रांची: राजधानी में एक भाई-बहन ने अपनी मां के लिए इच्छामृत्यु (Euthanasia) की मांग की है. ब्लैक फंगस बीमारी से ग्रसित उनकी मां के इलाज में काफी रुपये खर्च हो रहे हैं. भारी खर्चों को वहन करने में असमर्थ दोनों भाई-बहनों ने रिम्स के इमरजेंसी गेट के पास धरना पर बैठकर अपनी मां की इच्छामृत्यु के लिए गुहार लगाई है.
ये भी पढ़ें- झारखंड में मिले ब्लैक फंगस के दो संदिग्ध मरीज, अब तक 26 लोगों की हो चुकी है मौत
डॉक्टरों पर इलाज में देरी का आरोप
दरअसल गिरिडीह की रहने वाली 45 साल की उषा देवी अप्रैल के महीने में कोरोना से संक्रमित हुईं थीं. लगातार इलाज के बाद महिला ने कोरोना से तो जंग जीत लिया लेकिन वह ब्लैक फंगस से ग्रसित हो गई. महिला के बेटे गौरव के मुताबिक उसकी मां जैसे ही ब्लैक फंगस से ग्रसित हुई वे अपनी मां को लेकर रिम्स पहुंच गए. जहां डॉक्टरों ने इलाज करने में दो दिन से ज्यादा समय लगा दिए. उनके मुताबिक उनकी मां को पहले रिम्स के ओल्ड ट्रॉमा सेंटर में रखा गया और अब डेंगू वार्ड में भर्ती कर दिया गया है. उन्होंने आरोप लगाया कि बीपी और शुगर बढ़ने का बहाना बनाते हुए डॉक्टरों ने दो बार ऑपरेशन टाल दिया, जिससे स्थिति बिगड़ गई और इंफेक्शन ब्रेन तक पहुंच गया और अब उन्हें इलाज के लिए केरल या अहमदाबाद जाने के लिए बोला जा रहा है.
इलाज में हो चुके हैं काफी खर्च
ब्लैक फंगस (Black Fungus) से पीड़ित महिला की बेटी पूजा बताती हैं कि अब तक इलाज में दो लाख रुपये खर्च हो चुके हैं. जिससे उनकी आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई है. उन्हें सभी दवाइयां बाहर से खरीदनी पड़ रही है. उनके मुताबिक एक दवाई पासाकोनाजोल (Posaconazole) नाम की टैबलेट जिसकी कीमत लगभग 6 हजार रुपये है, वह अभी तक 50 हजार रुपये की खरीद चुके हैं. ऐसे में वह अपनी मां का इलाज कराने में असमर्थ हैं.
इच्छामृत्यु की मांग
आर्थिक तंगी और बीमारी के कारण मां की परेशानी को देखते हुए पीड़ित उषा देवी के दोनों बेटे बेटियों ने अपनी मां के इलाज के लिए सरकार से गुहार लगाई है. उन्होंने कहा कि सरकार या तो इलाज कराए या फिर इच्छामृत्यु दे क्योंकि उनके पास अब पैसे नहीं बचे हैं. उन्होंने कहा जब उनकी मां की स्थिति ठीक थी उस वक्त चिकित्सकों ने इलाज में लापरवाही की, जिससे उनकी मां की स्थिति बिगड़ गई. उन्होंने कहा कि उनकी मां जिंदगी और मौत से जंग लड़ रही है. उनके मुताबिक एक आंख पूरी तरह खराब हो चुका है और संक्रमण फेफड़ों तक पहुंच गया है. इसलिए हम सरकार से गुहार लगाते हैं कि वे उनकी मां को जीवन देने का काम करें.