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झारखंड के फिल्मी कलाकारों की परेशानी नहीं हो रही कम, स्थानीय सिनेमा बनाने के बावजूद नहीं मिलते दर्शक - jharkhand news

झारखंड के फिल्म कलाकार उम्मीद तलाश रहे हैं, जहां उन्हें उनकी मेहनत का फल मिले. क्योंकि झारखंड में फिल्मों के लिए ना कोई प्लेटफार्म है और ना ही सरकार उन्हें सुरक्षा दे पाती है. ऐसे में उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

challenges for local filmmakers in Jharkhand
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Published : Jul 27, 2023, 10:29 PM IST

Updated : Jul 27, 2023, 10:42 PM IST

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रांची: झारखंड की धरती, जहां पेड़, पहाड़, जंगल, हरियाली, झरना, नदियां और ना जाने क्या-क्या है. ये राज्य पर्यटन के लिए तो लोगों को काफी पसंद आता ही है, साथ ही फिल्मकारों को भी यह बहुत भाता है. कई बड़ी हिंदी फिल्मों की शूटिंग झारखंड में हो चुकी है. बावजूद इसके झारखंड के स्थानीय और लोकल फिल्म कलाकारों को यहां फिल्म बनाने से लाभ नहीं होता. ना उन्हें यहां दर्शक मिलते हैं, ना सुरक्षा और ना ही शोहरत. झारखंड में फिल्म बनाने को लेकर लोकल फिल्मकारों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, इसके बारे में उन्होंने अपनी पीड़ा बताई है.

यह भी पढ़ें: सीएम हेमंत सोरेन से मिली फिल्म नासूर की टीम, कई मुद्दों पर समर्थन का दिया भरोसा, एक्टर-डायरेक्टर ने कहा- Thank You ETV BHARAT

दरअसल, सिनेमा के बढ़ते स्कोप को देखते हुए राज्य सरकार की तरफ से सिनेमा बनाने वाले कलाकारों को सब्सिडी देने की बात कही गई थी. लेकिन सब्सिडी तो दूर फिल्म बनाने वाले कलाकारों, निर्देशकों और सह कलाकारों को जंगलों और पहाड़ों पर राज्य सरकार सुरक्षा तक नहीं दे पा रही. म्यूजिक डायरेक्टर और गायक अमित तिर्की बताते हैं कि सुरक्षा के अभाव में वह दूसरे राज्यों में जाकर नागपुरी भाषा में गाना और फिल्म को शूट करते हैं. इसमें उन्हें लाखों रुपए का खर्च आता है. जबकि झारखंड में कई ऐसे लोकेशन हैं, जहां पर गानों की शूटिंग हो सकती है. लेकिन राज्य सरकार की तरफ से सुरक्षा मुहैया नहीं होने की वजह से उन्हें दूसरे राज्य का रुख करना पड़ता है.

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झारखंड में नहीं है फिल्मों के लिए कोई प्लेटफार्म: उन्होंने बताया कि लाखों रुपए फिल्म पर खर्च करने के बावजूद भी झारखंड में उनकी मेहनत का नतीजा नहीं मिल पाता है. एक फिल्म बनाने में लगभग 90 लाख से एक करोड़ रुपए तक खर्च होते हैं. ऐसे में फिल्म बनाने के दौरान 50 से 100 लोगों को रोजगार मिलता है. लेकिन जब फिल्म बनकर तैयार होती है तो झारखंड के कलाकारों के पास फिल्म रिलीज करने के लिए कोई प्लेटफार्म ही नहीं होता. उन्होंने मांग कि है कि यदि राज्य सरकार की तरफ से सभी थिएटर में यह अनिवार्य कर दिया जाए कि दिन भर में एक शो झारखंड के कलाकारों की फिल्म चलेगी तो इससे झारखंड के कलाकारों को सीधा आर्थिक लाभ मिल पाएगा.

पूर्वोत्तर राज्य में करनी पड़ती है फिल्म रिलीज: वहीं झारखंड सिनेमा के कलाकार शक्ति बताते हैं कि जब भी झारखंड के कलाकार कोई सिनेमा या एल्बम बनाते हैं तो वह उसे असम या फिर पूर्वोत्तर राज्य में रिलीज करते हैं. क्योंकि वहां पर आदिवासी और नागपुरी भाषा से जुड़ी फिल्मों को लोग देखते हैं. वहां की सरकार भी फिल्मकारों का मदद करती है. झारखंड कलाकारों की उम्मीद असम या फिर पूर्वोत्तर राज्यों से बनी होती है क्योंकि उन्हीं क्षेत्रों में नागपुरी भाषा की फिल्मों को तवज्जो मिलती है. फिल्म कलाकारों ने अपनी समस्या बताते हुए कहा कि झारखंड के नागपुरी भाषा बोलने वाले लोगों के बीच भी झारखंडी फिल्मों का प्रचलन नहीं है. लोगों को फिल्मों की जानकारी ही नहीं होती, जिस वजह से लोग फिल्म देखने नहीं पहुंच पाते. कलाकारों ने राज्य सरकार से मांग करते हुए कहा कि यदि आम लोगों को नागपुरी सिनेमा के प्रति जागरूक किया जाए तो जो आदिवासी समाज के युवा पीढ़ी हैं. वह सिनेमा देखने के लिए सिनेमा घर या थिएटर में जरूर पहुंचेंगे. इससे राज्य के युवा कलाकारों का मनोबल भी बढ़ेगा.

