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Jharkhand Tribal Apparel: आदिवासी परिधान को नई पहचान, पीएम नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं संगम बड़ाइक की प्रशंसा

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Published : Mar 19, 2023, 2:01 PM IST

आज आदिवासी परिधान नए अंदाज में देश और दुनिया में अपनी अलग पहचान बना रहा है. इसको साकार कर रहे हैं युवा व्यवसायी संगम बड़ाइक. पीएम नरेंद्र मोदी भी संगम बड़ाइक के डिजाइनदार कपड़ों की प्रशंसा कर चुके हैं. ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट से जानिए, इन परिधान की खासियत.

Businessman Sangam Badaik of Ranchi giving new identity to tribal apparel in Jharkhand
डिजाइन इमेज
देखें स्पेशल रिपोर्ट

रांचीः आदिवासी, इस शब्द के साथ ही जेहन में गांव, जंगल और वहां रहने वाले लोगों की तस्वीर उभर आती है. प्रकृति से जुड़े आदिवासी समाज में उनकी झलक नजर आती है. बात रहन-सहन या खान-पान या परिधान की हो. प्राकृतिक रंगों की छाप इन परिधानों में नजर आती है. आज आदिवासी परिधान नई ऊंचाइयों पर है, क्योंकि युवा कारोबारी संगम बड़ाइक ने अपने जुनून और जज्बा से आदिवासी परिधान को व्यवसाय का रूप देकर नया आयाम दिया.

इसे भी पढ़ें- आदिवासी संथाल समाज का पारंपरिक परिधान है पंची-परहान, दुर्गा पूजा के मौके पर बढ़ी डिमांड

रांची के कपड़ा कारोबारी संगम बड़ाइक आदिवासी परिधान का व्यवसाय करते हैं. आदिवासी परिधान का नाम सुनते ही हमारे मन में यह ख्याल आता है कि धोती लूंगी या फिर साड़ी जैसे साधारण परिधान होते होंगे. लेकिन संगम बड़ाइक इससे आगे की सोच रखते हैं. उन्होंने आदिवासियों के लिए कई ऐसे परिधान बनाए जो आज पूरे देश के लोग इसे पसंद कर रहे हैं. संगम बड़ाइक बताते हैं कि यह उनका परिवारिक व्यवसाय है. लेकिन उनके दादा और पिताजी सिर्फ धोती लूंगी और साड़ी जैसे पुराने परिधानों का व्यवसाय करते थे. लेकिन जब से वो इस व्यवसाय में आए हैं, उन्होंने इसमें आधुनिकता को लाने का प्रयास किया है.

कारोबारी संगम बड़ाइक ने अपनी तरफ से आदिवासियों के लिए डिजाइनर कपड़े बनवाना शुरू किए. इसमे ब्लेजर, कोट, शर्ट-पैंट, बंडी जैसे न्यू मॉडल के कपड़े डिजाइन कर रहे हैं. इसे लोग ज्यादा से ज्यादा पसंद भी कर रहे हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान संगम बड़ाइक बताते हैं कि पहले उन्होंने नौकरी करने की कोशिश की लेकिन जब उन्हें नौकरी नहीं मिली तो वो अपने परिवारिक व्यवसाय में आ गए.

युवा होने के नाते उन्होंने अपनी तरफ से यह कोशिश की कि व्यवसाय में कुछ नया किया जाए. जिसको लेकर उन्होंने पहले दर्ज और कपड़ा व्यवसायियों के साथ संपर्क स्थापित किया और उनसे जानकारी ली कि आखिर किस प्रकार से अपने व्यापार को बढ़ाया जा सकता है. लोगों से सुझाव लेने के बाद संगम बड़ाइक ने यह निर्णय लिया कि आदिवासी समुदाय के लिए वह नए से नए डिजाइन के कपड़े बनाएंगे. अपने परिधान के माध्यम से आदिवासी समाज के बीच ये संदेश देने की कोशिश करेंकि समय के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए उन्हें अपने पहनावे में भी बदलाव लाने की आवश्यकता है. जिससे दुनिया को वो यह बता सके कि आदिवासी सिर्फ आदिकाल की चीजों को नहीं बल्कि नए जमाने के चीजों को भी अपना कर दुनिया के साथ चल सकते हैं.

