रांची: आम का सीजन शुरू होने के साथ ही इसके शौकीन शुरुआती दिनों से आम खाना शुरू कर देते हैं. आवागमन के साधन बढ़ने के साथ अब देश विदेश के आम की वेराइटी छोटे शहरों के फल बाजारों में भी दिखने लगे हैं. इन दिनों राजधानी रांची के फल बाजार में दक्षिण भारत के प्रदेशों के आम के साथ साथ उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के आम भी खूब बिक रहे हैं. 60 रुपये प्रति किलो से लेकर 155 रुपये प्रति किलो तक बिक रहे ये आम देखने में बेहद आकर्षक और ऐसे लगते हैं, मानो अभी पेड़ से तोड़ कर बाजार में लाए गए हो. लेकिन इसकी सच्चाई बिल्कुल उलट है.
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आम के कच्चे फलों को पकाने के लिए इन दिनों प्रतिबंधित कैल्शियम कार्बाइड के साथ-साथ एक केमिकल का भी इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है. बीज विक्रेता के पास मिलने वाले इस तरल रसायन को आम पर छिड़क देने से दो दिनों में ही पेड़ पर नेचुरल तरीके से पके आम जैसा हो जाता है. हार्डवेयर के दुकान से 150 रुपये प्रति किलो कार्बाइड मिल जाता है और बीज दुकान से केमिकल, जिसका पांच एमएल ही एक लीटर पानी में मिलाकर फलों पर छिड़कने से आम कुदरती रूप से पक जाता है. फल व्यवसायी कहते हैं कि इस तरह के पके आम को खाने से स्वास्थ्य पर कोई खतरा नहीं है. क्योंकि, उन्हें मुनाफा कमाना है.
कार्बाइड और केमिकल सरकार द्वारा प्रतिबंधित-खाद्य विश्लेषक: आम को पकाने में कार्बाइड और रसायन के उपयोग को प्रतिबंधित बताते हुए झारखंड के खाद्य विश्लेषक चतुर्भुज मीणा कहते हैं कि स्वास्थ्य के लिए यह खतरनाक होने के बावजूद, यह राष्ट्रीय समस्या के समान है. देशभर में फलों को पकाने के लिए कार्बाइड का इस्तेमाल होता है, यह बहुत हानिकारक है. इस पर लगाम इसलिए नहीं लग रहा है क्योंकि कार्बाइड और केमिकल से पकाए गए आम का सैंपल जांच के लिए लैब नहीं पहुंच पाता. ऐसे में ऐसे आमों की जांच ही नहीं होती तो फिर कार्रवाई कैसे सुनिश्चित होगी.
कार्बाइड और केमिकल से पके आम को खाने से गंभीर बीमारियों का खतरा: वे आगे कहते हैं कि कार्बाइड और केमिकल से पकाए गए फलों का लगातार और अधिक मात्रा में सेवन करने से कैंसर, लीवर की बीमारी, पेट की समस्या, डायबिटीज से लेकर दिल तक की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है. उन्होंने कहा कि कैल्शियम कार्बाईड एसिटिलीन गैस निकालता है, जो फलों को पका देता है. लेकिन कार्बाईड में आर्सेनिक और फास्फोरस भी होता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है. उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं कार्बाइड के इस्तेमाल के बाद उसका जो धूल बचता है, वह भी स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है, क्योंकि उससे लंग्स फाइब्रोसिस का खतरा बढ़ जाता है. रांची में इंटरनल मेडिसीन के प्रख्यात चिकित्सक डॉ ए.के. झा ने कहा कि ऐसे आम खाने से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और ब्लड इन्फेक्शन तक का खतरा बढ़ जाता है. उन्होंने कहा कि 'नॉर्मल इज ऑलवेज बेस्ट' के फॉर्मूला को याद रखना होगा. कच्चा आम को घर पर लाकर नेचुरल तरीके से पका कर खाना ही बेहतर होगा.