रांचीः हूल दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रांची से भोगनाडीह के लिए रवाना हो गए हैं. गुरुवार शाम वनांचल एक्सप्रेस से बरहरवा के लिए रवाना होते हुए मुख्यमंत्री ने रांची जंक्शन पर मीडियाकर्मियों से बात करते हुए कहा कि हूल दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने जा रहे हैं. मुझे बहुत खुशी है उस स्थल पर जाने को लेकर इसके लिए ट्रेन का सफर कर रहा हूं. साहिबगंज पहुंचने के बाद आगे बातचीत होगी.
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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का साहिबगंज दौराः ट्रेन की यात्रा कर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन 30 जून की सुबह 6:00 बजे के करीब बरहरवा रेलवे स्टेशन पहुंचेंगे. यहां से मुख्यमंत्री पतना प्रखंड के धर्मपुर स्थित आवास जाएंगे जहां वह थोड़ी देर विश्राम करने के बाद लगभग 12:10 पर शहीद स्थल पंचकठिया जाएंगे. यहीं से सिदो कान्हू को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद 12:55 पर मुख्यमंत्री भोगनाडीह पहुंचेंगे. भोगनाडीह में शहीदों की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने के बाद उनके वंशजों से मुलाकात करेंगे. उसके बाद सीएम सरकारी कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे. शाम करीब 4:00 बजे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पटना धर्मपुर आवास पहुंचेंगे. मुख्यमंत्री रात 10 बजे बरहरवा रेलवे स्टेशन से रांची के लिए भागलपुर रांची वनांचल एक्सप्रेस से रवाना हो जाएंगे.
30 जून को मनाया जाता है हूल दिवसः हर वर्ष 30 जून को हूल दिवस मनाया जाता है. हूल संथाली भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ होता है विद्रोह. 30 जून 1855 को झारखंड के आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहली बार विद्रोह का बिगुल फूंका था. इस दिन साहिबगंज के भोगनाडीह गांव में हजारों की संख्या में इकट्ठा हुए लोगों ने अंग्रेजों से आमने सामने लड़ाई लड़ी जिसका नेतृत्व सिदो कान्हू और चांद-भैरव कर रहे थे. अंग्रेजी शासन के खिलाफ आंदोलन कर रहे आदिवासियों ने मालगुजारी नहीं देने और करो या मरो अंग्रेजों हमारी माटी छोड़ो का नारा देकर इस विद्रोह का ऐलान किया था. इस दौरान बड़ी संख्या में आंदोलनकारी शहीद हुए थे. हूल क्रांति या फिर संथाल विद्रोह के नाम से प्रसिद्ध यह दिवस संघर्ष और अंग्रेजो के द्वारा मारे गए लोगों की याद में मनाया जाता है. यह विद्रोह आदिवासियों की संघर्ष गाथा और उनके बलिदान को आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों के छक्के छुड़ाने वाले नायकों को याद करने का खास दिन है.