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रांची: झारखंड की धरती, जहां पेड़, पहाड़, जंगल, हरियाली, झरना, नदियां और ना जाने क्या-क्या है. ये राज्य पर्यटन के लिए तो लोगों को काफी पसंद आता ही है, साथ ही फिल्मकारों को भी यह बहुत भाता है. कई बड़ी हिंदी फिल्मों की शूटिंग झारखंड में हो चुकी है. बावजूद इसके झारखंड के स्थानीय और लोकल फिल्म कलाकारों को यहां फिल्म बनाने से लाभ नहीं होता. ना उन्हें यहां दर्शक मिलते हैं, ना सुरक्षा और ना ही शोहरत. झारखंड में फिल्म बनाने को लेकर लोकल फिल्मकारों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, इसके बारे में उन्होंने अपनी पीड़ा बताई है.

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दरअसल, सिनेमा के बढ़ते स्कोप को देखते हुए राज्य सरकार की तरफ से सिनेमा बनाने वाले कलाकारों को सब्सिडी देने की बात कही गई थी. लेकिन सब्सिडी तो दूर फिल्म बनाने वाले कलाकारों, निर्देशकों और सह कलाकारों को जंगलों और पहाड़ों पर राज्य सरकार सुरक्षा तक नहीं दे पा रही. म्यूजिक डायरेक्टर और गायक अमित तिर्की बताते हैं कि सुरक्षा के अभाव में वह दूसरे राज्यों में जाकर नागपुरी भाषा में गाना और फिल्म को शूट करते हैं. इसमें उन्हें लाखों रुपए का खर्च आता है. जबकि झारखंड में कई ऐसे लोकेशन हैं, जहां पर गानों की शूटिंग हो सकती है. लेकिन राज्य सरकार की तरफ से सुरक्षा मुहैया नहीं होने की वजह से उन्हें दूसरे राज्य का रुख करना पड़ता है.

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झारखंड में नहीं है फिल्मों के लिए कोई प्लेटफार्म: उन्होंने बताया कि लाखों रुपए फिल्म पर खर्च करने के बावजूद भी झारखंड में उनकी मेहनत का नतीजा नहीं मिल पाता है. एक फिल्म बनाने में लगभग 90 लाख से एक करोड़ रुपए तक खर्च होते हैं. ऐसे में फिल्म बनाने के दौरान 50 से 100 लोगों को रोजगार मिलता है. लेकिन जब फिल्म बनकर तैयार होती है तो झारखंड के कलाकारों के पास फिल्म रिलीज करने के लिए कोई प्लेटफार्म ही नहीं होता. उन्होंने मांग कि है कि यदि राज्य सरकार की तरफ से सभी थिएटर में यह अनिवार्य कर दिया जाए कि दिन भर में एक शो झारखंड के कलाकारों की फिल्म चलेगी तो इससे झारखंड के कलाकारों को सीधा आर्थिक लाभ मिल पाएगा.

पूर्वोत्तर राज्य में करनी पड़ती है फिल्म रिलीज: वहीं झारखंड सिनेमा के कलाकार शक्ति बताते हैं कि जब भी झारखंड के कलाकार कोई सिनेमा या एल्बम बनाते हैं तो वह उसे असम या फिर पूर्वोत्तर राज्य में रिलीज करते हैं. क्योंकि वहां पर आदिवासी और नागपुरी भाषा से जुड़ी फिल्मों को लोग देखते हैं. वहां की सरकार भी फिल्मकारों का मदद करती है. झारखंड कलाकारों की उम्मीद असम या फिर पूर्वोत्तर राज्यों से बनी होती है क्योंकि उन्हीं क्षेत्रों में नागपुरी भाषा की फिल्मों को तवज्जो मिलती है. फिल्म कलाकारों ने अपनी समस्या बताते हुए कहा कि झारखंड के नागपुरी भाषा बोलने वाले लोगों के बीच भी झारखंडी फिल्मों का प्रचलन नहीं है. लोगों को फिल्मों की जानकारी ही नहीं होती, जिस वजह से लोग फिल्म देखने नहीं पहुंच पाते. कलाकारों ने राज्य सरकार से मांग करते हुए कहा कि यदि आम लोगों को नागपुरी सिनेमा के प्रति जागरूक किया जाए तो जो आदिवासी समाज के युवा पीढ़ी हैं. वह सिनेमा देखने के लिए सिनेमा घर या थिएटर में जरूर पहुंचेंगे. इससे राज्य के युवा कलाकारों का मनोबल भी बढ़ेगा.

Last Updated : Jul 27, 2023, 10:42 PM IST
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