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रांची में चांडिल डैम विस्थापितों का धरना, मुआवजे की मांग को लेकर राजभवन के समक्ष किया प्रदर्शन - ईटीवी भारत न्यूज

रांची में चांडिल डैम विस्थापितों ने राजभवन के समक्ष प्रदर्शन किया. पिछले चार दशक में इनको मुआवजा नहीं मिल पाया है. इसको लेकर ग्रामीण गांव से कई किलोमीटर पैदल मार्च कर राजभवन पहुंचे. Chandil Dam displaced people protest in Ranchi.

Chandil Dam displaced people protest in front of Raj Bhavan in Ranchi
रांची में चांडिल डैम विस्थापितों का धरना
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 3, 2023, 9:48 PM IST

Updated : Oct 3, 2023, 11:00 PM IST

रांची में चांडिल डैम विस्थापितों का धरना

रांचीः झारखंड में पूर्वी सिंहभूम के चांडिल डैम की वजह से 116 गांव के विस्थापितों हुए लेकिन चार दशक के बाद भी उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिल पाया है. जिस वजह से चांडिल क्षेत्र के रहने वाले सैकड़ों लोगों ने कई किलोमीटर पैदल मार्च कर राजभवन पहुंचकर राज्यपाल से न्याय की गुहार लगाई.

इसे भी पढ़ें- Bokaro News: मुआवजा-नियोजन के लिए कार्यालय का चक्कर लगाने को विवश विस्थापित परिवार

झारखंड खनिज संपदाओं का प्रदेश है. इसलिए यहां पर कई तरह की केंद्र की योजना और परियोजना क्रियान्वित होती हैं. इसी के साथ कई निजी कंपनियों के भी प्लांट यहां पर स्थापित हैं और कंपनियां इसका लाभ भी उठाती हैं. इससे कहीं ना कहीं झारखंड के स्थानीय लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कुछ इसी तरह की समस्या लेकर रांची के राजभवन पहुंचे पूर्वी सिंहभूम जिला के लोगों ने राज्यपाल से न्याय की गुहार लगाई.

1980 में शुरू हुई चांडिल डैम की वजह से विस्थापित हुए 116 गांव के लोगों को अब तक उचित मुआवजा नहीं मिला है, जिससे हजारों लोग परेशान हैं. इसी को लेकर 1 अक्टूबर को चांडिल क्षेत्र के रहने वाले सैकड़ों ग्रामीण पैदल मार्च करते हुए मंगलवार को रांची पहुंचे. कई किलोमीटर का सफर तय करने के बाद सभी पीड़ित राजभवन के सामने आकर धरना प्रदर्शन किया.

इसमें शामिल सामंत महतो ने बताया कि वर्ष 1980 में ही चांडिल डैम बनाया गया, जिसके लिए 116 गांव को खाली किया गया. वहां के ग्रामीणों की जमीन डैम के उपयोग में लाई गयी. लेकिन जमीन लेने के चार दशक बाद भी अभी तक लोगों को उनका वाजिब हक नहीं मिला है. लोगों की जमीन पर पानी है और उस पानी से टाटा जैसी कंपनियां करोड़ों रुपए कमा रही हैं और राज्य सरकार को प्रतिमाह 8 करोड़ रुपए राजस्व दे रही हैं. इसके बावजूद भी सरकार को चांडिल क्षेत्र के लोगों की समस्या नहीं दिखाई दे रही.

इसी प्रकार वशिष्ठ नारायण महतो ने बताया कि उनकी मांग है कि जमशेदपुर के चांडिल में बनाए गए डैम में जिन किसानों और ग्रामीणों की जमीन ली गई है, उन्हें मुआवजा दिया जाए. इसके साथ ही उनके पुनर्वास के लिए राशि मुहैया कराई जाए. उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने झारखंड के विकास में अपने जमीन दी है अगर उन्हीं का विकास नहीं होगा तो फिर स्थानीय नीति और नियोजन नीति बनाने से क्या लाभ है?

प्रदर्शनकरियों ने कहा कि अगर सरकार विस्थापितों को उनकी जमीन का उचित मुआवजा और पुनर्वास के लिए राशि मुहैया नहीं कराती है तो ग्रामीणों को जमीन वापस कर दें ताकि ग्रामीण उसमें खेती कर अपना जीवनयापन कर सकें. उन्होंने बताया कि डैम की वजह से कई गांव डूब चुके हैं लेकिन ग्रामीणों को उनका मुआवजा नहीं मिला है. उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मुलाकात की है.

