती को बढ़ावा देने के लिए रखा. वहीं इस वर्ष भी 2022 की तरह राज्य में मिट्टी हेल्थ जांच का काम धीमा ही रहा. हर पंचायत में रघुवर दास की सरकार के समय खुले पोर्टेबल सॉयल हेल्थ लैब शुरू नहीं हो सका और किसान जानकारी को पाने से वंचित रह गए कि उनके खेत की मिट्टी में किस-किस पोषक तत्व की कमी है.

रांची: झारखंड में कृषि, पशुपालन और मत्स्यपालन के लिए वर्ष 2023 कमोबेश 2022 जैसा ही रहा. इस वर्ष भी पिछले वर्ष की तरह मानसून की वर्षा सामान्य से कम हुई. वहीं समय पर बारिश नहीं होने से धान का आच्छादन काफी कम हुआ. वर्ष 2022 में जहां राज्य के 22 जिलों के 226 प्रखंड सुखाड़ की चपेट में थे, वहीं 2023 में 158 ऐसे प्रखंडों को चिन्हित किया गया जहां सामान्य से कम मानसूनी वर्षा की वजह से सुखाड़ जैसे हालात दिखे. दुखद पहलू यह रहा कि वर्ष 2022 में जिन 226 प्रखंडों को सुखाड़ घोषित किया गया, वहां के किसानों को ना तो फसल राहत योजना का लाभ मिला और ना ही सुखाड़ से हुए नुकसान का मुआवजा.


वर्ष 2023 में सिर्फ 07 जिलों में सामान्य मानसूनी वर्षाः राज्य के 24 में से सिर्फ 07 जिले ऐसे रहे जहां इस वर्ष सामान्य रेंज में वर्षा हुई है. वहीं चतरा, रांची और पलामू सहित 17 जिले ऐसे हैं, जहां सामान्य से कम वर्षा हुई है. समय पर बारिश नहीं होने की वजह से वर्ष 2023 में लगभग 10 लाख हेक्टेयर खेत खाली रह गए. राज्य की करीब 28 लाख हेक्टेयर भूमि में से 10 लाख हेक्टेयर खाली रह गई. वहीं जिन किसानों ने किसी तरह धान और अन्य खरीब फसल की रोपनी की थी उसकी उपज भी अच्छी नहीं हुई. बावजूद इसके पिछले वर्ष सुखाड़ से हुए नुकसान का मुआवजा नहीं मिलने से किसानों ने बेहद खस्ताहाल स्थिति में होने के बावजूद किसान योजना के तहत निबंधन के प्रति रुचि नहीं दिखाई. राज्य में 19 लाख से ज्यादा किसानों ने निबंधन कराया है.


सब्जियों का एमएसपी तय नहीं कर पाई सरकारः राज्य के किसानों को नुकसान नहीं हो इसलिए केरल की तर्ज पर कई सब्जियों का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की बात कृषि विभाग की ओर से कहा गया था, लेकिन 2023 का वर्ष भी बिना एमएसपी तय किए गुजर गया. वर्ष 2023 के अंत में दिसंबर महीने की अंतिम कैबिनेट में हेमंत सरकार ने धान की खरीद पर बोनस और एमएसपी बढ़ा और अन्नदाताओं को थोड़ी राहत देने की कोशिश जरूर की.


लंपी स्किन डिजीज से इस वर्ष भी पशुधन की हुई हानिः वर्ष 2022 की तरह इस वर्ष भी पशुपालन के लिए लंपी स्किन डिजीज परेशानी का सबब बना रहा. रांची, चतरा, लोहरदगा सहित कई जिलों में लंपी बीमारी से पशुपालक परेशान रहे, लेकिन विभाग आंकड़ों को छुपाने की कोशिश में लगा रहा.पशुओं के लिए एंबुलेंस सेवा, पशु चिकित्सकों की बहाली की कोशिशों के बीच पशु कल्याण से जुड़ी ज्यादातर योजनाएं फाइलों में सिमटी रहीं. वहीं रांची वेटनरी कॉलेज में फैकल्टी की कमी पूरी नहीं हो सकी. वेटनरी काउंसिल ऑफ इंडिया को एफिडेविट देने के बाद BSC (AH) में नामांकन करने की अनुमति मिली थी, लेकिन आज की तारीख में भी वेटनरी कॉलेज में शिक्षकों के कई पद खाली पड़े रहे. वहीं बिरसा कृषि विश्वविद्यालय इस वर्ष लंबे दिनों तक प्रभारी कुलपति के रूप में कृषि सचिव अबु बकर सिदिकी रहे.


मोटे अनाज की खेती को दिया गया बढ़ावाः मिलेट्स वर्ष में मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा देने के लिए भी 2023 याद रखा जाएगा. इस वर्ष कृषि विभाग ने 50 करोड़ की राशि मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, मडुआ की खेती को बढ़ावा देने के लिए रखा. वहीं इस वर्ष भी 2022 की तरह राज्य में मिट्टी हेल्थ जांच का काम धीमा ही रहा. हर पंचायत में रघुवर दास की सरकार के समय खुले पोर्टेबल सॉयल हेल्थ लैब शुरू नहीं हो सका और किसान जानकारी को पाने से वंचित रह गए कि उनके खेत की मिट्टी में किस-किस पोषक तत्व की कमी है.

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