रांची: गुरुवार को नई दिल्ली में रांची सांसद संजय सेठ और भाजपा नेता विनय जायसवाल ने एचईसी की गंभीर समस्याओं को लेकर भारी उद्योग मंत्री महेंद्र नाथ पांडे और भारी उद्योग सचिव कामरान रिजवी के साथ अलग-अलग मुलाकात की (BJP MP Sanjay Seth met Heavy Industries Minister). दोनों से हुई मुलाकात में एचईसी को लेकर विस्तार से चर्चा की गई. जिसमें संजय सेठ ने कहा की एचईसी को सुचारू रूप से चलाया जाए ताकि एचईसी का भविष्य अच्छा हो. भारी उद्योग मंत्री से हुई मुलाकात के बाद संजय सेठ ने कहा कि मंत्रालय से उन्हें आश्वासन मिला है एचईसी को आगे बढ़ाया जाएगा.
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भारी उद्योग सचिव कामरान रिजवी ने कहा कि इसके भविष्य के लिए अच्छे पहल की ओर प्रयास की जा रही है. भाजपा नेता विनय जसवाल ने बकाया वेतन की मांग को लेकर कहा कि जल्द से जल्द भुगतान किया जाए. सचिव ने कहा की स्टील के साथ-साथ अन्य जगहों से एचईसी के बकाया पैसे को दिलाने की बात की जा रही है. उन्होंने कहा कि अगले सप्ताह एचईसी के शीर्ष अधिकारियों के साथ बृहद बैठक कर विभिन्न समस्याओं का समाधान किया जाएगा.
एचईसी कर्मचारियों का कहना है कि हड़ताल के साथ-साथ तमाम इंजीनियर मिलकर रिवाइवल प्लान भी तैयार कर रहे हैं. लेकिन वे इस बात को लेकर भी परेशान हैं कि पूर्व में भी कई बार समीक्षा हो चुकी है लेकिन जब बात उसे धरातल पर उतारतने की आती है तो मामला ठंडा पड़ जाता है.
हड़ताली इंजीनियरों ने बताया कि एचईसी के आधुनिकीकरण के लिए स्मार्ट सिटी के नाम पर जमीन हस्तांतरित की गई लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. मशीनों का आधुनिकीकरण तो दूर स्टैच्युटरी बकाये का भुगतान तक नहीं हुआ. कंपनी को गर्त में लाकर खड़ा कर दिया गया है. इंजीनियरों ने कहा कि इस संस्थान के पास असीम ताकत है. अगर रॉ मेटेरियल मिले तो कई नायाब काम हो सकते हैं. लेकिन केंद्र सरकार कान में तेल डालकर सो रही है.
एचईसी के इंजीनियरों को पिछले 13 माह से वेतन नहीं मिला है. 400 इंजीनियरों को अपना परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है. पिछले दिनों एचईसी के प्रभारी सीएमडी नलिन सिंघल से बातचीत हुई थी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इसके बाद से यह आंदोलन जारी है. कभी प्रबंधन का पुतला फूंका जा रहा है तो कभी जलेबी छानकर तो कभी मशाल जुलूस निकालकर विरोध दर्ज कराया जा रहा है. इंजीनियरों ने बताया कि मेक इन इंडिया के तहत वोकल फॉर लोकर का नारा और रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने और पांच ट्रिलियन इकॉनोमी का सपना तभी इन कल-कारखानों के बगैर कभी पूरा नहीं हो सकता. आपको बता दें कि एचईसी की पहचान मदर ऑफ इंडिस्ट्री के रूप में हुआ करती थी. साल 1960 से 1990 तक इसका स्वर्णिल काल रहा. लेकिन समय के साथ इसकी स्थिति बिगड़ती रही. यह संस्थान सिर्फ राजनीतिक नारों में सिमट कर रह गया है. सेना, रेलवे के अलावा इसरो के लॉचिंग पैड स्ट्रक्चर को तैयार करने की ताकत रखने वाले इस संस्थान को खुद बैसाखी की जरूरत है. इसी संस्थान के क्षेत्र में जेएससीए, प्रोजेक्ट भवन, विधानसभा का संचालन हो रहा है. लेकिन इसकी हालत सुधरने के बजाए बिगड़ती जा रही है.