संगम बड़ाइक के द्वारा किए गए इस प्रयास को लोग भी खूब पसंद कर रहे हैं. ग्लोबल ट्राइबल क्वीन की विजेता पूजा लकड़ा बताती हैं कि आज से कुछ वर्ष पहले तक झारखंड के आदिवासी सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे और पुराने परिधान पहनकर अपना समय गुजारा करते थे. लेकिन आज के दौर में आदिवासी समाज की नई पीढ़ी और युवा सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंच रहे हैं. जिसके लिए उन्हें अपने जीवन में बदलाव करने की आवश्यकता पड़ती है. ऐसा ही बदलाव लाने की कोशिश आदिवासी परिधान के संचालक संगम बड़इक भी कर रहे हैं, जरूरत है उन्हें ज्यादा से ज्यादा सपोर्ट करने की.

करोड़ों का है कारोबारः संगम बड़ाइक आज करोड़ों का व्यापार कर रहे हैं जबकि उनके पूर्वज इसी व्यवसाय में महज कुछ हजार रुपये ही कमा पाते थे. लेकिन संगम बड़ाइक का प्रयास दिन दोगुना रात चौगुना आगे बढ़ रहा है. उनके द्वारा लाए जा रहे नए आदिवासी परिधान को लोग खूब पसंद भी कर रहे हैं. उनके इस बेहतर प्रयास को देखते हुए कई बड़े शख्सियतों ने भी उनकी प्रशंसा की है. रांची सांसद संजय सेठ ने उनके द्वारा बनाए गए पगड़ी को देश के प्रधानमंत्री तक पहुंचाया. वहीं कई राज्यों के विधायक, सांसद और जनप्रतिनिधि भी इनकी दुकान से आदिवासी परिधान खरीद चुके हैं.

इसे भी पढ़ें- जोहारग्राम से विदेशों में बढ़ी झारखंड के कपड़ों की डिमांड, खबू बिक रहे हैं पारंपरिक परिधान

पीएम नरेंद्र मोदी ने की संगम बड़ाइक की प्रशंसाः संगम बड़ाइक ने बताया कि जब उन्होंने अपने परिधान को प्रधानमंत्री द्वारा धारण किए हुए देखा तो उनका मन गदगद हो गयी. इससे उन्हें काफी प्रोत्साहन मिला और उनके व्यापार में भी वृद्धि आई है. संगम बड़ाइक ने बताया कि पहले उनका परिवार यह व्यापार सिमडेगा के सुदूर क्षेत्र में करता था. लेकिन उन्होंने अपने इस परिवारिक व्यापार को लेकर राजधानी रांची शिफ्ट कर दिया. राजधानी आने के बाद उन्होंने पहले एक दुकान से अपने व्यापार को शुरू किया लेकिन जब लोग उनके प्रोडक्ट को पसंद करने लगे तो आज वह दो दुकान के मालिक हैं.

आदिवासी समाज में बदलाव की कोशिशः संगम बड़ाइक कहते हैं कि झारखंड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल जैसे क्षेत्रों में आज भी कई ऐसे आदिवासी भाई हैं जो आधुनिकता की दौड़ में पीछे हैं. ऐसे आदिवासी भाइयों को आज के समाज से जुड़ने के लिए पहले उनके परिधान में बदलाव लाने की आवश्यकता है, जिससे वो अपने पहनावे के माध्यम से स्वभाव और सोच में बदलाव ला सकें.