राज्यपाल से जो भी आश्वासन मिलेगा उसके बाद यह सभी प्रदर्शनकारी आगे की रणनीति बनाएंगे और मुख्यमंत्री से मिलकर स्थानीय लोगों को उनका हक और जिनकी जमीन ली गई है, उनके घर से एक नौकरी दिलाने की बात करेंगे. इसके बावजूद भी बात नहीं बनी तो आने वाले दिनों में चांडिल क्षेत्र के ग्रामीण आंदोलन को उग्र करेंगे.

रांची में चांडिल डैम विस्थापितों का धरना

रांचीः झारखंड में पूर्वी सिंहभूम के चांडिल डैम की वजह से 116 गांव के विस्थापितों हुए लेकिन चार दशक के बाद भी उन्हें उचित मुआवजा नहीं मिल पाया है. जिस वजह से चांडिल क्षेत्र के रहने वाले सैकड़ों लोगों ने कई किलोमीटर पैदल मार्च कर राजभवन पहुंचकर राज्यपाल से न्याय की गुहार लगाई.

इसे भी पढ़ें- Bokaro News: मुआवजा-नियोजन के लिए कार्यालय का चक्कर लगाने को विवश विस्थापित परिवार

झारखंड खनिज संपदाओं का प्रदेश है. इसलिए यहां पर कई तरह की केंद्र की योजना और परियोजना क्रियान्वित होती हैं. इसी के साथ कई निजी कंपनियों के भी प्लांट यहां पर स्थापित हैं और कंपनियां इसका लाभ भी उठाती हैं. इससे कहीं ना कहीं झारखंड के स्थानीय लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है. कुछ इसी तरह की समस्या लेकर रांची के राजभवन पहुंचे पूर्वी सिंहभूम जिला के लोगों ने राज्यपाल से न्याय की गुहार लगाई.

1980 में शुरू हुई चांडिल डैम की वजह से विस्थापित हुए 116 गांव के लोगों को अब तक उचित मुआवजा नहीं मिला है, जिससे हजारों लोग परेशान हैं. इसी को लेकर 1 अक्टूबर को चांडिल क्षेत्र के रहने वाले सैकड़ों ग्रामीण पैदल मार्च करते हुए मंगलवार को रांची पहुंचे. कई किलोमीटर का सफर तय करने के बाद सभी पीड़ित राजभवन के सामने आकर धरना प्रदर्शन किया.

इसमें शामिल सामंत महतो ने बताया कि वर्ष 1980 में ही चांडिल डैम बनाया गया, जिसके लिए 116 गांव को खाली किया गया. वहां के ग्रामीणों की जमीन डैम के उपयोग में लाई गयी. लेकिन जमीन लेने के चार दशक बाद भी अभी तक लोगों को उनका वाजिब हक नहीं मिला है. लोगों की जमीन पर पानी है और उस पानी से टाटा जैसी कंपनियां करोड़ों रुपए कमा रही हैं और राज्य सरकार को प्रतिमाह 8 करोड़ रुपए राजस्व दे रही हैं. इसके बावजूद भी सरकार को चांडिल क्षेत्र के लोगों की समस्या नहीं दिखाई दे रही.

इसी प्रकार वशिष्ठ नारायण महतो ने बताया कि उनकी मांग है कि जमशेदपुर के चांडिल में बनाए गए डैम में जिन किसानों और ग्रामीणों की जमीन ली गई है, उन्हें मुआवजा दिया जाए. इसके साथ ही उनके पुनर्वास के लिए राशि मुहैया कराई जाए. उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने झारखंड के विकास में अपने जमीन दी है अगर उन्हीं का विकास नहीं होगा तो फिर स्थानीय नीति और नियोजन नीति बनाने से क्या लाभ है?

प्रदर्शनकरियों ने कहा कि अगर सरकार विस्थापितों को उनकी जमीन का उचित मुआवजा और पुनर्वास के लिए राशि मुहैया नहीं कराती है तो ग्रामीणों को जमीन वापस कर दें ताकि ग्रामीण उसमें खेती कर अपना जीवनयापन कर सकें. उन्होंने बताया कि डैम की वजह से कई गांव डूब चुके हैं लेकिन ग्रामीणों को उनका मुआवजा नहीं मिला है. उन्होंने कहा कि प्रदर्शनकारियों का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मुलाकात की है.

राज्यपाल से जो भी आश्वासन मिलेगा उसके बाद यह सभी प्रदर्शनकारी आगे की रणनीति बनाएंगे और मुख्यमंत्री से मिलकर स्थानीय लोगों को उनका हक और जिनकी जमीन ली गई है, उनके घर से एक नौकरी दिलाने की बात करेंगे. इसके बावजूद भी बात नहीं बनी तो आने वाले दिनों में चांडिल क्षेत्र के ग्रामीण आंदोलन को उग्र करेंगे.

Last Updated : Oct 3, 2023, 11:00 PM IST

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