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रांची: लॉकडाउन ने तोड़ी रंग बहादुर की कमर, दो वक्त की रोटी को हुए मोहताज

रांची के बरियातू में रहने वाले मोची रंग बहादुर जो 30 वर्षों से सड़क किनारे दुकान लगाते आ रहे हैं. उन्हें लॉकडाउन के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. जिसकी वजह से वे राटी को मोहताज हो गए हैं.

रंग बहादुर
रंग बहादुर
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Published : May 28, 2020, 1:22 PM IST

रांची: लॉकडाउन के कारण निम्न तबके के काम से जुड़े, सड़क के किनारे फुटपाथ पर रोजाना 200 से 300 रुपये कमाने वाले लोग अब धीरे-धीरे भुखमरी की कगार पर आ रहे हैं. एक तरफ जहां बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं. मजदूरों के अभाव में काम ठप हैं, वहीं जूता चप्पल सिलाई करने वाले इन मोचियों की हालत भी धीरे-धीरे खराब हो रही है. ऐसे ही लोगों में शामिल है रंग बहादुर जो 30 वर्षों से सड़क किनारे इसी स्थान पर दुकान लगाते आ रहे हैं. लेकिन लॉकडाउन के कारण वो दो वक्त की रोटी को मोहताज हो गए हैं.

देखें पूरी खबर

कौन है रंग बहादुर
रंग बहादुर जो रांची के बरियातू के रहने वाले हैं. लगभग 40 से 45 वर्ष पहले रंग बहादुर बिहार से आकर झारखंड की राजधानी रांची में बस गए. पूरे परिवार के साथ बरियातू के भरम टोली में रहते हैं और सड़क किनारे जूता चप्पल सिलाई की छोटी सी दुकान चलाकर घर की रोजी-रोटी चलाते हैं. अचानक लॉकडाउन ने इनकी दुनिया उजाड़ दी है और इनके पेट पर आफत बन आई और दुकान बंद हो गया. ऐसे में समाजसेवी संस्थाओं के दिए जा रहे भोजन सामग्री से दिन काटने को मजबूर हैं.

और पढ़ें - 438 हुई राज्य में कोरोना मरीजों की संख्या, मात्र एक साहिबगंज जिला है कोरोना मुक्त

रोज कमाते थे 300 रुपये
रंग बहादुर राम ने कहा कि लॉकडाउन से पहले वो दिन भर में 300 रुपये कमा कर यहां से जाते थे. लेकिन अब बमुश्किल 50 से 100 रुपए कमा पा रहे हैं. जो घर चलाने के लिए नाकाफी है. यह सिर्फ रंग बहादुर की ही कहानी नहीं है, ऐसे लाखों इस वर्ग के लोग हैं जो अब भुखमरी की कगार पर हैं. लोग इनके दुकानों की ओर भी कम रुख कर रहे हैं. लोगों के मन में कहीं ना कहीं कोरोना को लेकर एक भय भी समा गया है. आने वाले समय में ऐसे लोगों पर सरकार को भी ध्यान देना होगा. नहीं तो स्थिति भयावह होगी .

रांची: लॉकडाउन के कारण निम्न तबके के काम से जुड़े, सड़क के किनारे फुटपाथ पर रोजाना 200 से 300 रुपये कमाने वाले लोग अब धीरे-धीरे भुखमरी की कगार पर आ रहे हैं. एक तरफ जहां बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं. मजदूरों के अभाव में काम ठप हैं, वहीं जूता चप्पल सिलाई करने वाले इन मोचियों की हालत भी धीरे-धीरे खराब हो रही है. ऐसे ही लोगों में शामिल है रंग बहादुर जो 30 वर्षों से सड़क किनारे इसी स्थान पर दुकान लगाते आ रहे हैं. लेकिन लॉकडाउन के कारण वो दो वक्त की रोटी को मोहताज हो गए हैं.

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कौन है रंग बहादुर
रंग बहादुर जो रांची के बरियातू के रहने वाले हैं. लगभग 40 से 45 वर्ष पहले रंग बहादुर बिहार से आकर झारखंड की राजधानी रांची में बस गए. पूरे परिवार के साथ बरियातू के भरम टोली में रहते हैं और सड़क किनारे जूता चप्पल सिलाई की छोटी सी दुकान चलाकर घर की रोजी-रोटी चलाते हैं. अचानक लॉकडाउन ने इनकी दुनिया उजाड़ दी है और इनके पेट पर आफत बन आई और दुकान बंद हो गया. ऐसे में समाजसेवी संस्थाओं के दिए जा रहे भोजन सामग्री से दिन काटने को मजबूर हैं.

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रोज कमाते थे 300 रुपये
रंग बहादुर राम ने कहा कि लॉकडाउन से पहले वो दिन भर में 300 रुपये कमा कर यहां से जाते थे. लेकिन अब बमुश्किल 50 से 100 रुपए कमा पा रहे हैं. जो घर चलाने के लिए नाकाफी है. यह सिर्फ रंग बहादुर की ही कहानी नहीं है, ऐसे लाखों इस वर्ग के लोग हैं जो अब भुखमरी की कगार पर हैं. लोग इनके दुकानों की ओर भी कम रुख कर रहे हैं. लोगों के मन में कहीं ना कहीं कोरोना को लेकर एक भय भी समा गया है. आने वाले समय में ऐसे लोगों पर सरकार को भी ध्यान देना होगा. नहीं तो स्थिति भयावह होगी .

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