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Panchayat Elections In Jharkhand: पंचायत चुनाव टलने के आसार, पेसा नियमावली में हो रहा बदलाव बनेगी वजह

झारखंड में पंचायत चुनाव टलने के आसार दिखाई दे रहे हैं. कोरोना के बाद अब पेसा नियमावली में बदलाव हो रहा है जो चुनाव टलने की वजह बनेगी. राज्य में दिसंबर 2020 से पंचायत चुनाव लंबित है. इससे पंचायत चुनाव पर सियासत जारी है.

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झारखंड में पंचायत चुनाव
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Published : Feb 8, 2022, 5:42 PM IST

Updated : Feb 8, 2022, 7:02 PM IST

रांचीः झारखंड में पंचायत चुनाव एक बार फिर टलने के आसार हैं. कोरोना के बाद अब पेसा नियमावली में हो रहे बदलाव इसकी मुख्य वजह बनने की संभावना है. झारखंड हाई कोर्ट के रुख के बाद राज्य सरकार इस दिशा में पहल शुरू कर दी है.

इसे भी पढ़ें- झारखंड में गांव की सरकार पर कोरोना का ग्रहण, टल सकता है पंचायत चुनाव


झारखंड हाई कोर्ट के रुख को देखते हुए सरकार नियमावली में फेरबदल करने की तैयारी में है. ऐसे में राज्य सरकार भले ही मार्च में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराने की बात कह रही हो मगर इसके आसार कम दिख रहे हैं. इधर आदिवासी जन परिषद ने सरकार से पेसा एक्ट के तहत ही त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराने की मांग की है. आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेमशाही मुंडा ने पेसा एक्ट के तहत नियमावली तैयार होने के बाद ही चुनाव कराने की अपील की है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

पेसा एक्ट में प्रावधानः पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल एरिया (Panchayat Extension to Schedule Area) यानी पेसा एक्ट 1996 में लागू हुआ था. यह प्रशासनिक व्यवस्था को पंचायत स्तर तक लागू किए जाने का प्रभावी कानून है. इसके तहत अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को पंचायत द्वारा विशेष प्रशासनिक अधिकार प्राप्त होते हैं. जल, जंगल, जमीन पर पंचायत का कंट्रोल होता है. चुनावी प्रक्रिया में भी जनजातीय समुदाय को विशेष संरक्षण प्राप्त होता है. मुखिया, प्रमुख, जिला परिषद अध्यक्ष जैसे एकल पद रिजर्व होते हैं. पेसा कानून झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में लागू करनी है. इसके अंतर्गत रांची, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, खूंटी, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिहंभूम, लातेहार, गढ़वा का भंडरिया ब्लॉक और संथालपरगना के दुमका, गोड्डा के सुंदरपहाड़ी, बोआरिजोर ब्लॉक, पाकुड़, राजमहल और जामताड़ा जिला आते हैं.

पंचायत चुनाव पर सियासत जारीः पेसा को लेकर पंचायत चुनाव लटकता देख इसपर सियासत शुरू हो गयी है. बीजेपी के राष्ट्रीय मंत्री आशा लकड़ा ने सरकार पर चुनाव नहीं कराने का आरोप लगाते हुए कहा कि मंशा ठीक नहीं होने के वजह से यह बहाना बनाया जा रहा है. इधर सत्तारूढ़ कांग्रेस-झामुमो ने सरकार की मंशा सही होने की बात करते हुए बीजेपी पर पलटवार किया है. झामुमो नेता मनोज पांडे ने पिछले रघुवर सरकार पर दोषारोपण करते हुए पेसा प्रावधानों को लागू नहीं करने का आरोप लगाया है. वहीं कांग्रेस नेता शमशेर आलम ने राज्य में पंचायत चुनाव शीघ्र होने की बात कही है.

इसे भी पढ़ें- PESA Law के तहत पंचायत चुनाव कराने की मांग को मंत्री आलमगीर आलम ने ठुकराया, कहा- पूर्व की तरह होंगे चुनाव

पूर्व के प्रावधानों के तहत झारखंड राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव कराने की तैयारी पूरी कर ली है. अगर राज्य सरकार द्वारा नए सिरे से पेसा के तहत नियमावली बनाकर चुनाव कराने का फैसला लिया जाता है तो स्वभाविक रुप से एक बार फिर राज्य में पंचायत चुनाव के लटकने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. राज्य में दिसंबर 2020 से पंचायत चुनाव लंबित है. राज्य सरकार पहले कोरोना के कारण टालती रही और अब पेसा कानून की नियमावली को लेकर पेंच फंस रहा है. सरकार ने पंचायत के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को अब तक दो बार एक्सटेंशन देकर किसी तरह गांव की सरकार को चला रही है. राज्य में काफी जद्दोजहद के बाद वर्ष 2010 में पहली बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव संपन्न हुए थे, उसके बाद 2015 में एक बार फिर गांव की सरकार बनी थी.