उनका उद्देश्य परिधानों में आधुनिकता लाने का नहीं है बल्कि इस माध्यम से सुदूर क्षेत्रों में रह रहे आदिवासियों की जीवन शैली में भी बदलाव लाने की कोशिश है. क्योंकि आज भी कई ऐसे आदिवासी युवक है जो जंगलों में रहकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, वैसे युवकों को चिन्हित कर उनसे जंगल से जुड़े प्रोडक्ट खरीदते हैं. उस प्रोडक्ट का सदुपयोग कर परिधान बनाने का काम करते हैं जो सीधा आर्थिक लाभ देता है. आमदनी के साथ साथ ग्रामीण एवं सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रह रहे आदिवासी युवाओं को भी रोजगार देने का प्रयास किया जा रहा है ताकि उनके जीवन शैली में बदलाव आ सके. संगम बड़ाइक ने सरकार से भी मदद की गुहार लगाई है ताकि वह अपने उद्देश्य के माध्यम से राज्य के आदिवासियों का ज्यादा से ज्यादा मदद कर पाए.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

रांचीः आदिवासी, इस शब्द के साथ ही जेहन में गांव, जंगल और वहां रहने वाले लोगों की तस्वीर उभर आती है. प्रकृति से जुड़े आदिवासी समाज में उनकी झलक नजर आती है. बात रहन-सहन या खान-पान या परिधान की हो. प्राकृतिक रंगों की छाप इन परिधानों में नजर आती है. आज आदिवासी परिधान नई ऊंचाइयों पर है, क्योंकि युवा कारोबारी संगम बड़ाइक ने अपने जुनून और जज्बा से आदिवासी परिधान को व्यवसाय का रूप देकर नया आयाम दिया.

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रांची के कपड़ा कारोबारी संगम बड़ाइक आदिवासी परिधान का व्यवसाय करते हैं. आदिवासी परिधान का नाम सुनते ही हमारे मन में यह ख्याल आता है कि धोती लूंगी या फिर साड़ी जैसे साधारण परिधान होते होंगे. लेकिन संगम बड़ाइक इससे आगे की सोच रखते हैं. उन्होंने आदिवासियों के लिए कई ऐसे परिधान बनाए जो आज पूरे देश के लोग इसे पसंद कर रहे हैं. संगम बड़ाइक बताते हैं कि यह उनका परिवारिक व्यवसाय है. लेकिन उनके दादा और पिताजी सिर्फ धोती लूंगी और साड़ी जैसे पुराने परिधानों का व्यवसाय करते थे. लेकिन जब से वो इस व्यवसाय में आए हैं, उन्होंने इसमें आधुनिकता को लाने का प्रयास किया है.

कारोबारी संगम बड़ाइक ने अपनी तरफ से आदिवासियों के लिए डिजाइनर कपड़े बनवाना शुरू किए. इसमे ब्लेजर, कोट, शर्ट-पैंट, बंडी जैसे न्यू मॉडल के कपड़े डिजाइन कर रहे हैं. इसे लोग ज्यादा से ज्यादा पसंद भी कर रहे हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत के दौरान संगम बड़ाइक बताते हैं कि पहले उन्होंने नौकरी करने की कोशिश की लेकिन जब उन्हें नौकरी नहीं मिली तो वो अपने परिवारिक व्यवसाय में आ गए.

युवा होने के नाते उन्होंने अपनी तरफ से यह कोशिश की कि व्यवसाय में कुछ नया किया जाए. जिसको लेकर उन्होंने पहले दर्ज और कपड़ा व्यवसायियों के साथ संपर्क स्थापित किया और उनसे जानकारी ली कि आखिर किस प्रकार से अपने व्यापार को बढ़ाया जा सकता है. लोगों से सुझाव लेने के बाद संगम बड़ाइक ने यह निर्णय लिया कि आदिवासी समुदाय के लिए वह नए से नए डिजाइन के कपड़े बनाएंगे. अपने परिधान के माध्यम से आदिवासी समाज के बीच ये संदेश देने की कोशिश करेंकि समय के साथ कदम मिलाकर चलने के लिए उन्हें अपने पहनावे में भी बदलाव लाने की आवश्यकता है. जिससे दुनिया को वो यह बता सके कि आदिवासी सिर्फ आदिकाल की चीजों को नहीं बल्कि नए जमाने के चीजों को भी अपना कर दुनिया के साथ चल सकते हैं.