रांचीः झारखंड में पंचायत चुनाव एक बार फिर टलने के आसार हैं. कोरोना के बाद अब पेसा नियमावली में हो रहे बदलाव इसकी मुख्य वजह बनने की संभावना है. झारखंड हाई कोर्ट के रुख के बाद राज्य सरकार इस दिशा में पहल शुरू कर दी है.

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झारखंड हाई कोर्ट के रुख को देखते हुए सरकार नियमावली में फेरबदल करने की तैयारी में है. ऐसे में राज्य सरकार भले ही मार्च में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराने की बात कह रही हो मगर इसके आसार कम दिख रहे हैं. इधर आदिवासी जन परिषद ने सरकार से पेसा एक्ट के तहत ही त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव कराने की मांग की है. आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेमशाही मुंडा ने पेसा एक्ट के तहत नियमावली तैयार होने के बाद ही चुनाव कराने की अपील की है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

पेसा एक्ट में प्रावधानः पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल एरिया (Panchayat Extension to Schedule Area) यानी पेसा एक्ट 1996 में लागू हुआ था. यह प्रशासनिक व्यवस्था को पंचायत स्तर तक लागू किए जाने का प्रभावी कानून है. इसके तहत अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को पंचायत द्वारा विशेष प्रशासनिक अधिकार प्राप्त होते हैं. जल, जंगल, जमीन पर पंचायत का कंट्रोल होता है. चुनावी प्रक्रिया में भी जनजातीय समुदाय को विशेष संरक्षण प्राप्त होता है. मुखिया, प्रमुख, जिला परिषद अध्यक्ष जैसे एकल पद रिजर्व होते हैं. पेसा कानून झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में लागू करनी है. इसके अंतर्गत रांची, लोहरदगा, गुमला, सिमडेगा, खूंटी, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिहंभूम, लातेहार, गढ़वा का भंडरिया ब्लॉक और संथालपरगना के दुमका, गोड्डा के सुंदरपहाड़ी, बोआरिजोर ब्लॉक, पाकुड़, राजमहल और जामताड़ा जिला आते हैं.

पंचायत चुनाव पर सियासत जारीः पेसा को लेकर पंचायत चुनाव लटकता देख इसपर सियासत शुरू हो गयी है. बीजेपी के राष्ट्रीय मंत्री आशा लकड़ा ने सरकार पर चुनाव नहीं कराने का आरोप लगाते हुए कहा कि मंशा ठीक नहीं होने के वजह से यह बहाना बनाया जा रहा है. इधर सत्तारूढ़ कांग्रेस-झामुमो ने सरकार की मंशा सही होने की बात करते हुए बीजेपी पर पलटवार किया है. झामुमो नेता मनोज पांडे ने पिछले रघुवर सरकार पर दोषारोपण करते हुए पेसा प्रावधानों को लागू नहीं करने का आरोप लगाया है. वहीं कांग्रेस नेता शमशेर आलम ने राज्य में पंचायत चुनाव शीघ्र होने की बात कही है.

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पूर्व के प्रावधानों के तहत झारखंड राज्य निर्वाचन आयोग ने चुनाव कराने की तैयारी पूरी कर ली है. अगर राज्य सरकार द्वारा नए सिरे से पेसा के तहत नियमावली बनाकर चुनाव कराने का फैसला लिया जाता है तो स्वभाविक रुप से एक बार फिर राज्य में पंचायत चुनाव के लटकने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. राज्य में दिसंबर 2020 से पंचायत चुनाव लंबित है. राज्य सरकार पहले कोरोना के कारण टालती रही और अब पेसा कानून की नियमावली को लेकर पेंच फंस रहा है. सरकार ने पंचायत के निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को अब तक दो बार एक्सटेंशन देकर किसी तरह गांव की सरकार को चला रही है. राज्य में काफी जद्दोजहद के बाद वर्ष 2010 में पहली बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव संपन्न हुए थे, उसके बाद 2015 में एक बार फिर गांव की सरकार बनी थी.

Last Updated : Feb 8, 2022, 7:02 PM IST
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