संगम बड़ाइक के द्वारा किए गए इस प्रयास को लोग भी खूब पसंद कर रहे हैं. ग्लोबल ट्राइबल क्वीन की विजेता पूजा लकड़ा बताती हैं कि आज से कुछ वर्ष पहले तक झारखंड के आदिवासी सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों में रहते थे और पुराने परिधान पहनकर अपना समय गुजारा करते थे. लेकिन आज के दौर में आदिवासी समाज की नई पीढ़ी और युवा सफलता की ऊंचाइयों पर पहुंच रहे हैं. जिसके लिए उन्हें अपने जीवन में बदलाव करने की आवश्यकता पड़ती है. ऐसा ही बदलाव लाने की कोशिश आदिवासी परिधान के संचालक संगम बड़इक भी कर रहे हैं, जरूरत है उन्हें ज्यादा से ज्यादा सपोर्ट करने की.

करोड़ों का है कारोबारः संगम बड़ाइक आज करोड़ों का व्यापार कर रहे हैं जबकि उनके पूर्वज इसी व्यवसाय में महज कुछ हजार रुपये ही कमा पाते थे. लेकिन संगम बड़ाइक का प्रयास दिन दोगुना रात चौगुना आगे बढ़ रहा है. उनके द्वारा लाए जा रहे नए आदिवासी परिधान को लोग खूब पसंद भी कर रहे हैं. उनके इस बेहतर प्रयास को देखते हुए कई बड़े शख्सियतों ने भी उनकी प्रशंसा की है. रांची सांसद संजय सेठ ने उनके द्वारा बनाए गए पगड़ी को देश के प्रधानमंत्री तक पहुंचाया. वहीं कई राज्यों के विधायक, सांसद और जनप्रतिनिधि भी इनकी दुकान से आदिवासी परिधान खरीद चुके हैं.

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पीएम नरेंद्र मोदी ने की संगम बड़ाइक की प्रशंसाः संगम बड़ाइक ने बताया कि जब उन्होंने अपने परिधान को प्रधानमंत्री द्वारा धारण किए हुए देखा तो उनका मन गदगद हो गयी. इससे उन्हें काफी प्रोत्साहन मिला और उनके व्यापार में भी वृद्धि आई है. संगम बड़ाइक ने बताया कि पहले उनका परिवार यह व्यापार सिमडेगा के सुदूर क्षेत्र में करता था. लेकिन उन्होंने अपने इस परिवारिक व्यापार को लेकर राजधानी रांची शिफ्ट कर दिया. राजधानी आने के बाद उन्होंने पहले एक दुकान से अपने व्यापार को शुरू किया लेकिन जब लोग उनके प्रोडक्ट को पसंद करने लगे तो आज वह दो दुकान के मालिक हैं.

आदिवासी समाज में बदलाव की कोशिशः संगम बड़ाइक कहते हैं कि झारखंड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा और पश्चिम बंगाल जैसे क्षेत्रों में आज भी कई ऐसे आदिवासी भाई हैं जो आधुनिकता की दौड़ में पीछे हैं. ऐसे आदिवासी भाइयों को आज के समाज से जुड़ने के लिए पहले उनके परिधान में बदलाव लाने की आवश्यकता है, जिससे वो अपने पहनावे के माध्यम से स्वभाव और सोच में बदलाव ला सकें.

उनका उद्देश्य परिधानों में आधुनिकता लाने का नहीं है बल्कि इस माध्यम से सुदूर क्षेत्रों में रह रहे आदिवासियों की जीवन शैली में भी बदलाव लाने की कोशिश है. क्योंकि आज भी कई ऐसे आदिवासी युवक है जो जंगलों में रहकर अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, वैसे युवकों को चिन्हित कर उनसे जंगल से जुड़े प्रोडक्ट खरीदते हैं. उस प्रोडक्ट का सदुपयोग कर परिधान बनाने का काम करते हैं जो सीधा आर्थिक लाभ देता है. आमदनी के साथ साथ ग्रामीण एवं सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रह रहे आदिवासी युवाओं को भी रोजगार देने का प्रयास किया जा रहा है ताकि उनके जीवन शैली में बदलाव आ सके. संगम बड़ाइक ने सरकार से भी मदद की गुहार लगाई है ताकि वह अपने उद्देश्य के माध्यम से राज्य के आदिवासियों का ज्यादा से ज्यादा मदद कर पाए.

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